पाठक खानदानी शब्द भण्डार

लेखक : प्रोफेसर (डॉक्टर) रामजीलाल जांगिड 

निवासी दिल्ली, फिलहाल नोएडा में

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जिस मोहल्ले में तंदूर होता है, वहां के निवासियों के बड़े मजे होते हैं। घर पर छोले बना लो और आटा गूंथकर तंदूर वाले को दे दो। वह गर्मागर्म रोटियां तंदूर से निकालकर दे देगा। घर जाकर घी चुपड़ो और गर्मागर्म छोलों के साथ खाओ। बाद में प्रभु के गुण गाओ। आजकल प्रयागराज के मूल निवासी अजय पाठक ने इंदौर (मध्यप्रदेश) में एक नया तंदूर "सेहत की शाला" चलाया है। वह अलग अलग भाषाओं और बोलियों के उपयोगकर्ताओं से स्वास्थ्य के बारे में कहावतें मांग रहे हैं जिन्हें पकाकर लोगों को सेहतमंद रहने के बारे में सजग करते हैं। 

शुरुआत उन्होंने अवधी भाषा में पत्रकारिता और जनसंचार संबंधी अंग्रेजी शब्दों के समरूप शब्द गढ़ने से की थी। यदि गोस्वामी तुलसीदास अवधी भाषा के पहले महाकवि थे, तो अजय पाठक अवधी भाषा के पहले और एकमात्र कोशकार हैं। वह सामाजिक सरोकारों से जुड़े जन आंदोलन के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, इसलिए बड़े उर्वर मस्तिष्क से संपन्न हैं। अवधी भाषा में जनसंचार सम्बन्धी शब्द गढ़ते गढ़ते उन्होंने एक ग्रामीण फेसबुकिया पात्र "पुत्तन" रच डाला, जो अपने गांव में संचार माध्यमों सम्बन्धी सजगता जगाना चाहता है। 

"पुत्तन प्रसंग" की 75 से ज्यादा कड़ियां आ गई है। इसके बाद पाठक जी लग गए मोहल्ले के छोटे छोटे बच्चों को अपने पास की वाटिका में मीडिया लिटरेसी सिखाने में उनकी बड़ी बेटी भावना पाठक ने विश्व भर में एक नया कीर्तिमान बना दिया है। 26 भारतीय और विदेशी भाषाओं तथा बोलियों में पत्रकारिता एवं जनसंचार सम्बन्धी ऐसा शब्दकोश बनाकर जिसे देख सकते हैं और सुन भी सकते हैं। इसके निर्माण से पिता, पुत्री, पुत्र, पुत्रवधू, नातिन सब जुड़े हैं अलग अलग भाषाओं एवं बोलियों में अंग्रेजी के समानार्थक शब्द गढ़ने में और उन्हें चाक्षुक रूप देने में। 

छोटी पुत्री कामना भी मुम्बई में टेलीविजन के पर्दे पर "भाभीजी घर पर हैं" के थानेदार हप्पू सिंह को कोहनी मारकर सीधा करने में लगी है। मैंने "पाठक खानदानी शब्द भण्डार" नाम इसलिए रखा है क्योंकि वे सब धुन के धनी हैं। इन पर रामजी की कृपा बनी रहे, बस यही इच्छा है। इनके पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास तो उन्हें पहले ही बता चुके हैं -- "जा पर कृपा राम की होगी, ता पर कृपा करे सब कोई"।