बेंगलुरु : जलवायु परिवर्तन के साथ बुनियादी ढांचा भी है जिम्मेदार

बेंगलुरु के घटना को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसके पीछे जलवायु परिवर्तन के अलावा ड्रेनेज सिस्टम और बुनियादी ढांचा भी है।

लेखक : प्रशांत सिन्हा 

(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं।)

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वर्तमान में भारत के आईटी राजधानी और गार्डन सिटी के नाम से मशहूर बेंगलुरु में हुई भारी बारिश और उसके पश्चात बाढ़ की स्थिति, जलापूर्ति और यातायात बाधित होने की घटना ने सभी को चिंतित कर दिया है। इसका कारण ढूंढना आवश्यक है क्योंकि इस घटना ने शहर की प्रतिष्ठा के साथ साथ जान माल का बहुत नुकसान पहुंचाया है।

बेंगलुरु दक्षिण भारत की टैंक प्रणाली का एक हिस्सा है वर्षों से कई झीलें और तालाबें सभी एक से जुड़े हुए हैं। उनमें से कुछ अभी भी काम कर रहे हैं। इस प्रणाली ने न केवल राजधानी को बल्कि पूरे राज्यों बाढ़ और सूखे की स्थिति से सुरक्षा प्रदान की है। जब अत्याधिक बारिश होती है तो पानी एक टैंक से दूसरे टैंक में जाता है। उसके बाद पानी इंटर कनेक्टेड टैंक में भरता है। इससे भूजल को रिचार्ज करने में भूमि की मिट्टी की नमी बढ़ाने के साथ उत्पादकता को बढ़ाने में मदद मिलती है। कर्नाटक के कई क्षेत्रों में दुसरी सिंचाई की शायद ही कभी आवश्यकता होती थी क्योंकि झील प्रणाली विशाल कृषि समुदायों की जरूरतों को पूरा करती थीं। 

आईटी क्षेत्र में आई क्रांति के कारण शहर का विस्तार हुआ जिसने कई जल निकायों को अपने चपेट में ले लिया। इसने झीलों की प्रणाली की परस्पर संबद्धता को तोड़ दिया। बाढ़ नियंत्रण और सूखा प्रबंधन के लिए अधिक व्यापक प्रणाली का हिस्सा होने के बजाए उन्हें अलग अलग कर दिया।  तीव्र शहरीकरण प्रक्रिया ने आद्रभूमियों, बाढ़, मैदानों आदि पर आक्रमण कर लिया जिससे बाढ़ का मार्ग बाधित हो गया। नालियों के जाम होने से शहर के रिहायशी इलाके जलमग्न हो गए जिससे यह दर्शाता है कि कैसे तेजी से अनियोजित शहरी विकास ने एक शहर में और उसके आस पास के प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को उसकी सीमा तक फैला दिया है और प्राकृतिक बाढ़ के खतरों से आपदा को अधिक विनाशकारी बना दिया है। ऐसा प्रतीत होता है कि राजनीतिक व्यवस्था और इच्छा शक्ति जलवायु अनुकूल नीति के अनुरूप नहीं है।

इसका दूसरा पहलू जलवायु परिवर्तन भी है ।  संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ( आईपीसीसी ) ने पीछले साल चेतावनी दी थी कि अगर कार्बन उत्सर्जन अनियंत्रित रहा तो आने वाले वर्षों में पूरे दक्षिण एशिया में चरम मौसमी घटनाओं की वृद्धि होगी। जलवायु परिवर्तन के साथ क्षेत्रीय पारिस्थितिक चुनौतियों ने बाढ़ के जोखिम को बढ़ा दिया है। हर साल भारत में वर्षा का पैटर्न बदल रहा है और बिना वर्षा वाले क्षेत्र में बाढ़ आने लगी है। वैज्ञानिक इसके लिए मानवजनित ग्लोबल वार्मिंग को दोषी मानते है । ऐसा इसलिए है क्योंकि जलवायु परिवर्तन जल चक्र की वाष्पीकरण प्रक्रिया को सुपर चार्ज कर रहा है और वर्षा पैटर्न के साथ खिलवाड़ कर रहा है। वैज्ञानिक एक बुनियादी मेट्रोलॉजिकल सिद्धांत की ओर इशारा कर रहे हैं। हवा जैसे ही गर्म होती है ठंडी हवा की तुलना में अधिक जलवाष्प धारण करती है। जैसे जैसे तापमान बढ़ता है, मिट्टी, पौधों, महासागरों और जल से अधिक पानी वाष्पित होता है जो वाष्प बनता है। अतिरिक्त जलवाष्प का अर्थ है भारी वर्षा और हिमपात। वर्ष 1900 _ 2000 से तापमान वातावरण में ग्रीन हाऊस गैसों के गर्मी के कारण लगभग 1.1° सेल्सियस ( 1.98 ° F ) बढ़ गया है।

एक रिर्पोट के अनुसार इस साल अगस्त में बेंगलुरु में 370 मिलीमीटर बारिश हुई जो अगस्त 1998 में हुई 387 % मिलीमीटर बारिश के अबतक के रिकॉर्ड से थोड़ी ही कम है। 1तारीख से पांच सितम्बर के बीच बेंगलुरु के कुछ इलाकों में सामान्य से 150 फीसदी ज्यादा बारिश हुई है। वहीं अन्यों जगहों में सामान्य से 307 फीसदी ज्यादा बारिश हुई। बेंगलुरु में हुई बारिश पिछले 32 सालों में  ( 1992 _ 93 ) में सबसे ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि इस साल ही बेगलुरु में तेज बारिश हुई है , पिछले कुछ वर्षों में भी काफी बारिश हुई है जो जलवायु परिवर्तन की ओर सीधा संकेत करती है। पिछले तीन वर्षो का आंकड़ा अगर देखते हैं तो बेंगलुरु में 2019 में 900 मिलीमीटर, 2020 में 1200 मिलीमीटर और 2021 में 1500 मिलीमीटर बारिश से स्पष्ट होता है कि बेंगलुरु की भौगोलिक परिस्थितियां बदल रही हैं जिसका कारण जलवायु परिवर्तन है। बेंगलुरु के घटना को देखते हुए कहा जा सकता है कि इसके पीछे जलवायु परिवर्तन के अलावा ड्रेनेज सिस्टम और बुनियादी ढांचा भी है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)