लेखक : राम भरोस मीणा
(जाने माने पर्यावरणविद् व समाज विज्ञानी है)
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अलवर, नामीबिया से आए चीतों के भारत आने पर पर्यावरण व वन्यजीव प्रेमियों, विशेषज्ञों के साथ आम जनता में एक बड़े उत्साह के साथ इस प्रोजेक्ट के सफल होने के आसार दिखाई देते नजर आ रहे वही यह प्रोजेक्ट वन्यजीव संपदा और जैव विविधता के संरक्षण की दिशा में बहुत बड़ी उपलब्धि होगी, लेकिन भारतीय पेंथर की सुरक्षा को लेकर स्वाभाविक वन्य जीव प्रेमियों की चिंता बढ़ने लगी है कि कहीं मेहमानों की मेजबानी में लगे रहने पर यहां का पेंथर गायब नहीं हो जाए।
कूनो नेशनल पार्क मे नामीबिया से आए चीतों के पहुंचने के समय यहां 50 से अधिक पेंथर मौजूद बताए गए, जिनकी सुरक्षा के इंतजाम वही रहेंगे या उन्हें अनदेखा कर पार्क से गायब होते देखा जाएगा। सरिस्का बाघ परियोजना क्षेत्र के बाघ विहीन होने के बाद पैंथरओं की संख्या एकाएक बढ़ गई थी तथा यहां के जैव विविधता को बनाए रखने में इनका बड़ा सहयोग रहा, लेकिन सरिस्का में बाघों के पुनर्वास के बाद इनके हालात दिनों दिन खराब होते नजर आ रहे जिसके परिणाम स्वरूप वर्ष 2020- 21 व 2021-22 में 2 दर्जन से अधिक पेंथरों की मौत विभिन्न हादसों में हुई जो सुरक्षा को लेकर स्वाभाविक चिंता का विषय है।
वर्तमान में सरिस्का में पेंथरों की संख्या को लेकर भी प्रश्न उठना स्वाभाविक है, एल पी एस विकास संस्थान के प्रकृति प्रेमी व पर्यावरणविद् रामभरोस मीणा ने अपनी राय देते हुए कहा कि कूनो नेशनल पार्क में वन क्षेत्र को देखते हुए मेहमानों के सामने स्थानीय पेंथरों को मजबूरन वन क्षेत्र छोड़ना पड़ेगा, जिससे उसका जीवन खतरे में होगा, सरिस्का में बाघों के पुनर्वास के समय इनकी संख्या 100से अधिक बताई गई,जो पुनर्वास के बाद खतरे में रहा, जिसके परिणाम वर्तमान में देखने को मिल रहे हैं। अतः नामीबिया व दक्षिणी अफ्रीका से आने वाले चीतों की मेजबानी के साथ-साथ भारतीय पेंथर की सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त किए जाएं जिससे कि इनकी सुरक्षा के साथ बचाया जा सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं उनके अपने निजी विचार है।)