(रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है)
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गत वर्षो में देश अनेक संकटों से गुजरा है और कई मोर्चो पर बेहद मुश्किल स्थितियां बनी है। कई संकटों से गुजरने के बावजूद बढ़ी असफलताओं के बावजूद अपने आभामण्डल से प्रधानमंत्री मोदी ने निजी लोकप्रियता कायम रखी है। सत्ता विरोधी रूझान के बावजूद, आर्थिक गिरावट के बावजूद,मंहगाई व बेरोजगारी जैसे अहम व भारी मुद्दों पर असन्तोष के बावजूद मोदी फेक्टर बना हुआ है। युद्ध, महामारी, आर्थिक गिरावट, सबका काला साया मोदी के कार्यकाल में छाया रहा, सत्ता विरोधी रूझानों के बावजूद मोदी का प्रभाव कायम रहा। मोदी की यह निजी लोकप्रियता दिलचस्प विरोधाभास दर्शाती है।
आम लोगों की आर्थिक स्थिति मोदी के सत्ता में आने के बाद बदतर हुई है। रोजाना के खर्चे करना आफत बनी हुई है। मंहगाई व बेरोजगारी सबसे दर्दनाक पहलू है, गरीबी व गरीबों की संख्या बढ़ी है। लोकतांत्रिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा गिरी है, उनका दुरूपयोग हुआ, राष्ट्रवाद व हिन्दुत्व की नीतियों ने देश को बांटने व असहज-अशांत, बनाने में योगदान किया है। सामाजिक, राजनैतिक हल्कों में बेचेनी है। दलबदल रोज का काम हो गया है। देश में लोकतंत्र खतरे में है, यह कहने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। साम्प्रदायिक सौहार्द में गिरावट आई है। धर्म और राजनीति की लड़ाई चल निकली है परन्तु मोदी अपने वाकचातुर्य व प्रचार प्रसार से तगडे झटकों से बचते जा रहे है।
विपक्ष में बिखराव है, आज उनको चुनौती देने वाला कोई नहीं है। वृद्धि दर गिरावट व कोविड काल की असफलताओं को बड़ी चतुराई से अपनी ओर करने की महारत के चलते सरकार में भरोसा कायम रखने में सफल हो रहे है। सरकार की कमियों, भूलों, गलतियों, आरोपों से टकराते विरोधियों को भ्रमित करने की कला में प्रवीण है। अर्थव्यवस्था खासकर रोजगार और मंहगाई के मोर्चे पर पूरा फोकस नहीं हुआ, लोकतांत्रिक आजादी और साम्प्रदायिक सद्भाव सुनिश्चित नहीं हुआ। बढ़ती असमानता ने गरीबों की संख्या व मुसीबत बढ़ा दी, कार्यकाल के घोटालों को आज तक पंहुचने नहीं दिया गया। साम्प्रदायिक दक्षिणपंथी नीतियों से सामाजिक, राजनीतिक स्थितियों को बदल दिया परन्तु संगठन शक्ति, उत्कृष्ट मार्केटिंग से अपने आपको रक्षित रखा।
प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता अब भी उंचाई पर है जो आर्थिक मोर्चे पर सरकार के कमजोर व असफल प्रदर्शन की भरपाई करती है। बढ़ती कीमतों और बेरोजगारी से परेशान भारतीयों की उम्मीदें टूट रही है। भारत में लोकतंत्र खतरे में है, यह भारतीय महसूस करते हैं परन्तु न तो कांग्रेस और न ही विपक्ष लोगों का भरोसा जीतने में सक्षम नजर आ रहे है। यूक्रेन पर रूसी हमला गलत था, भारत ने निष्पक्षता व न्याय का साथ नहीं देकर रूस से गठबन्धन निभाया। मोदी हिन्दुत्व, जनकल्याण और उग्र राष्ट्रवाद के बीच सन्तुलन नहीं कर पाये।
जमीन पर भारतीयों की उम्मीदें फीकी पड रही है। मोदी सरकार नोटबंदी, जीएसटी, दीवालिया संहिता का श्रेय लेती परन्तु वास्तविकता में ज्यादातर उपायों खासकर नोटबंदी व जीएसटी ने जमीनी स्तर पर नुकसान किया है। लाखों छोटे और मध्यम उद्योगों को नई कर प्रणाली अपनाने में संघर्ष करना पड़ा। एक नवीन सर्वे के अनुसार 36 प्रतिशत लोगों की आर्थिक स्थिति खराब हुई। लोग अनिश्चितता और कमजोरी महसूस कर रहे हैं। मंहगाई ने घरेलू बजट को तार-तार कर दिया। उंची कीमतों का चौतरफा असर तमाम आपूर्ति श्रृंखलाओं पर पड़ा है। पारिवारिक आय कम हुई है, एनडीए सरकार की आर्थिक नीतियों का सबसे अधिक फायदा बड़े कारोबारियों व उद्योगपतियों को हुआ है। दैनिक मजदूरी कमाने वालों व किसानों को, वेतन पाने वाले मध्यम वर्ग को कोई फायदा नहीं मिला।
सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकोनामी के अनुसार महामारी की दोनों लहरों में 9.1 करोड़ नोकरियां चली गई। बेरोजगारी दर 2022 में 7.83 फीसदी हो गई, 2021-22 में जीडीपी वृद्धि दर 4.1 फीसदी यानि सबसे धीमी रही, 1.3 करोड़ रोजगार गिरे, उसके केवल कुछ लाख रोजगार मिले, 2022 में कृषि में 14.75 लाख लोग कार्यरत रहे। ईंधन पर कीमतें उंची बनी हुई है, डालर के मुकाबले रूपया गिरने से भी भारतीय अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है।
विपक्ष विहीन मोदी की लोकप्रियता अभी भी बनी हुई है जो आर्थिक मोर्चे पर सरकार के खराब प्रदर्शन की भरपाई करती है। आज लोकसभा चुनाव हो तो संभावित नतीजों के अनुमान अनुसार सीटें कम हो सकती है, वोट कम हो सकते है, एनडीए सरकार की संभावना बनी हुई है। कीमतों में बढ़ोतरी, मंहगाई, बेरोजगारी, आर्थिक विकास, बढ़ती असमानता, साम्प्रदायिक हिंसा, अल्पसंख्यकों में भय, कोविड-19 महामारी की असफलतायें सबसे बड़ी असफलतायेंह ैं तो दूसरी ओर जनता की निगाह में कोविड टीकाकरण, अनुच्छेद 370 हटाना, राम मंदिर निर्माण, काशी विश्वनाथ कोरीडोर निर्माण, कालेधन पर प्रहार, भ्रष्टाचार के आरोपों में कमी सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, लालबहादुर शास़्ी, अटल बिहारी वाजपेयी की श्रेष्ठता कम कर दिखाने की प्रवृत्ति लोगों को अखरती है।
बैंकों व सार्वजनिक संस्थाओं का निजीकरण, पूंजीपतियों को करो में छूट, बकाया की माफी का जनमानस पर असर है परन्तु मार्केटिंग में एक्सपर्ट मोदी का स्थान लेने वाला अभी कोई दृष्टिगोचर नहीं हो रहा। दलबदल से भाजपा की स्थिति मजबूत हो रही है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)