अगर ऊर्जा क्षेत्र में कोयले पर निर्भरता चरणबद्ध तरीके से की जाती है कम तो साल 2050 तक हो सकती है बिजली की कीमत आधी
निशांत की रिपोर्ट
लखनऊ (यूपी) से
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एक नए वैज्ञानिक अध्ययन से पता चलता है कि अगर भारत बिजली क्षेत्र में चरणबद्ध तरीके से अपनी कोयले पर निर्भरता कम करता है तो न सिर्फ साल 2040 की शुरुआत से ही वह बिजली की गिरती कीमतों का फायदा उठा सकता है बल्कि साल 2050 तक बिजली की कीमतों को मौजूदा दरों के मुक़ाबले आधी कर सकता है।
प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर कम्युनिकेशंस के पीयर-रिव्यू जर्नल में प्रकाशित एक नए शोध लेख से पता चलता है कि भारत 2050 तक अपने बिजली क्षेत्र को कोयले से रिन्युब्ल ऊर्जा की ओर तेज़ी से बढ़ता है तो अपनी बिजली की लागत में 46% की कटौती कर सकता है। यह अध्ययन लप्पीनरांता-लाहटी यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी (एलयूटी) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है और इस अध्ययन के अनुसार, कुछ प्रमुख भारतीय राज्यों में 2035 तक 100% सतत ऊर्जा उत्पादन हो सकती है। इतना ही नहीं, इसमें पाया गया है कि कुछ कोयला निर्भर राज्य जैसे उत्तर प्रदेश, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र गुजरात, झारखंड 2040 तक कोयले को समाप्त कर सकते हैं।
अध्ययन में अक्षय ऊर्जा के लिए अपस्फीति लागत का अनुमान लगाया गया है। कोयले की तुलना में सौर और पवन ऊर्जा की लागत में काफी गिरावट आई है और 2050 तक 50 - 60% और गिरने की उम्मीद है। जबकि कोयले से बिजली की प्रति मेगावाट लागत 70% बढ़ने की उम्मीद है और परमाणु ऊर्जा की लागत में 13% से अधिक वृद्धि होने की उम्मीद है।
इसकी तुलना में, 2030 में सोलर पैनल से बिजली की लागत कोयला आधारित बिजली की लागत का 1/5 और 2050 में 1/10 वां होगा। इसी तरह, सौर ऊर्जा 2030 में गैस की तुलना में 50% कम और 2050 में लागत का 1/5 हिस्सा होगा। अध्ययन का अनुमान है कि सौर ऊर्जा की लागत परमाणु ऊर्जा की तुलना में काफी कम होगी। सौर ऊर्जा की लागत 2030 में परमाणु ऊर्जा की लागत का 1/17वां और 2050 में लागत का 1/30 वां होगा। लागत में यह कमी सोलर पैनल और बैटरी की लागत प्रतिस्पर्धात्मकता से सक्षम है और इसके चलते भारत के बिजली क्षेत्र में कोयले की मुख्य ऊर्जा स्त्रोत के रूप में मिली कुर्सी छिनने पूरी संभावना होगी।
इतना ही नहीं, साल 2030 तक कुल बिजली उत्पादन में सोलर की हिस्सेदारी बढ़कर 73% हो जाती है, इसके बाद पवन ऊर्जा (19%) और जल विद्युत (3%) का स्थान आता है। कोयले की स्थापित उत्पादन सयन्त्रों का फंसी हुई संपत्ति बनने का खतरा है, क्योंकि इन संयंत्रों में की क्षमता काफी कम है और जैसे जैसे रिन्यूबल एनेर्जी की भूमिका बढ़ेगी, इन बिजली संयंत्रों के संचालन के में खर्चा बढ़ेगा और मुनाफे में भारी कमी आएगी। और इसी के चलते इनमें हुआ निवेश फंस जाएगा।
इस रिपोर्ट के लेखकों में से एक, मनीष राम समझाते हैं,“सौर में जाना भारत के लिए स्पष्ट और बेहतरीन विकल्प है। आने वाले समय में सौर की लागत और बैटरी भंडारण की लागत में और गिरावट आने की उम्मीद है। इससे ग्रिड संतुलन और पीक डिमांड को प्रबंधित करना और भी आसान हो जाएगा। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि आज जीवाश्म ईंधन आधारित थर्मल पावर क्षमता में कोई भी नया निवेश आर्थिक रूप से अव्यवहारिक है और भविष्य की लचीली बिजली प्रणाली के लिए बोझ हो सकता है।"
भारत के राष्ट्रीय विद्युत योजना 2022 (NEP22) के मसौदे के अनुसार, 2032 के लिए सौर लक्ष्य भारत के पहले के अनुमानों की तुलना में 18% बढ़ गए हैं। भारत ने अपने बैटरी स्टोरेज लक्ष्य को 4 घंटे के स्टोरेज के 27GW से बढ़ाकर 5 घंटे के स्टोरेज के 51GW कर दिया है। जबकि 2020 में जारी सीईए की ऑप्टिमल जेनरेशन कैपेसिटी मिक्स 2029-30 रिपोर्ट की तुलना में 2031-32 स्थापित कोयला क्षमता 18GW कम हो गई थी।
अंत में अध्ययन के लेखकों में से एक, प्रोफेसर क्रिश्चियन ब्रेयर कहते हैं, “भारत के पास पहले से ही 2030 तक महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्य हैं, लेकिन जो कमी है वह है जलवायु तटस्थता के लक्ष्य के साथ अधिक महत्वाकांक्षी दीर्घकालिक लक्ष्य, जो वैश्विक निवेशकों और हितधारकों को एक स्पष्ट संदेश भेजेगा। यह भारत के लिए विशेष रूप से उभरते और विकासशील देशों के लिए एक ट्रेंडसेटर बनने का एक शानदार अवसर है।" (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)