लेखक : राम भरोस मीणा
प्रकृति प्रेमी, 7727929789
www.daylife.page
जाग उठो दुनिया बचाने को,अब समय आ गया लोगों को जगाने का, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
धरती का ताप बड़ा, पानी का वाष्प बड़ा, जीवों का नाशं बड़ा, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
धुआं ओं के बादल बनें, जहरीली हवा बनीं, पग पग पर दुर्गंध बनी, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
नदियों के कंठ सूखे, झरनों के पानी सूखे, पोखरों के किचड़ सूखे, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
चारों और प्लास्टिक फ़ैला, नालों में कूड़ा दान बना, गलियारों में किचड़ महान् बना, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
धरा में हाथों नीचे तक ज़हर घुला, गर्भ में पल रहे शिशु तक पोल्यूशन मिला, बकरी के दूध में रसायन मिला, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
टी बी दमा केंसर चर्म पेट के रोग बड़े, मानसिक संतुलन बिगड़ रहा नई पिंडियों का, बढ़ते तापमान ने ललकारा है, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को।
अपने हाथों पेड़ लगाओं, सब मिल जंगल बचाओं, नदी नालों से अतिक्रमण हटाओ, पानी को लेकर हाथ बढ़ाओ, पृथ्वी पर सबके अनुकूल वातावरण बनाओं, जाग उठो तुम दुनिया बचाने को। (लेखक का अपना अध्ययन एवं लेखक की अपनी निजी रचना है)