राष्ट्रीय एकता के शिल्पी सरदार वल्लभ भाई पटेल

 31 अक्टूबर, जन्मतिथि पर विशेष 

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आज हम जिस विशाल भारत को देखते है उसकी कल्पना बिना वल्लभ भाई पटेल के शायद पूरी नहीं हो पाती। सरदार पटेल एक ऐसे इंसान थे जिन्होंने देश के छोटे-छोटे रजवाड़ों और राजधानों को एक कर आजाद भारत में सम्मिलित किया। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जब भी बात होती है तो सरदार पटेल का नाम सबसे पहले ध्यान में आता है। उनकी दृढ़ इच्छा शक्ति, नेतृत्व कौशल का ही कमाल था 600 देशी रियासतों का भारतीय संघ में विलय कर सकें। उनके  द्वारा किए गए साहसिक कार्यो की वजह से ही उन्हें लौह पुरूष और सरदार जैसे विशेषणों से नवाजा गया। बिस्मार्क ने जिस तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्वपूर्ण  भूमिका निभाई उसी तरह वल्लभ  भाई पटेल ने भी आजाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। 

सरदार पटेल सभी धर्मों का सम्मान आदर करते थे और हिन्दू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। जब वे देश के गृह मंत्री थे तो उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के बाद सांप्रदायिक घृणा व हिंसा भड़काने के आरोप मे 2 फरवरी 1948 को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया था। उसके बाद 11 सितम्बर 1948 को संघ के तत्कालीन सर संघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर को एक पत्र में पटेल ने लिखा था। कि ”संघ से जुडे़ लोगों के भाषण जहर से भरे है। केवल हिन्दूओं और उनके संगठनों को बचाने के लिए इस तरह का जहर फैलाने की कोई जरूरत नहीं है। इस तरह के जहर का अंतिम नतीजा यही होता है कि देश को अनमोल गांधीजी को खोना पड़ता है।“ बाद में संघ की तरफ से 1949 मेे पटेल की पूर्व शर्त के अनुसार लिखित में यह भरोसा दिलाने पर कि संघ कभी राजनीति नहीं करेगा और केवल पूर्णतया संस्कृति से जुड़े कार्यो में ही संलग्न रहेगा तब 11 जुलाई 1949 को संघ से प्रतिबंध हटाया गया। 

वर्ष 1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने ब्रिटिश राज की नीतियों के विरोध में अहिंसक और नागरिक अवज्ञा आंदोलन के जरिए खेड़ा,  बरसाड़ और  बारदोली के किसानों को एकत्र किया। अपने इस काम की वजह से देखते ही देखते वह गुजरात के प्रभावशाली नेताओं की श्रेणी में शामिल हो गयें थें। जन कल्याण और आजादी के लिए चलाए जाने वाले आंदोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका के चलते उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस  में महत्वपूर्ण स्थान मिल गया। गुजरात  के बारदोली ताल्लुका  के लोगों ने उन्हें ‘सरदार’ नाम दिया और इस तरह वह सरदार वल्लभ भाई पटेल कहलाने लगें। 

भारत आजाद तो हो गया था पर उसे यह आजादी पाकिस्तान की कीमत पर मिली थी और उसके सामने चुनौती थी अपनी छोटी-छोटी रियासतों को एक करने की वरना एक बड़े भारतवर्ष का सपना शायद चकनाचूर हो सकता था। ऐसे में सरदार वल्लभ भाई पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि ‘रियासतों को तीन विषयों - सुरक्षा, विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा’। 

सरदार पटेल ने पी. वी. मेनन के साथ मिलकर कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देशी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन को छोड़कर शेष सभी रजवाडा़े ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें ‘भारत संघ’ में सम्मिलित हो गई। 

जूनागढ़ के नवाब के विरूद्ध जब विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान  चला गया और जूनागढ़ भारत में मिल गया। जब हैदराबाद के निजाम ने भारत विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहां सेना भेजकर निजाम का आत्मसर्मपण करा लिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह 

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)