लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)
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आजादी के समय भारत की जनसंख्या 33 करोड़ थी जो 2020 में बढ़कर 135 करोड़ हो जाने का अनुमान है। भारत का क्षेत्रफल मात्र 2.46 प्रतिशत है जबकि दुनिया की लगभग 16 प्रतिशत आबादी भारत में हैं। भारत में आज जन्मदर प्रति हजार चालीस से उपर है। आबादी की वृद्धि के कारण जनघनत्व जो 1901 में प्रति वर्ग किलोमीटर 165 था वह बढ़कर 2001 में 689 हो गया। चीन में वृद्धि दर 1.0 प्रतिशत है तो भारत में दुगनी यानि सालाना दर 1.93 प्रतिशत है। इस दर से आबादी का बढ़ना देश के हित में नहीं है। जनसंख्या की यह वृद्धि प्रगति के सारे प्रयत्नों को निरर्थक व निष्फल कर रही है।
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) में स्वीकार किया गया था कि जनसंख्या वृद्धि व सीमित संसाधनों पर पड़ते दबाब को देखते हुए परिवार नियंत्रण तथा जनसंख्या नियंत्रण की गंभीर आवश्यकता है, जन्म दर को कम कर अर्थव्यवस्था के अनुरूप लाना होगा। परन्तु वृद्धि दर में अपेक्षित कमी नहीं आई है व जनसंख्या नियंत्रित नहीं हुई। भारत में कई राज्यों की जनसंख्या की बराबरी दुनिया के बड़े देशों के साथ की जा सकती है। भारत हर साल आस्ट्रेलिया की कुल आबादी के बराबर आबादी बढ़ा लेता है।
1977 में परिवार नियोजन कार्यक्रम में तेजी हुई, राजनीतिक दल, आर.एस.एस. एवं जनसंघ आदि ने विरोध किया । राजनैतिक उलटफेर हुई जिससे इस कार्यक्रम का नाम ही बदलकर परिवार कल्याण कर दिया गया। सन् 1993 में डा. एम.एस.स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट के आधार पर 2000 में राष्ट्रीय जनसंख्या नीति की घोषणा की गई। भारत जनसंख्या स्थिरीकरण की चुनौती से पिछले 70 साल से जूझ रहा है। शहरों और ग्रामों के बीच की खाई बढ़ती जा रही है। पूर्व में मृत्यु दर अधिक होने से जन्म-मरण के बीच संतुलन हो जाता था व आबादी नहीं बढती थी। 1901 से 1921 के बीच आबादी नहीं बढ़ी। जैसे-जैसे राज्यों में चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार हुआ मृत्यु दर घटी और जन्म दर कम नहीं होने के कारण 1901 व 1961 के बीच 60 वर्षो में अत्यधिक वृद्धि दिखाई दी।
जनसंख्या का नियंत्रण नहीं होना कई क्षेत्रों में चुनौती पैदा कर रहा है। सबसे बड़ी चुनौती आर्थिक क्षेत्र में है। जनसंख्या के बेतहाशा बढने से भोजन, वस्त्र, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पेयजल आदि क्षेत्रों में संकट पैदा हो गया है। देश की बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे जी रही है। स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। कुपोषण से बड़ी संख्या में बच्चों की स्त्रियों की मृत्यु होती है। निरक्षरों व अशिक्षितों का बड़ा वर्ग व बेरोजगारों की फौज बढ़ती जा रही है। जनसंख्या वृद्धि से खेती योग्य भूमि कम हो रही है, छोटे-छोटे टुकडों में बंट रही है। मजदूरों का पलायन व अपराधों में वृद्धि हो रही है, अस्थिरता व असुरक्षा की भावना जाग्रत हो रही है।
जनसंख्या के लगातार बढ़ने से आवश्यकताएं भी निरंतर बढ़ रही है। शिक्षा व स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएं सबको उपलब्ध नहीं हो रही है। जनसंख्या का दुष्प्रभाव पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। भूमि, वन, पहाड़, खनिज सभी प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बढ़ रहा है। नदियों का जल दूषित हो रहा है। भूमिगत जल दूषित हो रहा है, प्रदूषण बढ़ रहा है। प्राकृतिक असंतुलन बढ़ रहा है। मनोवैज्ञानिक स्तर पर भी नागरिकों पर निषेधात्मक असर पड़ रहा है।
धार्मिक विश्वास भी जनसंख्या बढ़ोतरी का कारण है। उंची साक्षरता से भी कुछ समुदायों में जनसंख्या दर कम नहीं हो रही है। आर्थिक स्थिति में सुधार आने के साथ महिलाएं घर पर अघिक रहती है। अल्पसंख्यकों में वर्क पाटीसीपेशन रेट 31 प्रतिशत है। जनसंख्या वृद्धि सब समुदायों से ज्यादा है। गरीबी व अशिक्षा ही नहीं संस्कृति भी जिम्मेदार है। धर्मशास्त्रों में तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार अंकित किया गया जनसंख्या संबंधी वह आज की परिस्थितियों के अनुसार मान्य नहीं हो सकता। इस्लाम धर्म की मान्यता है अल्लाह की मर्जी में हस्तक्षेप नहीं किया जाये। बहु पत्नी प्रथा है, संतान उत्पत्ति में कृत्रिम अवरोध नहीं डालना चाहिए। बाईबिल में कहा है फूलों-फलो, पृथ्वी में भर जावो उसे अपने वश में कर लो। हिन्दु धर्मशास्त्रों में भी जब तक घरती की वहन क्षमता अनुमति देती है तब तक जनसंख्या वृद्धि कर सकते हो।
राजस्थान में देश की आबादी का 5.6 प्रतिशत हिस्सा है जबकि उपलब्ध पानी का केवल एक प्रतिशत उपलब्ध है। बढ़ती आबादी से पेयजल, आवास, रोजगार, खाद्यान्न की कमी का दुष्परिणाम सामने आ रहा है। जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण है महिला साक्षरता में कमी, जो राष्ट्रीय औसत से कम है। लिंग अनुपात में राज्य पिछड़ा है। महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक स्थिति कमजोर है। निरक्षरता, प्रजनन एवं शिशु स्वास्थ्य की जानकारी का अभाव, स्वास्थ्य सेवाओं की कमी, गरीबी है। दो तिहाई प्रसव अप्रशिक्षित व्यक्तियों द्वारा करवाया जाता है। संतति निरोध के साधनों का उपयोग भी यथोचित नहीं होता। बाल विवाह तथा परिवार कल्याण कार्यक्रमों का ज्ञान नहीं है। पेयजल की कमी, खाद्य असुरक्षा, ईंधन समस्या, घनत्व में वृद्धि, बेरोजगारी, बढ़ती आबादी के दुष्परिणाम है। विवाह की उम्र में वृद्धि, मातृ, शिशु बाल मृत्यु दर में कमी, जनसंख्या, शिक्षा, संतति निरोध, महिला साक्षरता, महिला साक्षरता, लैंगिक समानता, परिवार कल्याण कार्यक्रम का प्रभावी प्रबन्धन, सुरक्षित गर्भपात व प्रसव, निजी क्षेत्र की भागीदारी व सेवाओं में गुणवत्ता आवश्यक है। संतति नियम को अनिवार्य किया जाये, जागरूकता अभियान चलाया जाये। राजनेता, उद्योगपति, जनप्रतिनिधि, बुद्धिजीवि, समाजकर्मी, शिक्षित समुदाय आदर्श प्रस्तुत करें। गंभीर, ठोस, व्यवहारिक और परिणामदायक प्रयास किये जाये।
राज्य में परिवार कल्याण कार्यक्रम का क्रियान्वयन अत्यन्त धीमी गति से चल रहा है। जनसंख्या नीति के लक्ष्य प्राप्त करने की इच्छा राजनैतिक प्रशासनिक क्षेत्रों में नहीं है। जनप्रतिनिधियों व सरकारी कर्मचारियों के लिए दो बच्चों की कानूनी बाध्यता से व महिला शिक्षा वृद्धि से भी जनसंख्या वृद्धि में कोई कमी नहीं आई। सभी स्तरों पर समुचित वातावरण, जनसंख्या कार्यक्रम के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक है। यह कार्यक्रम जनभागीता के आधार पर ही सफल हो सकता है। यह कार्यक्रम जन-आन्दोलन का स्वरूप ले, निष्ठावान अधिकारियों का उपयोग हो व नियमित समीक्षा आवश्यक हैै।
जनसंख्या विस्फोट की रोकथाम को प्रत्येक धर्म समुदायों का राष्ट्रीय कर्तव्य घोषित किया जाये जिस पर अमल करने की बाध्यता भी आवश्यक हो। जनसंख्या का नियंत्रण सर्वोच्च राष्ट्रीय समस्या है। इससे धर्म समुदायों की निम्नस्तरीय राजनीति से उपर उठकर युद्धस्तर पर लड़ा जाना चाहिए। धर्म के हानि-लाभ, चुनावी आंकड़ों से अलग रखना चाहिए। समाज में असमानता भी जनसंख्या वृद्धि का कारण है। विवाह की कानून सम्मत आयु का परिपालन जनसंख्या स्थिरीकरण में कारगर सिद्ध हो सकता है। मातृ-शिशु मृत्यु दर कम होना महत्वपूर्ण कारक है। पुत्र की चाहत के कारण लिंग निर्धारण व बच्चों की भ्रूण हत्या की प्रवृति बढ़ी है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार कन्या भ्रूण हत्या के कारण भारत में एक हजार पुरूषों पर सिर्फ 918 महिलायें है। ग्रामों में परिवार नियोजन के प्रति उदासीन है, अधिकाधिक बच्चे पैदा करने को गौरव की बात मानते हैं।
जनगणना आंकड़ों ने, मकानों, परिवारों को उपलब्ध सुविधायें, पक्के आवास, पेयजल व बिजली की आपूर्ति, सरकार के दावों को समाप्त कर दिया है। ग्रामीण क्षेत्रों में 43 प्रतिशत परिवार दो कमरे के मानदण्ड को पूरा नहीं करते, सुरक्षित पेयजल पूर्ति अभी कोसों दूर हैं। ग्रामीण क्षेत्रों व शहरी अल्प आय वर्ग में विवाहित दंपत्तियों के लिए अलग शयन कक्ष उपलब्ध नहीं है। समग्र देश में केवल 36.7 प्रतिशत परिवारों को नल से पेयजल उपलब्ध में ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 25 प्रतिशत परिवारों को यह सुविधा है। ग्रामीण क्षेत्रों में राजस्थान में 22 प्रतिशत, बिहार में 1.4 प्रतिशत, उडिसा में 2.8 प्रतिशत, आसाम व छत्तीसगढ़ में 5 प्रतिशत, पश्चिमी बंगाल में 7 प्रतिशत, मध्यप्रदेश में 9 प्रतिशत है।
परिवार नियोजन के लक्ष्य हासिल करने के लिए हमें स्वास्थ्य तंत्र को अधिक चुस्त व जिम्मेदार बनाना होगा। दो बच्चों को जन्म दे चुके परिवार को नियोजन के लिए प्रेरित किया जाये। नसबंदी कराने वाले स्त्री-पुरूषों को विविध प्रकार की आर्थिक सुविघाये दी जाये। ऋण देने, रिहायशी मकान आवंटन में प्राथमिकता, चिकित्सा, बीमा के लाभ, मुफ्त शिक्षा, चिकित्सा, नसबंदी आपरेशन कराने के बाद सवेतन छुट्टी परन्तु सरकार व प्रशासन की संवेदनहीनता प्रमुख कारण है। 1980-81 में परिवार कल्याण में सरकारी बजट का कुल सवा तीन फीसदी हिस्सा खर्च किया गया, आज कम होते-होते राष्ट्रीय बजट का 0.98 प्रतिशत हो गया। सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों की सेहत बिगडी हुई है व आर्थिक तंत्र की विफलता दर्शाती है।
जब तक असमानता बनी रहेगी, गरीब घरों में अधिक बच्चे पैदा होते रहेंगे। गरीब लोगों की जीवन स्थिति की यही तार्किक एवं मानवीय परिणिती है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, राजनैतिक नेतृत्व की घोर असफलता है। गरीबी, सामाजिक अन्याय, अस्वास्थ्य, प्राथमिक शिक्षा, निरक्षरता आदि की बुनियादी समस्याओं को शीघ्र हल करने की आवश्यकता है। शादी के पंजीकरण अनिवार्य बनाया जाना चाहिए, स्कूलों में बाल विवाह गैर कानूनी है व बालिकाओं व छोटी उम्र के बच्चों के लिए हानिकारक है, यह शिक्षा दी जाये।
जनसंख्या को प्रभावित करने वाले कारक सांस्कृतिक किस्म के है। विवाह के प्रति रवैया, गर्भधारण से अपेक्षाएं, दो बच्चों के जन्म के बीच अन्तर, धार्मिक सोच, पुत्र की चाहत मुख्य है। पुरूष नसबंदी के संबंध में भ्रांतियां, जनसंख्या के संबंध में साम्प्रदायिक विभाजन और धर्मगत ध्रुवीकरण, धार्मिक आधार पर उकसाना, राष्ट्रीय नजरिये से सभी को समझाना होगा। इस देश के दूसरे नम्बर के बड़े धर्म समुदाय है। अन्य समुदायों से ज्यादा पिछड़ा है। जनसंख्या विस्फोट की रोकथाम को देश का प्रत्येक धर्म सम्प्रदाय राष्ट्रीय कर्तव्य घोषित किया है। जनसंख्या की बढ़ोतरी को वोट बैंक की बढ़त के रूप में नहीं ले। धार्मिक ध्रुवीकरण से समस्या और उलझ जायेगी। जनसंख्या नियंत्रण साम्प्रदायिक प्रताडना व राजनैतिक आधार से नहीं हो तभी कुछ सफलता मिल सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)