लेखक : नवीन जैन
स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)
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हमारे बड़े बूढ़े अपने पोपले मुंह से आज भी कहते हैं पढ़यो लिख्यो गंवार। इस नस्ल के लोगों की कभी भी कोई कमी नहीं रही। और तो और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ये लोग छाए रहते हैं। पहले स्वामियो के स्वामी डा. सुब्रमण्यम स्वामी ऐसे ही हुआ करते थे, जिन्हें राजनीति का जासूस भी कहा जाता रहा। अब उनकी पुण्य परंपरा का दायित्व दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल निबाहते दिखाई पड रहे हैं।क्या गजब है कि उक्त दोनों उद्भट विद्वान आई आई टी खड़गपुर के प्रॉडक्ट हैं। दोनों ही तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा नहीं करे तो जैसे दोनों को नींद ही न आए। अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों प्रेस कांफ्रेंस में कह दिया कि भारतीय करेंसी और अर्थव्यवस्था चूंकि बेहद लचर होती जा रही है इसलिए भारतीय नोटों पर लक्ष्मीजी और गणेशजी की तस्वीरे छापी जाएं। यह बात उन्होंने ठीक दीपावली के अवसर पर कही और यह पैगाम केंद्र सरकार को भी भेज दिया।
मालूम हो कि मुस्लिम बहुल इंडोनेशिया में सालों से गणेशजी को विघ्नहर्ता के रूप में माना जाता है। वहां शायद इसीलिए नोटों पर देवों के देव गणेशजी की तस्वीर छापी जाती है। मुस्लिम बहुसंख्यक इंडोनेशिया एकमात्र ऐसा देश है वहां आज भी भारतीय सनातन संस्कृति कण कण में बोलती है। भारतीय नोटों पर लक्ष्मीजी की तस्वीर छापी जानी चाहिए जिससे देश का पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी पाने का लक्ष्य पूरा हो जाएगा। डॉक्टर स्वामी ने यह पुड़िया मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में खोली थी जो पूरी दुनिया में बंट गई। करीब पच्चासी वर्ष के हो चुके हार्ड वर्ड से भी पढ़े उक्त सज्जन के बारे में कहा जाता रहा है कि उन्हें तो अक्ल का अजीर्ण है या लाइमलाइट में रहने का लाइलाज रोग है।
बड़ा मन मैसोस कर कहने को मजबूर होना पड़ रहा है कि अच्छी भली सरकारी नोकरी छोड़कर जब मफलर मेन कहे जाने वाले अरविंद केजरीवाल राजनीति में आए थे, तो जल्दी ही खासकर यूथ आइकन बन गए थे। लोग उनमें देश का नया भविष्य तक देखने लगे थे।इसीलिए उनकी पार्टी ने दिल्ली के विधानसभा चुनाव में भाजपा समेत कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर झाड़ू चला दी थी।फिर पंजाब में भी यही हुआ,लेकिन यह एक ऐसा बिंदु हो सकता है, जहां जाकर केजरीवाल की कथनी और करनी में फर्क को समझा जा सकता है। उन्होंने उन अस्सी के पार जा रहे गांधीवादी अन्ना हजारे से गंडा ताबीज बंधवाया था, जिन्हें लोकपाल और भ्रष्टाचार विधेयक आंदोलन के वक्त विश्व मीडिया ने आधुनिक गांधी कहकर माथे पर बैठा लिया था, लेकिन अन्ना को तत्काल अपने महाराष्ट्र स्थित गांव राने गांव सिद्धि लौटना पड़ा था।
ठीक है कि उस दौरान अन्ना हजारे नाम से देश में जलजला या क्रांति तक आने की दस्तक होने लगी थी, लेकिन इसमें कोई भी आधुनिक विचार, या नया सोच सिरे से गायब था। इतिहास बार बार सूचित करता है कि कोई भी क्रान्ति किन्हीं नए विचारों के बिना शून्य नतीजा ही देती है। हुडदंग की पोल खुलते देर नहीं लगती। हां, यदि कोई रेवड़ी बांटने को ही कोई नया विचार मान ले तो फिर यह भी क्यों नहीं मान लिया जाना चाहिए कि खैरात या भीख भी तो वैचारिक क्रांति हो सकती है। भारत में तो चार्वाक की नीति पर चलकर आज भी उधारी का घी पीने की अथक परंपरा है। केजरीवाल ने दिल्ली के बाद पंजाब में कहा जाता है कि एक वैसे ही फटेहाल सूबे को रेवड़ियां बांटकर आर्थिक रूप से कहीं का नही रखा है। अब वे गुजरात के पेट से निकलकर नई दिल्ली की सबसे बड़ी कुर्सी में चार चांद लगाने की कोशिश करें, तो इससे उन्हें कोई रोक तो सकता नहीं,क्योंकि गुजरात माडल से ही तो नरेंद्र मोदी भारत और दुनिया भर में छाए हैं। फिर अमित शाह भी इसी सूबे से आते हैं।
गुजरात के आसन्न विधान सभा चुनाव का जो पहला चुनाव पूर्व सर्वे हुआ था, उसमें केजरीवाल की आप पार्टी भाजपा और कांग्रेस को अच्छा जोर करवा रही थी, लेकिन मोदी और शाह का भविष्य इसी राज्य पर ही टिका हुआ है। इसलिए मोदी के साथ शाह ने वहां लगातार दौरों और घोषणाओं की बारिश करके हवा का रुख फिलहाल तो बदल दिया है। इसीलिए यह क्यों नहीं माना जाए कि बोखलाहट में अरविंद केजरीवाल जैसे पढ़े लिखे आदमी को लक्ष्मी जी और गणेश जी की याद आ रही है।
यह कुटिलता तो हैं ही, अंध विश्वास भी है एक तरह का।अरविंद केजरीवाल की पार्टी भले सत्ता का सुख भोगने की अधिकारी हो, लेकिन गुजरात जैसे मेहनत कश सूबे को अंध विश्वासी बनाकर निकम्मा बनाने की इजाजत कैसे और क्यों दी जा सकती है? केजरीवाल को यह भी याद रखना चाहिए कि जिन गांधी को वे भगवान की तरह पूजते हैं उन्हीं गांधी ने यह भी कहा था कि भारत की गरीबी कोई नैसर्गिक नहीं है बल्कि यहां के लोगो का कोरा निकम्मापन है निक्कमापन। लोग काम ही नहीं करना चाहते क्या गज़ब संयोग है कि गांधीजी भी गुजरात से ही आते थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)