कांग्रेसजनों को सरदार पटेल की सीख : डा.सत्यनारायण सिंह

 

लेखक : डा.सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड पूर्व आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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30 मार्च 1954 को संयुक्त राजस्थान के उद्घाटन के समय गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने अपने भाषण मंे कांग्रेसजनो को सच्चे दिल से गरीबों की सेवा करते रहने की अपील की थी। वर्तमान राजनैतिक स्थितियों मंे कांग्रेसजनांे हेतु उनके भाषण को अविकल रुप से प्रस्तुत कर रहा हॅू।

यहां जो लोग कांग्रेस में काम करने वाले है, उनसे मैं चन्द बातें कहना चाहता हूं, क्योंकि मैं खुद कांग्रेस का सेवक हूं। कांग्रेस के सिपाही की हैसियत से बहुत साल तक मैंने काम किया है। मैं खुद मानता हूं कि मैं अभी तक भी एक सिपाही हूं। लेकिन लोग जबरदस्ती मुझसे कहते हैं कि मैं सिपाही नहीं, सरदार हूं। लेकिन असल में मैं सेवक हूं। इसलिए मेरी सरदारी अगर हो भी, तो वह कोई चीज नहीं है। मैं अपने कांग्रेस के सिपाहियों से अदब के साथ कहना चाहता हूं कि आप लोगों को समझना चाहिए कि हमारी इज्जत या हमारी प्रतिष्ठा किस-किस चीज में है?

हम लोग यह दावा करते हैं कि हमारी जगह आगे होनी चाहिए। दावा करने का हमारा अधिकार तो इसलिए बना कि हम महात्मा गांधी जी के पीछे चलते थे। इसलिए वह जगह हमें मिली। आज यदि हिन्दुस्तान स्वतंत्र हुआ है, तो हमारी कुर्बानी से हुआ हैें। हम में से बहुत से लोग ऐसे हैं, जो समझते हैं कि हमने बहुत कुर्बानी की है,ठीक हेै।  लेकिन जो नई कुर्बानी करनी चाहिए, वह कुर्बानी न करो तो पिछली की गई कुर्बानी भी व्यर्थ हो जाती है, कुर्बानी होती है, कडुवा घूंट पीने से। हम मान-अपमान भी सहन कर जाएं और सच्चे दिल से गरीबों की सेवा करते जाएं, तो कुर्बानी उसी में है। उसी रास्ते पर चलने से हमारी असली इज्जत होगी। आज किसी-किसी जगह पर मैं देखता हूं। हम में जो आपसी नम्रता होनी चाहिए, उसका अभाव है। 

कांग्रेसमैन का पहला कर्तव्य तो यह है कि वह नम्र बने। सेवक बनने का जिसका दावा है, वह अगर नम्रता छोड़ दे ओर उसमें अभिमान का अंश पैदा हो जाए, तो वह सेवा किस तरह करेगा? सत्ता लेने के लिए कोशिश करना हमारा काम नहीं है। सत्ता हम पर ठूंसी जाए, तब वह और बात है। सत्ता खींचने के लिए हम अपनी शक्ति नही लगाएं। छोटी-छोटी चीजों का आग्रह करने वाले लोग कांग्रेस को नहीं पहचानते। ऐसी बातें वहीं कर सकते हैं, जिन्होंने कांग्रेस में सच्चा काम नहीं किया है। लेकिन सच्चे कांग्रेसमैन को तो लोग धक्का मारकर आगे बैठायेंगे क्योंकि वह सच्चा सेवक होगा। 

मैं आप से कहना चाहता हूं कि मैं कई सालों तक कभी कांग्रेस के प्लेटफार्म पर भी नहीं गया था। मैं कभी व्याख्यान नहीं देता था और आज भी मुझे जब कोई व्याख्यान देना पड़ता है, तो मुझे कंपकंपी छूटती है क्योंकि मैं नहीं चाहता कि मेरी जबान से कोई भी ऐसा शब्द निकल जाए, जिससे किसी को चोट लगे, जिससे किसी को दर्द हो, जिससे किसी को नुकसान पहुंचे। मुंह से ऐसा व्यर्थ शब्द निकालना अच्छी बात नहीं है। यह सेवा का काम नहीं है। तो मैं यह कहता हूं कि जो सिपाही है, वह धरती पर चलता है, इसलिए उसको गिरने का कोई डर नहीं है। मैंने कहा कि सिपाही सदा जमीन पर चलता है। लेकिन जो अधिकारी बन गया, अमलदार बन गया, वह ऊपर चढ़ गया, उसको तो कभी गिरना ही है। यदि वह अपनी मर्यादा न रखे और मर्यादा की जगह न संभाले तो वह गिर जाएगा और उसको चोट लगेगी। जो अधिकारी बनता है, उसको अधिकारी पद संभालने के लिए रात-दिन जाग्रत रहना चाहिए। यदि आप जाग्रत न रहेंगे तो आप को जरूर गिरना है। 

मैं कांग्रेस के कार्यवाहकों से उम्मीद रखूंगा कि हम अधिकार के पद की इच्छा न करें, मोह न करें, लालच न करें। जहां तक काम करने के लायक और लोग हमें मिल सकें, उन्हें हम आगे करें और उनसे काम लें। यदि खुद हमारे लिए इस जगह पर बैठना आवश्यक हो गया, तो हमारा दिल साफ होना चाहिए, हमारी आंख साफ होनी चाहिए और हमारी जबान साफ होनी चाहिए। इस तरह से आप काम न करें तो आप अधिकार के योग्य नहीं है। तो आज तक जिनके पास सत्ता थी उनकी हम टीका भी करते थे और सारा कसूर उन्हीं पर डालते थे। आज वह सारा बोझ हम पर आ गया है। अब राजपूताना भर में कहीं कुछ भी बिगाड़ हो, तो उसका सब बोझ हमारे ऊपर पड़ेगा। उसमें यदि कोई भलाई होगी, तो उसके श्रेय का पहला हिस्सा उन लोगों को मिलना चाहिए, जिन्होंने सत्ता छोड़ी। इसलिए मैं आपके हृदय से अपील कर आपको जाग्रत करना चाहता हूं कि यदि सच्चा त्याग करना हो, तो मान-अपमान का त्याग करने और निःस्वार्थ सेवा करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।

मैं आप लोगों से यह भी कहना चाहता हूं कि हम लोग बहुत दिनों तक लडे़। हमें परदेशियों के साथ लड़ना था, परदेशी ताकत के साथ लड़ना था। गुलामी काटने का वही एक रास्ता था। पर आज हमें किसी के साथ लड़ना नहीं है। आज हमें अपनी कमजोरियों के साथ ही लड़ना है। तभी हम प्रदेष को उठा सकते है, नहीं तो नहीं उठा सकते। आज तक जब हम लड़ते थे, तो हमारी लड़ाई का एक हिस्सा कानून भंग करने का था। गांधी जी ने हमको यह सिखाया था कि जो स्वेच्छा से कानून का आदर करता है, वही कानून का अनादर कर सकता है। तो हमारी यह खासियत होनी चाहिए कि हम सत्ता के मान का और कानून का ख्याल रखें। आज कानून को भंग करने का समय नहीं है। आज हमें अपने कानून की प्रतिष्ठा बढ़ानी है। जिन व्यक्तियों ने    त्याग किया है, उनकी प्रतिष्ठा किसी न किसी तरह से बढ़े, वह कम न हो, वह देखना हमारा कर्तव्य है। हम चाहते हैं कि राजस्थान की प्रजा पुलिस के डंडे के डर से शान्ति न रखे, बल्कि राजधर्म और प्रजाधर्म को समझकर शान्ति रखें, तब हमारा काम चल सकेगा।

हमें राजपूताना की प्रजा को प्रजाधर्म सिखाना है। तो प्रजाधर्म तो यह है कि प्रजा अपना दरवाजा खुला रखे और गरीब अपनी झोपड़ी को अपना किला समझ ले। उसको भी पुलिस की जरूरत नहीं पड़े। इस प्रकार की हवा हम पैदा करें, तब हम राजपूताना को उठा सकते है और तब हम अपना कर्तव्य पूरा कर सकते है। कांग्रेस में काम करने वाले जो लोग है, जिन्होंने आज तक इतनी कुर्बानी की है और काफी कष्ट उठाया है, उनकी परीक्षा का समय अब आया है। उनको तो अब दूसरे रास्ते पर चलना है। 

दुनिया में आखिर सब से बड़ी चीज क्या है? धन कोई बड़ी चीज नहीं है, न सत्ता ही कोई बड़ी चीज है। दुनिया में सब से बड़ी चीज इज्जत या कीर्ति है। आखिर महात्मा गांधी के पास और क्या चीज थी? उनके पास न कोई राज गद्दी थी, न उनके पास शमशेर थी, न उनके पास धन था। लेकिन उनके त्याग और उनके चरित्र की जो प्रतिष्ठा थी, वह और किसी के पास नहीं है। वही हमारे हिन्दुस्तान की संस्कृति है। हम गुलाम इसलिए बने थे कि हम  आपस में एक दूसरे के साथ लड़े, खतरे के समय हम लोगों ने एक दूसरे का साथ नहीं दिया था। आज यह पहला मौका है, जब हिन्दुस्तान एकत्र हुआ है। अब वह इतना बड़ा है, जितना इतिहास में पहले कभी नहीं था। तो जो एकता आज हुई है, उसको हम मजबूत बनाएं, जिससे भविष्य में हमारी स्वतंत्रता को कभी कोई हिला न सके। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)