लेखक : सुरेश भाई
(लेखक पर्यावरणविद व जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं।)
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गंगा की सफाई पर लगभग 12,109 करोड़ से अधिक खर्च हो चुके हैं। जब नरेंद्र मोदी जी सन 2014 में देश के प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने गंगा की निर्मलता और अविरलता के लिए नमामि गंगे मंत्रालय का शुभारंभ किया, जिसके अंतर्गत नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का गठन किया गया। गंगा की सफाई के लिए 20 हजार करोड़ का बजट निर्धारित किया। इसके बावजूद अब तक मेरठ, कानपुर, प्रयागराज, वाराणसी में जल शोधन के लिए जो 35 एसटीपी बनाए गए हैं उसमें से 27 की क्षमता मानक के अनुसार नहीं है यानी कि इन शहरों की जितनी गंदगी गंगा में जा रही है वह पूरी तरह साफ नहीं कर पा रही है। यहां गंगा के किनारे के शहरों से लगभग 230 गंदे नाले रहे हैं जो प्रतिदिन 2450 एमएलडी गंदा पानी गंगा में उड़ेल देते हैं।
उत्तर प्रदेश में यदि 35 एसटीपी प्लांट काम करने लग जाए तो उनसे 1493 एमएलडी गंदा पानी का शोधन होना चाहिए था। लेकिन इसमें से केवल 8-9 एसटीपी भी पूरी तरह काम नहीं कर पा रहे हैं। इस विषय पर पिछले दिनों इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायधीश राजेश विंदल की खंडपीठ ने कहा है कि नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा का काम बहुत धोखा देने वाला है। यह पैसे बांटने की मशीन बन गई है। उच्च अदालत ने कहा कि जमीन पर काम नहीं दिखाई दे रहा है। और पर्यावरण इंजीनियरों की कार्यशैली पर भी सवाल उठाया गया है। दूसरी ओर जहां गंगा का उद्गम है वहां की हालत दिन-प्रतिदिन बहुत चौंकाने वाली है। हाल के दिनों में भारतीय वन्य जीव वैज्ञानिक की एक टीम के द्वारा किए गए शोध से पता चल रहा है कि गंगाजल को शुद्ध रखने वाले मित्र जीवाणु (माइक्रो इनवर्टीब्रेट्स) प्रदूषण के कारण तेजी से विलुप्त हो रहे हैं जिसमें कहा जा रहा है कि भागीरथी नदी में गोमुख से लेकर देवप्रयाग तक कई स्थानों पर मित्र जीवाणुओं संख्या बेहद कम हो गई है। यही स्थिति अलकनंदा नदी में माणा से लेकर देवप्रयाग तक बताई जा रही है।
वैज्ञानिकों के अनुसार दोनों नदियों में जीवाणुओं का कम पाया जाना इस बात का संकेत है कि यहां की जल की गुणवत्ता फिलहाल ठीक नहीं है। माना जा रहा हैं कि ऑल वेदर रोड के साथ ही नदियों के किनारे बड़े पैमाने पर किए जा रहे विकास कार्यों का मलवा सीधा नदियों में डाला जा रहा है और नदियों के किनारे बसे गांव व शहरों से निकलने वाला गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट के ही नदियों में सीधे प्रवाहित हो रहा है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ बीपी उनियाल और डॉ निखिल सिंह के शोध से यह बात सामने आयी है कि बैटिरयाफोस बैक्टीरिया गंगाजल के अंदर उत्पन्न होने वाले अवांछनीय पदार्थ को खाते रहते है, जिससे गंगा जल की शुद्धता बनी रहती है। देश की अन्य नदियां 15 से लेकर 20 किलोमीटर के बहाव के बाद ही खुद को साफ कर पाती है और गंदगी नदियों की तलहटी में जमा हो जाती है।
जबकि गंगा एक किलोमीटर के बहाव में खुद को साफ कर देती है। लेकिन यह तभी संभव है जब उसमें अंधाधुंध गंदगी न जा रही हो। दूसरी ओर देखें तो वन्यजीव संस्थान के पूर्व डीन डॉ जीएस रावत के मुताबिक गोमुख ग्लेशियर पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव को लेकर एक अध्ययन में कहा जा रहा है कि जहां से बर्फ का इलाका सिमट रहा है वहां पर 50 हजार तरह के ऐसे बैक्टीरिया पैदा हो गए हैं जो बर्फ विहीन इलाके को हरियाली में बदल रहे हैं। अतः गंगा को जन्म देने वाला यह ग्लेशियर 200 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है जहां बर्फ से खाली हुए क्षेत्र को हरियाली में बदलने की ताकत इन बैक्टीरिया प्रजाति में मिली है। लेकिन इसका प्रभाव जीव धारियों पर क्या पड़ेगा यह भविष्य ही बताएगा।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मुताबिक विष्णुप्रयाग से लेकर हरिद्वार तक गंगाजल पीने लायक नहीं है हरिद्वार में तो केवल गंगा में नहा ही सकते हैं। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा ने अब तक बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक 31 सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगा दिये हैं जो अभी पूरी तरह से गंगा में पहुंच रही गंदगी को नहीं रोक पाये है। उत्तराखंड राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के विशेषज्ञों की ओर से भी यह बात सामने आ रही है कि गंगा और यमुना में घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है वैज्ञानिकों के मुताबिक रुद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जहां घुलनशील ऑक्सीजन की मात्रा 10 पायी गई वहीं उत्तरकाशी में यमुना नदी में इसकी मात्रा 10, 8 मापी गई है जो निर्धारित मानक 5 से बहुत अधिक है। इस बार गौमुख ग्लेश्यिर के पास भी यात्रा सीजन में 10 हजार किग्रा से अधिक कचरा इकट्ठा हुआ है। नदियों में निरंतर घट रही जल राशि के कारण भी प्रदूषण बढ़ रहा है। नदियों के उद्गम में बर्फ बहुत जल्दी पिघल रही है।
अब गंगा में प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि उसने ऑक्सीजन को भी निगल दिया है। प्रदूषण के कारण गंगा को जितना बुखार चढ गया है उससे कहीं अधिक उसके जल का सेवन करने वाले लोग तरह-तरह की बीमारियों से पीड़ित हैं।
अतः वैज्ञानिक शोध तो चिंतित है ही, साथ ही पर्यावरण संरक्षण के काम में लगे संघर्षशील लोग भी गंगा की चिंता को लेकर देशभर में यात्राएं निकाल रहे हैं। 25 सितंबर से नदी दिवस के अवसर पर ऑक्सीजन मैन राजेश कुमार सुमन ऑक्सीजन बचाओ! हरित यात्रा पर निकले हुए हैं। इनका संदेश है कि मोक्षदायिनी मां गंगा के जल में निरंतर हो रही ऑक्सीजन की कमी और उसके जल को अमृत बनाने वाले बैक्टीरिया के लगातार कम होने से हमारे मुंह बाएं संकट खड़ा हो गया है। वे सवाल उठा रहे हैं कि गंगा के उद्गम से लेकर गंगासागर के बीच में प्रतिदिन लाखों हरे पेड़ क्यों काटे जा रहे हैं? कब उद्योगों के कचरे को गंगा में जाने से रोकेंगे? वे गंगोत्री में काटे जाने वाले लाखों देवदार के पेड़ों की चिंता से भी देशवासियों को अवगत करा रहे हैं। गंगा की जैवविविधता को बचाने का संदेश दे रहे हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)