लेखक : नवीन जैन
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं, इंदौर (एमपी)
हमारे बुजुर्ग कहते हैं कि कोई भी व्यक्ति यदि महीने में तीन दिन उपवास रखे तो उसका शरीर चंदन के जैसा जगमग करने लगता है। वैसे भी दुनिया के लगभग सभी धर्मो में उपवास या एकासने की ऐतिहासिक महत्ता को विस्तार से प्रतिपादित किया गया है। कोविड की अल्प प्रलय बेला में एडवांस्ड मेडिकल साइंस भी उपवास की महत्ता से सहमत हो चुका है। जो लोग उपवास के नियमधारी होते हैं ,उनके ज्यादा बीमार न पड़ने का एक प्रमुख कारण उपवास को भी माना गया है। कारण यह बताया जाता है कि उपवास, एकास्ने या फास्टिंग से शरीर और मन की लगातार शुद्धि होती रहती है। बहरहाल।
मध्यप्रदेश के रायसेन जिले से आई एक दिलचस्प ख़बर की इन दिनों खासी चर्चा है,जिसे मोबाइल उपवास, ई फास्टिंग या मोबाइल एकासना कहा जा रहा है।याद दिला दें कि जैन धर्म के दोनों पंथों में प्रत्येक वर्ष पर्युषण पर्व सबसे बड़ा पर्व है, जिसमें आत्म शुद्धि के लिए दस दिन अन्न जल त्याग दिया जाता है। एक वक्त (एकासना) भोजन किया जाता है। जैन धर्मो के दोनों पंथों श्वेतांबर और दिगम्बर में जो चौमासा मनाया जाता है, उसमें भादव मास के दौरान दस दस दिन में अपनी सुविधा के अनुसार उपवास या एकासना यानी एक समय भोजन करने की प्रथा है। यह बड़ी कठिन चर्या है, जो सदियों से चली आ रही है। इसमें जल तक त्याग दिया जाता है। उक्त रायसेन जिले के जैन समाज के लोगों ने अनोखा प्रयोग करते हुए मोबाइल, स्मार्ट फोन,लेप टॉप, टेबलेट की लत से थोड़ी दूरी बनाने के लिए ई उपवास का प्रयोग किया। इस जिले के सैकड़ों जैन मतावलंबियों ने एक दिन का मोबाइल उपवास रखा।
खबर के अनुसार उन्होंने मोबाइल, ई फोन, लैपटॉप, टैबलेट तथा अन्य तमाम इलेक्ट्रानिक उपकरण मंदिर में ले जाकर जमा कर दिए।एक दिन का मोबाइल उपवास रखने वालों की संख्या लगभग छह सौ थी, जबकि चार सौ लोगों ने तो पूरे दस दिनों के लिए मोबाइल उपवास रखा। इन सभी लोगों ने अपने प्रण को पूरा करते हुए किसी इलेक्ट्रानिक उपकरण को छुआ तक नहीं। इस मुहिम के आयोजकों का कहना है उक्त पहल मोबाइल की लत छुड़ाने या कम से कम करने के लिए की गई थी।कुछ महीने पहले प्रयागराज से खबर आई थी कि एक बालक को मोबाइल की ऐसी लत लगी कि उसे वहां के मोतीलाल नेहरू मनो चिकिसालय के मोबाइल मुक्ति वार्ड में भर्ती करवाना पड़ा। लखनऊ में एक मां ने बेटे को मोबाइल से दूर रहने को कहा तो उसने मां को ही गोली मार दी। मुंबई के सोलह वर्षीय किशोर ने माता पिता द्वारा मोबाइल छीन लेने पर आत्म हत्या ही कर ली । इंदौर में भी करीब एक साल पहले यही हुआ।
मोबाइल ने सामाजिक रिश्तों को छिन्न भिन्न कर दिया है। मेल मिलाप के दायरे सिकुड़ते जा रहे हैं। आदमी मूलत:एक सामाजिक प्राणी है, और भारत में तो पर्व तथा त्योहार ही समाज को एक सूत्र में बांधे रखते है।इसीलिए हमारे यहां साल के 365 ही दिन कोई न कोई तीज त्योहार मनाया ही जाता है, लेकिन मोबाइल के हद से ज्यादा उपयोग ने इन तीज त्योहारों का रस ही सुखा दिया है। पर्व त्योहार सिर्फ़ मोबाइल की इमेज, स्टीकर या इमोजी से मनते हैं।
कहने में हिचक नहीं कि सन 1973 में मोटरोला कंपनी के दो वैज्ञानिकों जॉन मिशेल, तथा मार्टिन कूपर द्वारा आविष्कृत मोबाइल नामक इस छोटे से खिलौने ने पूरी दुनिया को एक टाउन हॉल के रूप में परिवर्तित कर दिया है,लेकिन इसकी लत ने हरेक वर्ग के लोगों को चिड़चिड़ा, गुस्सैल, एकांत प्रिय, सक्रिय दिन दुनिया से बेखबर, आलसी, अवसाद डर, चिंता ग्रस्त बना दिया है। बच्चे ग्राउंड में खेलने जाने की बजाय मोबाइल पर गेम या कार्टून देखने में लगे रहते हैं। पहले वे कहानी किस्से और अखबार पढ़कर ज्ञान बढ़ाते थे। उसके आधार पर उनमें जिज्ञासा विकसित होती थी, जिससे संवाद स्थापित होता था। संवाद की शून्यता ही विचार, और भाषा के सफर को आगे ले जाने से रोकते है। नए नए विचार जन्म नहीं ले पाते।
लेकिन भारत और लगभग पूरी दुनियां में तो करीब करीब हर हाथ में मोबाइल है इसीलिए प्रसिद्ध शायर, फिल्मकार और गीतकार गुलजार ने लिखा है कि मैं अपने से ज्यादा मोबाइल का ख्याल रखता हूं, क्योंकि मेरे सारे रिश्ते मोबाइल में ही कैद है। जरूरत के हिसाब से मोबाइल का उपयोग अनिवार्य है, क्योंकि पैसों का लेन देन सिटी बस से लेकर सब्जी वाले तक मोबाइल से कामधाम करने लगे हैं, लेकिन दिक्कत तब आती है, जब एक दो साल के बच्चों को मोबाइल पर गेम या कार्टून दिखाकर खाना खिलाया जाता है। इसकी चिंता ही नहीं की जाती की इस तरह के मनमाने प्रयोग से बच्चे की आंखों की रोशनी पर विपरीत असर पड सकता है। माता पिता भी इसकी लत के लिए जिम्मेदार हैं। वे, बच्चों से बात चीत करने, उन्हें घुमाने ले जाने, या किताबें पढ़ाने की बजाय उक्त छोटा सा खिलौना पकड़ाकर पार्टीज में चले जाते हैं। अब तो मोबाइल पर अश्लील फिल्मों की भरमार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक एक बार इन गैजेट्स से पर्याप्त दूरी बनाए रखने की सलाह दे चुके हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)