हम गुलाबी नगर के ऐतिहासिक तथ्यों को बचा सकते हैं!

जयपुर स्थापना दिवस पर विशेष 

लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी एवं पूर्व निदेशक, स्वायत्त शासन विभाग हैं)

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महाराजा रामसिंह ने जयपुर को अपना घर समझा, महाराजा मानसिंह ने इसका विकास किया। पण्डित जवाहरलाल नेहरू ने इसकी चारदीवारी, दरवाजों व वास्तुकला को बचाने में मदद की। वास्तुकला के विपरीत निर्माण को रोकने व अनियमित यातायात साधनों के संचालन को रोकने की विधानसभा के प्रारम्भिक सत्रों में कई-कई दिन लम्बी चौड़ी बहस होती थी। मिर्जा इस्माइल के बाद अशोक गहलात ने इसकी सुध ली, पर इस नगर का अपना नगर, अपना घर समझने वाला कोई नहीं बना। इसका कोई धणी धोरी नहीं, यह कहे तो गलत नहीं। इसकी तहजीब, इसकी कला व संस्कृति, सब कुछ केवल इतिहास के पन्नों में सुरक्षित रह जायेगा। 

जयपुर में रहने वाले एक सेवानिवृत न्यायाधिपति ने मुझे कहा ‘‘जयपुर: दशा व दिशा’’ पर विचार गोष्ठी के बजाय इसकी दुर्दशा पर गोष्ठी करें। बुजुर्ग लोग कहने लगे हैं, ‘‘मेरा जयपुर बिक गया, बरबाद हा गया, इसके साथ रोज बलात्कार हो रहा है।’’ पर्यटक लोग ‘‘पिंक सिटी’’ को ‘‘स्टिंक सिटी’’ कहने लगे है। वास्तुकला विकृत हो रही हैं, निर्माणों पर अफसोस जाहिर कर रहे है, इसकी सुन्दरता व वास्तुकला का सरंक्षण नहीं किया जा सकता। आप विकास के नाम पर कुछ नहीं करें - केवल इसे विनाश से बचाएं। आवश्यकता है विनाश से बचाने की है। जयपुर पधारे मेरे कुछ विदेशी सहपाठियों में अभी कुछ दिन पूर्व जयपुर के सम्बन्ध में मेरे ‘‘पेपर’’ को पढ़कर उनकी उत्सुकता जागी - उन्होंने मुझसे पूछा ‘‘कहां है आपका सुन्दर और नियोजित शहर?’’ मेरी पुत्रवधु अभी कुछ दिन पूर्व अमेरीका से आई, उन्होंने कहा, ‘‘मैं जब तक जयपुर में हूं, घर से बाहर नहीं जाऊंगी। बाहर गन्दगी, प्रदूषण, अनियन्त्रित यातायात है, उससे मेरा दम घुटता है। 

जयपुर नगर की आबादी अब लगभग 35 लाख आंकी जा रही है। आबादी के अनुसार नगर का वस्तिार विकास की गति से नहीं होने से यह सुन्दर शहर अपने सौन्दर्य को खोता जा रहा है। महानगरों में सर्वाधिक गन्दा शहर होता जा रहा है। अनियोजित विकास, अवैध निर्माणों ने वास्तुकला को नष्ट कर दिया है। अलाइनमेंट व ले-आउट के विपरीत निर्माण व सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण की वजह से इस सुन्दर शहर की सुन्दरता दिनों दिन समाप्त होती जा रही है। 

जयपुर नगर की आबादी पॉंच प्रतिशत की दर से बढ़ती जा रही है जबकि राजस्थान राज्य की चार प्रतिशत व देश की तीन प्रतिशत है। बढ़ती हुई आबादी की वजह से कृषि भूमि व वन भूमि समाप्त होती जा रही है, वनों को काटा जा रहा है, कच्ची बस्तियों व बस्तियों की संख्या बढ़ती जा रही है, बेतरतीव विकास योजनाओं से नगर में पीने के पानी की कमी, गन्दगी व सीवरेज की समस्या दिनों दिन उग्र होती जा रही है। नगर के निवासियों, विशेषकर बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ रहा है व अनेक बीमारियां हो रही है। वाहनों की संख्या में लगातार हो रही बढ़ोतरी, कच्ची बस्तियों की बढ़ती संख्या, खुले में शौच जाने की प्रवृत्ति, जगह-जगह गन्दगी के ढेर, अनियन्त्रित ध्वनि प्रदूषण से लोगों में गम्भीर बीमारियां बढ़ती जा रही है। 

जयपुर की चारदीवारी के बाहर एवं अन्दर भी यातायात के लिए बसें चलाई जा रही है। बसों को देखकर ऐसा लगता है कि इन्हें यातायात नियन्त्रण से एवं कानून से पूरी तरह छूट दी हुई है एवं पुलिस व यातायात विभाग के क्षेत्राधिकार के बाहर रखा गया है। इन्हें कोई चिन्ता नहीं, इन पर किसी का कोई नियन्त्रण नहीं। ओवरलोडिंग की तो चर्चा करना व्यर्थ है। भेड़ बकरियों की तरह आदमियों को भरते चलते है, अन्दर धक्का मुक्की, गाली गलोच, महिलाओं से छेड़छाड़, जेबकतरी, चैन तोड़ना आम बात हो गई है। अन्य सुगम यातायात नहीं मिलने से मजबूरन लोग बसों में घुसते है। तेजी से भागते ओवरटेक कर साइड गैर साइड का ध्यान रखे बिना, लगातार ऊॅंची ध्वनि में हॉर्न बजाते हुये बीच सड़क खड़ी करते हैं। दुपहिया व अन्य वाहनों की साइड देने का प्रश्न ही नहीं। भीड़ भरे बाजारों में कानून तोड़ना तो आम बात है। 

कही न कही किसी स्थान पर कोई न कोई वासियात व दुर्घटना होती ही रहती है। कही कोई उनका पार्किंग स्थान नहीं, कोई बस स्टॉप नहीं। अनुभवहीन वाहन चालक कम उम्र के कण्डक्टर, शहर के नामीगिरामी हेकड ड्राइवर गाड़ी चलाते हैं। गाड़ी के कॉंच टूटे हुए, वाईफर टूटा हुआ, गन्दगी भरी हुई, सीटें टूटी हुई, ब्रेक कमजोर, ऐसी बसों की हालत है, जो घुऑं उगलती रहती हैं, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से शहर को प्रदूषित करती जाती हैं। लगातार बजता हुआ हॉर्न, इन सबसे यह प्रतीत होता है कि इन्हें हर प्रकार के नियन्त्रण से छूट दी गई है। यह जयपुर का दुर्भाग्य है, कोई समुचित सार्वजनिक यातायात व्यवस्था नहीं होने से उन्हें यह सब सहन करना पड़ रहा है। इस प्रकार यातायात की व्यवस्था से बाहर से आने वाले पर्यटक जिस प्रकार की राय बनाकर जाते हैं, उससे असहनीय दुःख होता है। 

नगर के बाहर के क्षेत्रों में सीवरेज लाइन नही होने व पुराने टूटे फूटे सोकपिटों की वजह से ‘‘ग्राउन्ड वाटर’’ पीने लायक नहीं रहा। नगर में सफाई व्यवस्था बिगड़ती जा रही है। गलियों, नालियों की नियमित रूप से सफाई नहीं होती है, कूडे के ढेर बढ़ते जा रहे है, जहॉं इच्छा होती है लोग कचरा डाल देते हैं।, कचरा उठाने की नियमित व्यवस्था नहीं है, मक्खी मच्छरों की भरमार है, भयंकर बीमारियॉं संक्रामक रोग बढ़ते जा रहे हैं। कर्मचारी पूरे समय सफाई नहीं करते। अब पुस्तकों में भी अंकन होने लगा है कि हिन्दुस्तानी स्वयं गन्दे रहते हैं परन्तु बातें अनावश्यक रूप से संस्कृति व साफ-सुथरा रहने की करते हैं। पीने के पानी की मात्रा में कमी होती जा रही है, जल प्रदूषित होता जा रहा हैं। जयपुर नगर के मुख्य मार्गो, बाजारों, रास्तों, गलियों, फुटपाथों व नजदीकी कस्बों में अतिक्रमण लगातार बढ़ते जा रहे हैं। समय-समय पर नगर निगम, पुलिस, विकास अभिकरण इनको हटाने की कार्यवाही करते हैं। 

जहॉं से आम जनता गुजरती है, जहॉं कार्यालय, अस्पताल, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, बाजारों के प्रवेशद्वार हैं, घनी आबादी क्षेत्र हैं, वहीं उपभोक्ता एवं विक्रेताओं दोनों को एवं इन छोटे-छोटे व्यपारियों, दुकानदारों की आवश्यकता होती है। ठेले, थड़ी, खैंरूज विक्रेता खुले में बैठकर अपना रोजगार कर सायंकाल अपना सामान समेटकर वापस लेकर चले जाता है। ये हमारी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं, अपनी रोजी रोटी कमाजे हैं। यह उनकी आर्थिक मजबूरी हैं। चायपान की थड़ी, सब्जी फ्रूट के ठेले वहीं लगेंगे जहॉं पर सरकारी दफ़्तर, अस्पताल आदि होंगे। पटरी के साथ कच्ची खाली जमीन पर दाल बाटी बनाकर बेचले वाले वहीं लगायेंगे जहां गरीब रिक्शा चालक, मरीजों के पास मिलने आने वाले परिवारजन होंगे। ठेले वहीं लगेंगे जहॉं से लोग गुजरेंगे एवं आते जाते आसानी से सस्ती दरों पर खैंरूज खरीद सकेंगे। राज्य सरकार एवं जिला विकास अभिकरण, न्यासों को आवासीय योजनाओं में और जहॉं पर दुकानें चल सकें, वहॉं बेरोजगारों को सस्ती दुकानें निर्मित कर किराये पर अथवा जमीन आवंटित कर निर्मित करानी होंगी। 

यह हमारा दुर्भाग्य है कि बड़े लोगों को हम सभी प्रकार की रियायतें देकर सस्ती दरों पर बड़े-बड़े औद्योगिक भूखण्ड देते हैं, हर प्रकार की सुविधाएं व रियायतें देते हैं परन्तु बेरोजगार नवयुवकों के लिए छोटे-छोटे व्यवसाय करने हेतु स्वरोजगार प्रारम्भ करने हेतु कोई स्थान उपलब्ध नहीं कराते हैं और यही कारण है कि शहर के अन्दरूनी भाग में भी प्रत्येक में व्यावसायिक दुकानें बन गई हैं और रास्तों पर अतिक्रमण बढ़ गया है। बेरोजगार युवकों को सस्ती दरों पर जमीनें, दुकानें उपलब्ध कराना सरकार का दायित्व है। केवल लाखों रूपये की कीमत की जमीनें नीलामी करने से थड़ी, ठेले, फुटपाथ पर बैठकर रोजी रोटी कमाने वालों की समस्या हल नहीं की जा सकती है। 

बरामदों के बाद फुटपाथ पर कब्जा करने वाले और अब तो दुकान के आगे सामने डामर सड़क पर नाजायज रूप से अतिक्रमण बढ़ते जा रहा हैं। अपने स्वयं के कार, स्कूटर, साईकिल खड़ी कर उनके बीच में बैठकर कारखाना एवं मरम्मत का कार्य किया जाता है परन्तु हमारे दस्ते गरीबों का नुकसान करते हैं, रोज कुछ सामान की बिक्री कर शाम को सामान उठाकर घर ले जाने वालों पर अत्याचार करते हैं। अतिक्रमणों को हटाने में एक नीतिगत तरीके से कार्यवाही की जाये तभी समस्या का हल सम्भव है। 

नगर के फुटपाथ टूटे पड़े हैं। कोई भी विभाग जब चाहे इन्हें तोड़ सकता है। इन पर पूर्णतः अतिक्रमण हो चुका है, दुकानदारों ने अतिक्रमण कर रखा है विशेषकर मिस्त्रियों के कारखाने बन चुके हैं अथवा वाहन पार्क कर दिये जाते हैं। नगर के मुख्य मार्गो पर पार्किंग की कोई सुचारू व्यवस्था नहीं है और सड़कों पर ही पार्किंग होती है, दुकानदार अपनी दुकान के बाहर दो-तीन वाहन हमेशा खड़ा रखना चाहता है। यहॉं तक कि भारी वाहनों की पार्किंग, पब्लिक ट्रान्सपोर्ट के मालिक भी अपनी दुकानों के बाहर अपने वाहनों को पार्क करते हैं। पार्किंग के लिए कई तरह की योजनायें बनाई परन्तु पार्किंग के लिए कोई नया स्थान नहीं बनाया गया है। 

सड़कों की हालत दिनों दिन खराब होती जा रही है। कोई भी विभाग इच्छानुसार अपने विभागीय कार्यो हेतु तोड़फोड़ कर देता है और उसके पश्चात् महीनों तक उसकी मरम्मत नहीं होती है जिसकी वजह से गहरे गढ्ढे बन जाते हैं और उनमें पानी भरता रहता है जिससे डामर उखड़ता रहता है, गढ्ढे बढ़ते रहते हैं। 

गॉंव से आने वाला हर बेरोजगार व्यक्ति रिक्शा, ठेला, आजकल ईरिक्शा उठाकर शहर में चला रहे हैं। नवधनाढ्य लोगों के छोटे-छोटे बच्चे, महिलाएॅं बिना प्रशिक्षण के कारें व स्कूटर बड़ी तेजी से चला रहे हैं। 

जयपुर की सबसे अधिक बरबादी अनियन्त्रित निर्माण, अतिक्रमण से हुई है जिसका उत्तरदायी यहॉं की हाउसिंग सोसायटियॉं है। भू-माफियों के नियंत्रण में चल रही ये सोसायटियॉं अनियन्त्रित, अव्यवस्थित, बेतरतीब निर्माण व अतिक्रमण के लिए पूर्णरूप से जिम्मदार है, इन लोगों की हर स्तर पर सॉंठ गॉंठ हैं। जो स्वयं भूमाफियों के साथ अपनी हिस्सेदारी रखते हैं और लगातार मिलने वाली राशि के कारण धनिक वर्ग में गिने जाते हैं। ये लोग नगर के आस-पास की कृषि भूमि को कौड़ियों में खरीद कर अपनी इच्छानुसार लाभ की दृष्टि से प्लॉट तैयार कर एक-एक प्लॉट को कई-कई लोगों को बेच देते हैं, इसमें भ्रष्ट सरकारी कर्मचारी व अधिकारी भी पूरा साथ देते हैं। 

रामनिवास बाग भारत के खूबसूरत बागों में से एक था। इसकी हालत भी देखभाल की कमी की बजह से खराब हो चुकी हैं। जलमहल की बदबू शहर में अनेक स्थानों से आने वाले लोगों का ध्यान आकर्षित कर रही हैं कि यह जयपुर है या कोई ट्रेचिंग ग्राउण्ड?

दुनिया के मानचित्र पर अंकित सुनियोजित व सुन्दर शहर अब गन्दगी, अनियन्त्रित याजायात, अतिक्रमण, प्रदूषण, बढ़ती हुई गन्दी बस्तियॉं और बढ़ती हुई बीमारियों की संख्या से सर्वाधिक गन्दा शहर कहलाने लगा है। प्रत्येक पर्यटन स्थल पर सैकड़ों भिखारी देखे जा सकते हैं जो हर समय पर्यटकों को परेशान करते रहते हैं। 

आवश्यकता है चारदीवारी की बदतर व बिगड़ती हालत व वास्तुकला को बिगड़ने से रोकने की। आवासीय भवनों को व्यावसायिक भवनों में बदलने से रोका जाये और अलाइनमेन्ट व लेआउट के विपरीत निर्माण किसी भी कीमत पर नहीं करने दिये जाये। आवश्यकता है सड़कों व रास्तों को चौड़ा करने, चारदीवारी के बाहर सीवरेज लाइन डालने, आवासीय कॉलोनियों में व्यावसायिक केन्द्र स्थापित करने एवं अनियन्त्रित विकास को रोकने के लिए कम दरों पर प्लाट व मकानों के आवंटन की, पार्किंग स्थल बनाने की, आवासीय प्लौट के साथ व्यापारिक प्लॉट के आवंटन की, अधिकाधिक वृक्षारोपण की, यातायात नियन्त्रण की, प्रभावशाली ढंग से अतिक्रमण को रोकने की, शौचालयों के निर्माण की, कच्ची बस्तियों में सुधार व आगे बढ़ने से रोकने की। 

यदि समय रहते उपर्युक्त समस्याओं पर विचार किया जाकर समुचित हल नहीं निकाला गया तो वह दिन दूर नहीं जब यह सुन्दर शहर अपना महत्व खो देगा और इस राष्ट्रीय धरोहर को हम कायम नहीं रख सकेंगे। जयपुर के बिगड़ते स्वरूप और समस्याओं के हल के लिए एक एकीकृत एजेन्सी की जरूरत हैं क्योंकि इसके लिए जिम्मेदार विभागों व एजेन्सियों में कोई तालमेल नहीं है। अच्छा तो यह होगा कि मुख्यमंत्री कार्यालय में एक समन्वय प्रकोष्ठ का गठन कर उसे इसकी जिम्मेदारी दे दी जाए ताकि इस ऐतिहासिक शहर, इसकी धरोहर, परम्पराए व वास्तुशिल्प की रखा की जा सकें। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)