जानिए एमएसएमई का महत्व व योगदान के बारे में

लेखक : डा. सत्यनारायण सिंह

(लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी हैं)

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भारत की उभरती अर्थव्यवस्था में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) की महती भूमिका है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत और कुल निर्यात का करीब 40 प्रतिशत एमएसएमई क्षेत्र से होता है। कृषि के बाद यह क्षेत्र सर्वाधिक संख्या में लोगों को रोजगार देता है। एक अनुमान के अनुसार करीब साढे चार करोड़ लोग इस क्षेत्र में कार्यरत है। समावेशी विकास के इस युग में एमएसएमई क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण है और अधिक बेहतर ढंग से संपत्ति के समान वितरण के साथ-साथ संतुलित क्षेत्रीय विकास के संवर्धन में समर्थ है।  

एमएसएमई क्षेत्र 6000 से अधिक वस्तुओं का उत्पादन करता है और लगभग 56 खरब रूपये के आकार वाला क्षेत्र होने का दावा करता है। औद्योगिक क्षेत्र से अधिक वृद्धि दर बनाए रखने के साथ-साथ एमएसएमई क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में करीब 6 प्रतिशत का योगदान कर रहा है। वर्ष 2006 में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्यम विकास अधिनियम पारित हुआ, राष्ट्रीय असंगठित क्षेत्र उद्यम आयोग का गठन, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग एवं राष्ट्रीय विनिर्माण स्पर्धात्मक कार्यक्रम, राजीव गांधी उद्यमी मित्र योजना, कलस्टर विकास योजना आदि द्वारा इस क्षेत्र को सुदृढ़ बनाया गया तथा ऋण, अधोसंरचना, प्रोद्योगिकी और विपणन से संबंधित समस्रूयाओं में योगदान मिला। घरेलू एवं विदेशी दोनों बाजारों में जोर दिया गया। 

स्वतंत्रता के पश्चात जवाहरलाल नेहरू की नीतियों के अनुसार अर्थव्यवस्था में औद्योगिकरण पर प्रमुखता से ध्यान दिया गया। आयाज में कमी के लक्ष्य के साथ आर्थिक विकास का प्रमुख अभिकर्ता भी रहा। दूसरी पंचवर्षीय योजना जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों के संवर्धन पर जोर था उसमें भी आर्थिक विकास और संतुलन बनाये रखने की प्रक्रिया में लघु उद्यागों के महत्व को स्वीकार किया गया। 1951 में एसएफसी अधिनियम पारित हुआ जिससे छोटे व लघु उद्योगों के वित पोषण के लिए राज्य वित्तीय निगमों की स्थापना की गई। 1980 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण और प्राथमिकता की स्पष्ट अवधारणा से सूक्ष्म व लघु उद्योगों को वित पोषण के मामले में क्रांतिकारी परिवर्तन आया, 1990 में भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक की स्थापना हुई। 

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से ऋण लेने में सुविधा हुई, कुल ऋण प्रवाह बढ़ा, सूक्ष्म और लघु उद्योगों की बकाया ऋण राशि 8 से 11 प्रतिशत रही, फिर भी अपर्याप्त और समय पर ऋण नहीं मिलने की समस्या बनी रही। सूक्ष्म व लघु उद्योगों की समस्याओं के निराकरण हेतु अनेक समितियां बनी, निर्णय लिये गये परन्तु समग्र दृष्टिकोण से पूंजी बाजार में एमएसएमई की पंहुच सुविधाजनक बनाने के लिए बहुत कुछ किया जाना है। एमएसएमई को इन वर्षो में भारी वित्तीय अभाव का सामना करना पड़ रहा है। इसके साथ ही विपणन के अधोरचना, नवीनतम प्रोद्योगिकी, प्रशिक्षण का अभाव है। बैंक छोटे उद्यमियो को ऋण देने में संकोच करते है, मंदी का प्रभाव है। रिजर्व बैंक भी मंदी के प्रभाव को कम करने में पूर्णतया सफल नहीं रहा। लघु इकाईयों की पूंजीगत संरचनाओं को मजबूत करने, बेहतर विपणन सुविधायें प्रदान करने, अल्पावधि व दीर्धावधि ऋण समय पर सरलता से उपलब्ध कराने, वित्तीय एजेंसियों से समन्वय स्थापित करने और तकनीकी दृष्टि से उन्नत बनाने में वर्तमान में सरकारी प्रयास केवल घोषणा तक सीमित है। बड़े उद्योगों व बाह्य उद्योगों तथा पंूजीवाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समाप्त कर रहा है। 

विश्व बैंक के नये प्रतिमानों के आधार पर भारत में गरीबी रेखा से नीचे बसर करने वालों की संख्या गांधीजी के जमाने की कुल आबादी से अधिक हो जाती है। भारत के 70 प्रतिशत लोग, विश्व बैंक के अनुसार अभी भी प्रतिदिन 20 रूपये से भी कम आय पर जीवनयापन करते है, 9 प्रतिशत के लगभग लोग बेरोजगार है। साठ के दशक में जवाहर लाल नेहरू व राममनोहर लोहिया छ आने और एक रूपये प्रतिदिन आय पर बहस किया करते थे, वह 20 रूपये की मात्रा से भी कम है। 

वर्तमान आयोजना ने विकास की आधारभूत चीजों को छोड़ दिया। गांव और झौपड़ी में परिवर्तन नहीं आ रहा, विकास समान नहीं हुआ जबकि लघु इकाईयां बेहतर प्रदर्शन कर रही है। श्रमिकों की बहुलता, समांतर वितरण, लचीलापन तथा विकेन्द्रीयकरण, समावेशी वितरण, उत्पादन की दृष्टि से व्यापक आधार प्रदर्शित करती है। अमेरीका व चीन के उत्पादन, निर्यात को वे कम्पनियां बढ़ा रही है जिनमें 19 या उससे कम लोग काम कर रहे है। 

देश में 128.44 लाख लघु उद्यम है जिनका विनिर्माण क्षेत्र में योगदान 39 प्रतिशत है। मदो की आरक्षण व्यवस्था जो इनके लिए रक्षात्मक ढाल की तरह थी अब समाप्त हो गई है। स्थिति में गिरावट तेजी से हो रही है, श्रम व निर्यात में योगदान घट रहा है। चीन में इन इकाईयों का मूल्य 56 प्रतिशत व 8 करोड़ रोजगार प्रदान करते हैं। बिजली, इलेक्ट्रानिक, रसोई के सामान, खिलोनों में चीन ने एकाधिकार किया हुआ है। ऋण गारंटी योजना वैश्विक प्रतिस्पर्धा को देखते हुए अपेक्षा से कम लाभ दे रही है। विनिर्माण व सेवा में इनका अहम रोल है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)