जीवित हो, तो परेशानियाँ तो आएँगी ही : सरदाना

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बदलते समय के साथ-साथ नई पीढ़ी की विचारधारा में पुरानी पीढ़ी के विचारों की तुलना में जमीन-आसमान का बदलाव आया है। जितनी जल्दी नई पीढ़ी छोटी-छोटी बातों को लेकर खुश हो उठती है, उतनी ही जल्दी उनकी खुशी किसी परेशानी के समय छूमंतर हो जाती है। आजकल के युवा अपने जीवन को दाँव पर लगाने में थोड़ा भी संकोच नहीं करते हैं, ऐसे में सबसे अधिक हतोत्साहित करने वाला विषय जो सामने निकलकर आता है, वह है शिक्षा। इस लेख के माध्यम से देवास स्थित सरदाना इंटरनेशनल स्कूल के संचालक और अध्यापक आईआईटी दिल्ली से बीटेक तथा स्वयं आईआईटी में ऑल इंडिया 243वीं रैंक लगा चुकेललित सरदाना ने युवाओं के लगातार गिरते मनोबल को उठाने के भरसक प्रयास किए हैं। ललित सरदाना सर संपूर्ण भारत के इकलौते ऐसे शिक्षक हैं जो पिछले 26 वर्षों से आईआईटी हेतु फिजिक्स, केमेस्ट्री एंड मैथमेटिक्स तीनों विषय पढ़ा रहे हैं। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इनके विद्यार्थियों का सिलेक्शन प्रतिशत संपूर्ण भारत में सबसे ज्यादा है।

एक-एक दिन में कई आत्महत्याएँ

युवाओं के लगातार आत्महत्याओं के बढ़ते मामलों पर जोर देते हुए सरदाना सर ने कहा कि कोटा में बीते दिनों एक दिन में तीन आत्महत्याओं की खबर सुनने में आई, जिसमें से दो मामले एक ही हॉस्टल के हैं। वहीं पिछले 15 दिनों में 7 युवाओं ने आत्महत्या की है। दुनिया भर में इस तरह के मामले आए दिन देखने को मिलने लगा हैं, लेकिन आत्महत्या किसी भी परेशानी का समाधान नहीं है। बच्चों को यह समझना होगा कि कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए कड़ी मेहनत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है और इसमें खरा उतरना ही एकमात्र उपाय है। बच्चे 'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' कहावत के पीछे छिपी वास्तिकता को भूल चले हैं। बिना दौड़ में कूदे पहले से ही हार मान लेने वालों की कभी जीत नहीं होती। आपको परिश्रम करना ही होगा, यदि वास्तव में एकमात्र जीत ही आपका लक्ष्य है।

पेरेंट्स की डाँट भी आज के बच्चों पर भारी

पहले की पीढ़ी के अनुरूप यदि आज की पीढ़ी को पेरेंट्स मिल जाए, जो न सिर्फ उन्हें डाँटते ही हों, बल्कि मारते भी हों, तो यह आज की पीढ़ी के लिए मेरे मायने में बहुत गंभीर विषय बन जाए, क्योंकि आज की पीढ़ी महज डाँट को भी स्वीकार नहीं कर रही है और इसके बदले में अपने जीवन को दाँव पर लगाने चल पड़ती है। इस डाँट को मोटिवेशन के रूप में लें, न कि अपमान के रूप में। अभी आपकी उम्र हर मोड़ पर परीक्षाएँ देने की है, इसलिए निडरता के साथ सभी पड़ावों को पार करते चलें। एक दिन सफलता आपके पीछे होगी।

बुरा सुनने की आदत डालें

आज की पीढ़ी में सुनने की आदत नहीं है। सहनशक्ति इस पीढ़ी से जैसे विलुप्त होती जा रही है। मेरे मायनों में यदि आप में सुनने और समझने की आदत नहीं है, तो कोई भी आप पर दबाव डाल सकता है और आपको नकारात्मक कर सकता है। लेकिन वहीं यदि आप बुरा सुनकर भी मोटीवेट रह सकते हैं, तो यकीन मानिए, आपकी जीत निश्चित है।

किसी के विश्वास को न तोड़ें

जीवन में हमें दो तरह के लोग मिलते हैं, एक वो जो हमें मोटीवेट करते हैं, और दूसरे वो जो डिमोटिवेट करते हैं। हमें मोटीवेट करने वालों से जुड़े रहना हैं। उनके विश्वास पर खरा उतरना है और उन्हें ऐसा परिणाम लेकर देना है, जिससे कि उन्हें गर्व हो कि उन्होंने हम पर विश्वास किया। ये लोग आपके पेरेंट्स, टीचर्स और दोस्त आदि कोई भी हो सकते हैं। लोग हमें लेकर कई बार बहुत पॉजिटिव होते हैं, यह ध्यान में रखता कि इससे आपको कभी भी ओवर कॉन्फिडेंट नहीं होना है, क्योंकि जहाँ आप में कण भर भी ओवर कॉन्फिडेंस आया, तो आप सफलता की ओर अपने कदम बढ़ाने के बजाए पीछे चले जाएँगे। वहीं आपको नेगेटिव करने वाले लोगों के सामने भी डटकर खड़े रहना है और कड़ी मेहनत करके उन्हें अपने लक्ष्य में विजयी होकर दिखाना है।