जन्मदिवस के अवसर पर विशेष
लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
लेखक रिटायर्ड आई. ए. एस. अधिकारी हैं
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नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की गणना हमारे स्वतंत्रता इतिहास के सर्वकालिक महान व्यक्तियों मे होती है। सुभाषचन्द्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। 15 सितम्बर, 1919 में लंदन गये और कैम्बिज विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त की। आईसीएस की परीक्षा उत्तीर्ण की, योग्यता सूची में चौथा स्थान प्राप्त किया। बोस ने देश सेवा के लिए आईसीएस से त्यागपत्र दिया। देश बन्धु चितरंजन को अपना गुरू बनाया। इसी दौरान पं. जवाहरलाल नेहरू के सम्पर्क में आये तथा उनके साथ कांग्रेस में युवकों की इन्डीपेडेंस लीग प्रारम्भ की। कांग्रेस का नरम व्यवहार पंसद नहीं आया, यद्यपि कांग्रेस के दो बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए। जवाहरलाल नेहरू के प्रयासों के बावजूद उनके गर्म और तीखे तेवर कायम रहे, महात्मा गांधी के प्रिय सेनानी नहीं बन सकें। तीखे तेवर कायम रहे और 1939 में कलकत्ता कांग्रेस की बैठक में त्यागपत्र दे दिया।
मई 1939 में कलकत्ता में फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश सरकार ने बोस को गिरफ्तार कर लिया। 1940 में अंग्रेजो ने सुभाष बाबू को नजरबन्द कर लिया परन्तु सुभाष भाग निकले, एक मुसलमान मौलवी का वेष बनाकर पेशावर, अफगानिस्तान होते हुए बर्लिन पहुंचें। उन्होंने वहां जर्मनी के तानाशाह हिटलर से मुलाकात की। जर्मनी व जापान से भारत को स्वतंत्र कराने हेतु मदद मांगी। जर्मनी में स्वतंत्रता संगठन व आजाद हिन्द रेडियो की स्थापना की। इसके पश्चात पूर्व एशिया व जापान पहुंचकर आजाद हिन्द फोज का विस्तार किया। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिन्द फोज ने जापानी सेना के सहयोग से आक्रमण कर अंडमान निकोबार द्विप जीत लियें। दिल्ली चलों का नारा बुलन्द किया। अंग्रेजो की भारी फौज के आगे पीछे हटना पड़ा। द्वितीय युद्ध में जापान की हार होने पर रूस से सहायता मांगी। 18 अगस्त, 1945 को नेताजी हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे, नेताजी का हवाई जहाज ताईवान की भूमि पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमे बुरी तरह घायल हो गये, नेताजी ने अस्पताल में अंतिम सांस लीं। भारत सरकार ने आजादी के बाद तीन बार आयोग गठित कियें परन्तु उनकी मोत के सम्बन्ध में आज भी स्थिति स्पष्ट नहीं मानी जा रही।
सुभाषचन्द्र बोस मानते थे कि संघर्ष द्वारा ही आजादी प्राप्त की जा सकती है, अंग्रेज नैतिक दबावों व अहिंसक प्रतिरोध के विरूद्ध घुटने नहीं टेकेंगे। उनका विचार था यद्यपि राष्ट्रीय कांग्रेस के सभी सदस्यों का लक्ष्य एक ही था, परन्तु गांधी के संघर्ष के ऐतिहासिक तरीके से आजादी प्राप्त नहीं की जा सकतीं। सुभाष बोस ने विचार भेद के बावजूद गांधी को सम्मान दिया। उन्हें सबसे पहले राष्ट्रपिता कहने वाले सुभाष चन्द्र बोस ही थे। आजाद हिन्द फोज के ऐतिहासिक रेडियों भाषण में उन्होंने कहा था ”आप (गांधी) हमारे देश की वर्तमान जागृति के जनक है दुनिया दुनियाभर में उन्हें सर्वाच्च सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है, पिछली शताब्दी में किसी अन्य भारतीय नेता को ऐसा सम्मान नहीं मिला, जो जीवन भर देश की सेवा कर आधुनिक ताकत से बहादुरी से लड़ा। आपकी (गांधी)उपलब्धियों की सराहना उन देशों में हजार गुना ज्यादा है जो ब्रिटिश साम्राज्य के विरूद्ध है। हमारे राष्ट्रपिता भारत की आजादी की पवित्र लड़ाई में आपके आर्शीवाद और शुभकामनाओं की कामना करता हूँ।“
सुभाषचन्द्र बोस राजनैतिक क्षेत्र में उग्रपंथी थे, धार्मिक और सामाजिक सुधारवादी नहीं थे, उन्होंने धर्म को राजनीति से नहीं जोड़ा, यथार्थवादी थे, राजनैतिक एवं सामाजिक उत्थान के बीच साम्यता चाहते थे। परन्तु उन्होंने मार्क्सवाद के आर्थिक विचारों का समर्थन नहीं किया। राजनैतिक यथार्थवादी होने के कारण गांधीवादी आत्यानिक आदर्शवाद के आलोचक थे। गांधी एव ही समय में सामन्त एवं किसान, पूंजीपति तथा श्रमिक, द्विज और अद्विज के हितों की रक्षा चाहते थे। गांधीवाद में कार्य संचालन की विधि एकमात्र सत्याग्रह था। बोस इससे सहमत नहीं थे।
राजनैतिक स्वतंत्रता संग्राम के साथ उन्होंने सामाजिक व आर्थिक विचारों का जोड़कर फावर्ड ब्लाक की स्थापना की जिसके प्रेरक सिद्धान्त थे, ”पूर्ण राष्ट्रीय स्वतंत्रता, साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष में असमझौतावादी दृष्टिकोण, आधुनिक समाजवादी राज्य की स्थापना, देश का बड़े पैमाने पर आर्थिक उत्थान, उत्पति व वितरण का सामाजिक स्वामित्व एवं नियंत्रण, धार्मिक मामलों में व्यक्तिगत स्वतंत्रता, प्रत्येक नागरिक के लिए समान अधिकार, भाषाई व सांस्कृतिक स्वतंत्रता और नई व्यवस्था में समानता और सामाजिक न्याय के सिद्धान्तों का निष्ठापूर्वक अनुपालन।“ इस प्रकार सुभाषचन्द्र बोस राष्ट्रीय आन्दोलन को राजनैतिक स्वतंत्रता, सामाजिक प्रगति, आर्थिक उत्थान, किसी धार्मिक भेदभाव के बिना, बढ़ाना चाहते थे। देश का बहुमुखी विकास व धर्म-निरपेक्ष समाज की स्थापना चाहते थे।
जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी व सुभाषचन्द्र बोस को नजदीक लाने व वैचारिक एकता लोन हेतु अथक प्रयास किये परन्तु सुभाषचन्द्र बोस अपने उम्रविचारों पर कायम रहें। उनकी मृत्यु के पश्चात राजनैतिक दृष्टिकोण से नेहरू व बोस के बीच मतभेद की अफवायें फैलाने का प्रयास किया जाता रहा है। नेहरू के स्थान पर बोस को प्रथम प्रधानमंत्री घोषित किया जा रहा है। बंगाल चुनाव के समय इस बिन्दु पर सत्तासीन राजनैतिक दल रविन्द्रनाथ टैगोर व सुभाषचन्द्र बोस को गांधी, नेहरू के विपरीत खड़ा कर लोगों को भ्रमित करने का प्रयास हो रहा है। जबकी सच्चाई यह है कि इन महापुरूषों के विचारों में मतभेद होने पर भी एक दूजे के लिए सम्मान, विश्वास व मतैव्य था। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)