महादेयी नदी जल विवाद को लेकर कर्नाटक, गोवा आपने सामने

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं

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कर्नाटक और गोवा के बीच महादेयी नदी के पानी के हिस्से को लेकर दोनो दशकों पुराना विवाद एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया है। इन दोनों राज्यों में इस समय बीजेपी की सरकारें हैं फिर भी दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री मिल बैठ कर इस जल विवाद को हल करने के लिए तैयार नहीं। दोनों राज्य अपने हिस्से का जरा सा भी जल छोड़ना नहीं चाहते। 

कर्नाटक में विधान सभा के चुनाव अब केवल दो तीन महीने ही दूर है। राज्य की बीजेपी सरकार महादेयी नदी के जल से अपना हिस्सा पाने पर डटी हुई है ताकि इस विवाद पर कड़े रुख के चलते उसको चुनावों में लाभ मिल सके। सरकार इस नदी में अपने हिस्से के जल के उपयोग के लिए एक पेय जल योजना पर जल्द काम करना आरंभ करना चाहती है। इस योजना के  कार्यान्वन के लिए वह एक महीने के भीतर ही टेंडर  जरी करने के तैयारी कर रही है। लेकिन यह सब चुनावो से पूर्व हो पायेगा यह नहीं, यह कहना फ़िलहाल मुश्किल है। इसका कारण यह है कि गोवा की बीजेपी सरकार इस योजना को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देने की घोषणा कर चुकी है। 

महादेयी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक का बेलगवी इलाका है। लगभग 100 किलोमीटर लम्बी नदी का 35 किलोमीटर हिस्सा कर्नाटक में है। गोवा में नदी  की लम्बाई 50 किलोमीटर है। बाकी हिस्सा महाराष्ट्र से होकर गुजरता है। तीनो प्रदेश इस नदी के जल का अधिक से अधिक हिस्सा लेना चाहते है। तीन राज्यों दवारा इस नदी के जल के हिस्से को लेकर पुराने विवाद को लेकर केंद्र सरकार ने 2012 में एक ट्रिब्यूनल का गठन किया था। इस ट्रिब्यूनल ने 2018 में अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी थी। ट्रिब्यूनल ने इस नदी के जल पर गोवा के हक़ को तरजीह दी और अधिक पानी आवंटित किया ट्रिब्यूनल ने नदी में उपलब्ध जल में से 13.42 टी एम सी जल कर्नाटक को आवंटित किया। 

गोवा को 24 टी एम सी पानी मिला जब कि महाराष्ट्र को केवल  1.3 टी एम् सी जल मिला। कर्नाटक सरकार को यह फैसला मंजूर नहीं था। इसका कहना था कि नदी का उद्गम  कर्नाटक से होता है इसलिए राज्य को कम से 36 टी एम सी पानी मिलना चाहिए। गोवा में पहुचने पर इस नदी का नाम मांडवी हो जाता है तथा राज्य की राजधानी पणजी पहुच कर यह नदी समुद्र में मिल जाती है। इस राज्य का कहना था कि अगर कर्नाटक और महाराष्ट्र ने अपने हिस्से के जल उपयोग के  लिए योजनाये बनायीं तो इसका सीधा असर गोवा जैसे छोटे राज्य के पर्यावरण पर पड़ेगा। 

जब तक ट्रिब्यूनल ने अपना फैसला नहीं सुनाया तब तक किसी राज्य ने नदी के जल के उपयोग को लेकर कोई बड़ी योजना नहीं बनाई कर्नाटक के मराठी भाषी बहुल हुब्बली और धारवाड़ जिलों में पेयजल का संकट पुराना है। इसको हल करने के लिए बरसों पूर्व  कर्नाटक सरकार ने महादेयी नदी से दो नहरों – कलसा और बंडूरी से मलप्रभा बांध तक 7.56 टीएमसी जल लाने की योजना तैयार की  लेकिन इस योजना को केंद्रीय जल आयोग ने अपनी मंजूरी नहीं दी। राज्य सरकार की इस योजना को संशोधित करने के लिए कहा गया। पिछले महीने  आयोग ने कर्नाटक सरकार दवार पेश की गई संशोधित योजना को अपने मंजूरी दे दी। बिना कोई समय खोये कर्नाटक सरकार ने योजना को लागू करने के लिए टेंडर लाने की घोषणा कर दी। 

राज्य सरकार का कहना है कि टेंडर एक महीने के भीतर जारी कर दिए जायेंगे तथा बरसो से अटकी यह योजना अगले दो साल में पूरी हो जायेंगी। कर्नाटक सरकार की इस घोषणा पर गोवा ने तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की। एक तरफ तो उसने इस फैसले को सर्वोच्च नयायालय में चुनती देने का फैसला किया दूसरी ओर एक सर्वदलीय बैठक बुलाकर इस मुद्दे पर एक जुटता दिखाने की कोशिश। राज्य बीजेपी ने घोषणा की कि दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से भेंट कर इस विवाद पर गोवा का पक्ष पेश किया जायेगा। ऐसा माना जा रहा है की बीजेपी के केंद्रीय नेताओं ने गोवा में पार्टी को कहा है कि वे फ़िलहाल इस मुद्दे को तूल नहीं दे। कर्नाटक में पार्टी को इस मुद्दे को चुनावों में भूनाने दिया जाये। उधर कर्नाटक कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि बीजेपी सरकार इस पेयजल योजना के नाम पर कर्नाटक में  मराठी भाषी इलाकों, बेलगाव, हुब्बली तथा धारवाड़ में मतदाताओं की जीतने की असफल कोशिश कर रही है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं विचार हैं)