लेखिका : रेणु जैन
स्वतंत्र लेखिका और पत्रकार, इंदौर (मध्य प्रदेश)
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हमारे देश में मौसम से अक्सर बचने की आदत है। उसका आनंद बहुत कम लिया जाता है। गर्मी आई तो शिकायत होने लगती है कि ओह कितनी गर्मी पड़ रही है पसीने से तरबतर हो रहे है। पंखा चलाओ,कूलर चलाओ, एसी चलाओ । हम समझ ही नही पाते कि गर्मी सहन करना कुदरतन शरीर के लिए कितना आवश्यक है। यह सही है कि इस मौसम में थकान जल्दी आती है लेकिन फिर भी इसे थोड़ा सहन करना चाहिए क्योकि इससे हमारी सहनशक्ति में इज़ाफ़ा ही होगा जो अनेक मौकों पर काम आता है। वैसे तो गर्मी से बचाव के लिए हम कई साधन जुटाते है। पर पहले के समय मे एक ऐसा तरीका था जिससे पूरे घर मे आने वाली हवा ठंडक के साथ खुशबू भी बिखेरती थी। जिसे हम खस के पर्दे कहते थे। घर, दुकानों बरामदों के दरवाजों और खिड़कियों पर लगे ये पर्दे एक सुगन्धित घास के बने होते थेजिसे अंग्रेजी में वेटीवर कहा जाता है जो खस का तमिल शब्द है। खस का वैज्ञानिक नाम वेटीवर जिजेनिआयडीज है, जिसका अर्थ है नदी के किनारे । यह झाड़ीनुमा खुशबूदार घास पानी के किनारें उगती है इस घास की खासियत यह भी होती है कि सूखे की स्थिति हो या जल जमाव दोनों ही स्थिति में यह घास पनप जाती है।
भारत मे खस के कई ठिकाने
भारत मे खस की फसल की खेती राजस्थान, असम, बिहार ,उत्तरप्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में प्रमुखता से होती है। भारत के बाहर पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, चीन, मलेशिया के अलावा अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, ग्वाटेमाला, फिलीपींस, जापान,अंगोला, कांगो, डोमिनिकीन गणराज्य, अर्जेंटीना, जमैका, मॉरीशस में भी खस खासा लोकप्रिय है तथा खेती भी की जाती है।
फायदे खस के पर्दो के
खस की तासीर ठंडी होती है। इसीलिए इसके बने पर्दे जब खिड़कियों, दरवाजो, कूलर पर लगाकर उन पर पानी का छिड़काव किया जाता है तो उससे छन कर आई ठंडक शरीर मे नई ऊर्जा के निर्माण में सहायक होती है। सारे दिन मूड बनाये रखने में यह ठंडक बहुत काम आती है।
वर्तमान समय मे सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है मानसिक तनाव। कई शोध इस बात पर खरे उतरे है कि शारीरिक तथा मानसिक बेहतरी के लिए विभिन्न प्राकृतिक तथा सुगन्धित तेलों का प्रयोग करके अपने मूड को ठीक कर सकते है। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक खुशबू मानव मस्तिष्क में तत्काल बदलाव ले आती है। हमारे मस्तिष्क में सुगंध को पहचानने वाले न्यूरॉन्स होते है। ये न्यूरॉन्स ही मस्तिष्क को एनर्जेटिक बनाते है। पुराने जमाने मे मिस्र, यूनान एवं रोम में रहने वाले लोग कई मानसिक बीमारियों को ठीक करने के लिए अलग अलग खुशबू वाले तेलों से उपचार करते थे। खस की जड़ों से निकला तेल जिससे इत्र, परफ्यूम, शर्बत, दवाई, साबुन और कई कॉस्मेटिक बनाये जाते है। खस का इत्र अरब तथा अन्य कई देशों में बहुत पसंद किया जाता है। इसकी खुशबू रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है जिससे नर्वस सिस्टम शांत रहता है। तनाव को दूर करके अच्ची नींद लाने में भी मददगार होता है। अरोमाथेरेपी कमरदर्द मोच जैसी व्याधियों में भी खस का तेल उपयोगी होता है।
पर्यावरण के लिए खस का योगदान
कहते है खस की घास को सबसे पहले भारत मे पहचान मिली। सन 1980 में वर्ल्ड बैंक ने एक विशेष प्रोजेक्ट शुरू किया जिसमें तकरीबन 100 देशों में इससे जुड़े रिसर्च चले। उसी समय विश्व बैंक के कृषि वैज्ञानिक रिचर्ड ग्रिमश ओर जॉन ग्रीनफील्ड मिट्टी के बहाव को कैसे रोकें इस परबहुत रिसर्च कर रहे थे।उसी दौरान ये दोनों वैज्ञानिक कर्नाटक के एक गावँ आये उन्होंने देखा कि वहां के किसान सदियों से मिट्टी के बहाव को रोकने के लिए खस की घास उगाते है तथा खेतो के किनारों तथा मेड़ो पर इन्ही घास का इस्तेमाल करते है। इन दोनों कृषि वैज्ञानिकों ने वहां के किसानों से ही जाना कि इसी खुशबूदार घास से उनके गांवों में जल संरक्षण भी होता था। तथा कुओं का जलस्तर भी ऊपर ही बना रहता था। एक विशेष बात यह भी पता चली कि यह दूषित जल को भी शुद्ध करता है।कई अच्छे परिणामो में से एक परिणाम यह भी है कि पहले इन घासों से जहां 18 महीनों में तेल निकलता था वही अब 6 से 12 महीनों में ही तेल निकाला जा सकता है। बाजार में लगभग 14 हजार रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाले इस तेल की अंतरराष्ट्रीय बाजार में 20 से 25 हजार रुपये लीटर तक बिकता है। इस सुगन्धित तेल में 50 से भी अधिक रासायनिक घटक पाए जाते है।
खस की एक विशेष बात यह भी है कि जमीन बाढ़ ग्रस्त हो, बंजर हो, या पथरीली इसकी खेती हर जगह लहरा सकती है। आये दिन प्राकृतिक आपदाओं के चलते किसान इसकी खेती करके निश्चिंत रह सकता है। खस की घास की एक अनोखी खासियत यह भी है कि किसान इस घास को सब्जियों तथा फलों के साथ उगाते है तो कहते है कि सब्जियों तथा फलों में कीड़े नहीं लगते तथा कीट पतंगे भी दूर ही बने रहते ।
औषधि में भी खस
खस की उपयोगिता यही तक सीमित नही है। आयुर्वेद जैसी परम्परागत चिकित्सा प्रणाली में खस का उपयोग ओषधि के रूप में भी होता है। जो कई तरह की बीमारियों को ठीक करने में मददगार साबित होती है। खस की जड़ का पानी भी फायदेमंद बताते हुए इसे जादुई जड़ी भी कहा गया है। जड़ों से हल्की चन्दन जैसी आती खुशबू वाली घासों का प्रयोग पुराने समय मे मटका बनाने के लिए भी होता था। आज भी इनसे चटाई, डलियां, के अलावा कई कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती है।
खस की खेती के सफल होते किस्से
भारत के पूर्वी तट के किसानों को हमेशा डर रहता है कि उनके खेत कभी भी प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आ सकते है। ऐसे में उन्हें इस बारहमासी खुशबूदार खस की घास को बोना शुरू कर दिया है। जो मिट्टी के खारेपन के अलावा विपरीत मौसम की मार भी सहन कर लेती है। भरपूर आमदनी के साथ इत्र तथा हस्तशिल्प उद्योग के नए रोजगार के अवसर प्रदान किये है। महिलाओं ने स्व सहायता समूह बना लिए है, जिसमें खसखस के हार, योग के लिए चटाइयां लेपटॉप बेग बर्तन साफ करने का स्क्रब आदि वस्तुओं का प्रमुख केंद्र बन गया है। (लेखिका का अपना बेहतरीन अध्ययन एवं अपने विचार है)