शिष्य को पास बैठाकर पढ़ाना, शहर को जीतने से कम नहीं होता

फ्लैश बैक : नवीन जैन

इंदौर (मध्य प्रदेश)

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गजब संयोग है कि हिंदू वर्ष का कैलेंडर ,जिसे विक्रम संवत के नाम से जाना जाता है, इस वर्ष के मार्च महीने की  22 तारीख से  प्रारंभ हो रहा है। साथ ही पारसी समुदाय का नया साल भी 21 मार्च से शुरू हो रहा है जिसे नवरोज कहा जाता है। पारसी समुदाय की बुद्धिमत्ता, देश भक्ति, उद्यम शीलता, परोपकार, खेल और  खासकर नारी शिक्षा के प्रति समर्पण के कई किस्से मशहूर हैं, लेकिन एक किस्सा शायद बहुत कम लोगों ने पढ़ा_ सुना होगा।

दादाभाई नौरोजी  ब्रिटिश संसद के पहले भारतीय सदस्य थे। दादाभाई स्त्री शिक्षा के प्रबल समर्थक थे। वे अपने पौत्र पौत्रियों को अपने बाल्यकाल की कथाएं सुनाया करते थे। कथा सुनाने के इस विचार को उन्होंने कॉलेज में भी जारी रखा। सर पी. आर. मसानी ने इस बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए लिखा था कि दादाभाई ने अपने उक्त विचार को आगे बढ़ाने के लिए एक अनूठा प्रयोग किया था। वे अपने कॉलेज के एक सहपाठी को साथ लेकर घर घर जाया करते थे। वे बच्चों के माता पिता तथा संरक्षकों से प्रार्थना करते थे कि वे अपने बरामदो में उन दोनों को बैठने की जगह दें ताकि वे खासकर उनकी लड़कियों को पढ़ना लिखना सिखा सकें और विशेषकर गणित की शिक्षा दे सकें। सर मसानी के अनुसार कई अभिभावकों ने दादाभाई नौरोजी की उक्त पहल का तहेदिल से स्वागत किया लेकिन ,कुछ अभिभावक ऐसे भी थे जिन्होंने इस प्रयास को हास्यादपद और निरर्थक बताकर दादाभाई को उनके साथी सहित मकान की सीढ़ियों से नीचे फेंक देने की धमकी तक दे डाली।

मसानी ने दादाभाई के बारे में उक्त जानकारी देते हुए एक बहुत ही दमदार बात कही थी कि कभी कभी किसी शिष्य को पास बैठाकर पढ़ाना किसी शहर को जीतने से कम नहीं होता। कारण यह कि रूढ़िवादी शक्तियों का बच्चियों के आसपास जमाव रहता है  तथा इसके साथ ही ऐसे अज्ञानी लोगों को यह भ्रम भी होता है कि इस प्रकार के आंदोलन से लोगों के सामाजिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। दादाभाई के शिक्षक दादाभाई को नए भारत की आशा कहते थे। दादाभाई ने अपने लंबे तथा भीड़ भरे जीवन में अनेक कार्य प्रथम रहकर संपन्न किए। वे एक ब्रिटिश विश्वविद्यालय में प्रथम भारतीय प्रोफेसर रहे। भारतवासियों के राजनीतिक, सामाजिक और बौद्धिक उत्थान के लिए दादाभाई नैरोजी ने ही कई संगठनों की स्थापना की। वे रॉयल कमीशन पर बैठने वाले पहले भारतीय थे। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)