लेखक : शाहिद हुसैन
जयपुर राजस्थान
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ज़कात का मतलब पवित्र करना या शुद्धिकरण करना है, इस शब्द का तकनीकी अर्थ यह है कि एक मुसलमान को अपने माल में से एक निर्धारित हिस्सा (2.5%) जरूरतमंद लोगों को देना है। इस्लाम के अनुसार ज़कात देकर मुसलमान अपने शेष धन को पवित्र कर लेता है। इसका धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व और अधिक है, जकात का महत्व मानवीय भी बहुत ज्यादा है इसमें एक अमीर व्यक्ति गरीब की मदद करता है। जिससे उसके मन में नरमी के भाव पैदा होते हैं और वह इस तरह अल्लाह के और करीब हो जाता है ईश्वर (अल्लाह) जो सारे संसार को देने वाला है जकात देने वाले से और अधिक प्रसन्न हो जाता है। एक मुसलमान के लिए इससे ज्यादा प्रसन्नता की बात क्या होगी कि उसका अल्लाह उससे खुश हो जाए।
जकात एक मुसलमान को लालच स्वार्थ से दूर कर देती है अल्लाह फरमाता है और जो लोग अपने मन की कंजूसी से बचा लिए जाएं ऐसे ही लोग कामयाब हैं .(कुरआन 59:9) संसार में ऐक तरफ ब्याज की व्यवस्था है तो दूसरी तरफ जकात की व्यवस्था है, जकात देने वाले और लेने वाले दोनों में प्रेम भाव का बढ़ना स्वाभाविक है इस प्रकार ज़कात समाज में नफरत का माहौल खत्म करती है। लेकिन दूसरी ओर ब्याज लेने वाले और देने वाले दोनों में प्रेम की जगह नफरत बढ़ती है और यह समाज में नफरत का माहौल पैदा करती है। ब्याज के लेनदेन के कारण आए दिन हत्याएं होती है लोग आत्महत्या करते हैं। ज़कात से गरीबों की मदद होती है और ब्याज की व्यवस्था में लोगों का शोषण होता है। ज़कात लेने वालों में कोई बाद में अमीर हो जाता है तो वह भी जकात देने वाला बन जाता है इससे देश में लोगों का हित करने वाला एक और पैदा हो जाता है. इस तरह ज़कात समाज और देश के लिए वरदान है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)