विश्व गौरैया दिवस पर विशेष
लेखक : प्रशान्त सिन्हा
पर्यावरणविद एवं लेखक
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हर साल 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है। गौरैया जो अमूमन हर घर के आंगन में चहकती है, लेकिन बीते कुछ वर्षों में गौरैया की संख्या में तेजी से कमी आ रही है जो प्रकृति के लिए चिंताजनक है। इसी वजह से साल 2010 से गौरैया के संरक्षण के उद्देश्य को लेकर गौरैया दिवस मनाया जाने लगा। वर्ष 2010 में पहली बार गौरैया दिवस मनाने की शुरुआत की गई ।दरअसल ब्रिटेन की रॉयल सोसाइटी ऑफ वॉइस ने अपने शोध के आधार पर उजागर किया कि समूचे विश्व में गौरैया रेड लिस्ट की श्रेणी में आ गई है, अर्थात गौरैया का संकट अस्सी फ़ीसदी के करीब जा पहुंची है।
धरती पर लगातार हो रहे जलवायु परिर्वतन, मौसम के अत्याधिक बदलाव और मानवीय गतिविधियों के कारण वन्यजीवों की संख्या निरंतर कम होती जा रही है। पशु - पक्षी न केवल धरती का हिस्सा है, अपितु वे पारिस्थितिक तंत्र में अहम भूमिका निभाते हैं। वन्य जीव संसाधन न केवल विश्व भर में बहुत आकर्षण, रुचि और शोध का विषय रहे हैं, बल्कि वे मानव प्रजातियों के अस्तित्व में एक महत्तवपूर्ण भूमिका भी निभाते हैं।
प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सलीम अली अक्सर यह कहा करते थे कि पक्षी हमारे पर्यावरण का थर्मोमीटर है। तभी तो कभी घर के आंगन में गौरैया, मैना और बुलबुल जैसे पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देती थी। परन्तु आज सबकुछ बदल गया। धीरे धीरे पक्षियों की प्रजातियां विलुप्त होती जा रही है। दुनिया में पक्षियों की लगभग 9,900 प्रजातियां ज्ञात हैं और उनमें से 189 प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है और कुछ विलुप्त होने के कगार पर है। भारत में 1,250 प्रजातियां पाई जाती है, जिनमें 85 प्रजातियां विलुप्त के कगार पर है जिसमें गौरैया भी शामिल है। हालाकि इसके संरक्षण के लिए सरकार द्वारा प्रयास किया जा रहा है। गौरैया हमारी प्रकृति और उसकी सहचरी है। गौरैया सिर्फ एक चिड़िया का नाम नही है बल्कि हमारे परिवेश, साहित्य, कला और संस्कृति से भी संबंध रहा है।
पूरे विश्व में छोटी सी परिचित चिड़िया गौरैया भारत के अलावा ब्रिटेन, आयरलैंड सहित दुनिया के कई हिस्सों में बड़ी संख्या में पाई जाती है। कहा जाता है कि जहां जहां इंसान गया उसके पीछे पीछे गौरैया गई।
गौरैया हमारे पर्यावरण और हमारे जीवन के लिए बहुत ज़रूरी है। गौरैया वो चिड़िया है जो लारवा और कीट का सेवन करती है जिससे प्रकृति में कीड़े - मकोड़ो का संतुलन बना रहता था। गौरैया खेतों की फसलों का नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेती है और किसानों की फसल बर्बाद होने से बचाती हैं।
गौरैया की संख्या की कमी की वजह से अब फसल को कीड़ों को मारने के लिए किसान कीटनाशक दवाओं का उपयोग करते हैं जिससे इंसानों को मिलने वाले अनाज सब्जियां सभी कीटनाशक दवाओं की वजह से अनेक बीमारियों को दावत दे रही है।
गौरैया के विलुप्त होने के कई कारण है जैसे गौरैया अनाज और कीड़े-मकोड़े खाती है, जो पहले तालाब और खेतों में आसानी से मिल जाया करते थे। लेकिन खेतों में रसायनिक दवा और गर्मी में जलाशय सूखने के कारण पक्षी को उसकी खुराक नहीं मिल पाती। गौरैया घरेलू पक्षी है। इसलिए यह चिडिय़ा इंसानों के आसपास ही घौंसला बनाती है, लेकिन कई लोग घौंसलों को उजाड़ देते हैं। तेजी से कटते जंगल और शहरों और गांवों में पेड़ों की कमी के कारण चिडिय़ा के लिए प्राकृतिक आवास तथा वातावरण में कमी आ रही है।
बढ़ता वायु प्रदूषण भी इन पंछियों के लिए मुसीबत बन रहा है। आसमान में उड़ान के दौरान ये प्रदूषित हवा के संपर्क में आते हैं। कई जानलेवा प्रदूषक इनके शरीर को काफी नुकसान पहुंचाते है, और कुछ पक्षी प्रदूषित हवा में सांस ना ले पाने के कारण दम तोड़ देते हैं। मोबाइल रेडिएशन पक्षियों के लिए घातक सिद्ध हो रहा है। मोबाइल टॉवरों से निकली रही हानिकारक तरंगें इंसानों सहित पशु-पक्षियों पर काफी गहरा और बुरा असर डाल रही है। तरंगों के कारण गौरैया की प्रजनन क्षमता पर भी असर हुआ है। इस कारण इनकी जनसंख्या नहीं बढ़ रही।
20 मार्च गौरैया दिवस हमे सचेत कर रहा है कि गौरैया के साथ साथ अन्य पक्षी और पशुओं की सुरक्षा संरक्षण में ही मानव जीवन की भलाई है। इसलिए इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)