इंदौर। एक ऋतु से दूसरी ऋतु का आगमन बड़ा ही सुकून भरा होता है। जहाँ एक तरफ इंसानों को ठिठुरती ठंड के बाद गर्मी का आगमन राहत दे जाता है, वहीं दूसरी तरफ मूक जानवरों और पक्षियों के लिए गर्मी का यह मौसम बड़ी समस्या बनकर खड़ा हो जाता है, जो कई बार जानलेवा भी हो जाता है। कड़कड़ाती धूप में भूख और प्यास से तड़पते कई पशु, विशेष तौर पर पक्षी हर वर्ष मौत का शिकार हो जाते हैं, कारण यह है कि आसमान में उड़ते इन बेज़ुबानों पर कम ही लोगों का ध्यान जाता है। गर्मी के समय प्यास की वजह से दाना-पानी की आस में इधर-उधर भटकते बेज़ुबान पक्षियों के लिए इंदौर की सामाजिक संस्था, बीइंग रेस्पॉन्सिबल #दानापानी (#DanaPani) पहल कर रही है। इस पहल के तहत घर की छत पर पक्षियों के लिए दाना-पानी की व्यवस्था करने के उद्देश्य के चलते सकोरे (मिट्टी के बर्तन) और ज्वार-बाजरे के दाने का वितरण किया जा रहा है। यह पहल पूर्णतः निःशुल्क और निःस्वार्थ है। पक्षियों की भूख और प्यास मिटाकर इस सेवा से जुड़ने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति संस्था बीइंग रेस्पॉन्सिबल से निःशुल्क सकुरा और दाना ले सकते हैं।
सुरभि चौरसिया, प्रेसिडेंट, बीइंग रेस्पॉन्सिबल, कहती हैं, "#दानापानी पहल करने के पीछे बीइंग रेस्पॉन्सिबल का एक ही मकसद है कि गर्मी में तड़पकर किसी बेज़ुबान की मौत न हो, क्योंकि इंसान को प्यास लगती है, तो वह कैसे भी करके पानी की व्यवस्था कर सकता है, लेकिन मूक पशु-पक्षियों को पानी की आस में इधर-उधर भटकना और प्यासा तड़पना पड़ता है। उनकी अनकही आवाज़ को समझना आसान नहीं है, जो चहचहाते हुए अपनी भूख-प्यास मिटाने की आस लिए हमारी छतों पर आ जाया करते हैं। जरुरत है, तो बस उनके इस इशारे को समझने की।"
गौरतलब है कि संस्था का यह सेवाभाव सिर्फ बेज़ुबानों तक ही सीमित नहीं है, यह बेसहारा सड़कों पर घूमते नन्हें बच्चों और अन्य जरूरतमंद व्यक्तियों को धूप से बचाने की छोटी-सी पहल के माध्यम से टोपी और चप्पल का वितरण भी कर रही है, ताकि वे कुछ हद तक धूप के प्रकोप से बच सकें। इसके अलावा, संस्था अपने जीवन का 60 वर्ष या उससे अधिक का तजुर्बा रखने वाले वरिष्ठजनों के लिए एक नहीं, बल्कि दो डे केयर सेंटर्स का सफल संचालन कर रही है। उनके सबसे अच्छे दोस्त 'उनके हमउम्रों' के साथ डे केयर सेंटर्स के सदस्य कैरम, तम्बोला, शतरंज, एक्यूप्रेशर और सांस्कृतिक गतिविधियों सहित अन्य कई दिलचस्प गतिविधियों का आनंद लेते हैं और समय-समय पर होने वाले सांस्कृतिक और वार्षिक कार्य्रक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।