लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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कर्नाटक विधानसभा के चुनाव अब केवल कुछ सप्ताह ही दूर है, चुनाव आयोग की घोषणा के अनुसार एक दिवसीय चुनाव 10 मई को होंगे तथा नतीजे 13 मई को आएंगे। चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही चुनाव संहिता लागू हो गई है। पिछले कुछ सप्ताहों से राज्य के तीनो प्रमुख राजनीतिक दल-सत्तारूढ़ बीजेपी, मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और तीसरा बड़ा दल जनता दल (स) अपनी-अपनी चुनावी रणनीतियों को अंतिम रूप देने में लगे थे। यदयपि सभी दलों के नेता इस बात को दोहराने में कमी नहीं रखते कि चुनाव नीतियों और विकास के मुद्दों पर लड़े जाने चाहिए लेकिन सभी दल अपने उम्मीदवारों का चयन करते समय उनके विधान सभा क्षेत्र में जातीय समीकरणों को ही तरजीह देते है।
दक्षिण के इस राज्य में दो जातीय समुदायों-लिंगायत और वोक्कालिंगा का दबदबा है। आबादी और मतों के नजरिये से दोनों बड़े समुदाय हैं। इन दोनों के पास धन बल की कमी नहीं। इनका सामाजिक दबदबा भी अन्य समुदायों से अधिक है। मुस्लिम अल्पसंख्यक गिने चुने इलाकों में प्रभाव रखते है। आदिवासी तथा अन्य वर्ग भी अपने अपने क्षेत्रों बड़ी भूमिका निभाते है।
इन सब समुदायों में से लिंगायत सबसे बड़ा समुदाय है। कुछ दशक पूर्व तक यह समुदाय पूरी तरह से कांग्रेस साथ था। लेकिन पार्टी की भीतर वर्चस्व की लडाई चलते इस समुदाय के नेता बीजेपी की ओर झुकते चले गए। इसी वजह से लगभग दो दशक पूर्व इस राज्य में पहली बार बीजेपी सत्ता में आई तथा येद्दियुरप्पा राज्य के मुख्यमंत्री बने। पिछले कुछ दशकों से येद्दियुरप्पा राज्य में इस समुदाय के सबसे बड़े अथवा या यों कहिये के छत्र नेता है। 2013 में मतभेदों के चलते येद्दियुरप्पा बीजेपी से बाहर आ गए तथा अपना क्षेत्रीय दल बन लिया। मत विभाजन के चलते 2013 के विधान सभा चुनावों बीजेपी और इस नए दल को नुकसान हुआ और कांग्रेस सत्ता में आने में सफल रही। कुछ काल बाद दोनों दल फिर एक हो गए तथा 2018 के विधान सभा चुनावों में बीजेपी सत्ता में आने में सफल रही। बीजेपी के नियमों के अनुसार 75 वर्ष से अधिक की आयु का कोई नेता किसी पद नहीं रह सकता। लेकिन नियमों को ताक पर रख कर अधिक आयु होने बावजूद येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बना गया। कारण यह था कि वे लिंगायत समुदाय के बड़े नेता थे और इसी के चलते पार्टी सत्ता में आने में सफल रही थी।
वोक्कालिंगा समुदाय शुरू से जनता दल (स) के साथ रहा है इसी के चलते देश के पूर्व प्रधान मंत्री रहे एच डी देवगौड़ा केंद्र में जाने से पूर्व राज्य में मुख्यमंत्री बने थे। इस दल का दबदबा पुराने मैसूर इलाके में है जहाँ कुल 75 सीटें आती है। यह वोक्कालिंगा बहुल इलाका कांग्रेस को आमतौर अल्पसंख्यकों के अलावा इन दोनों समुदायों के साथ साथ अन्य समुदायों के वोट मिलते है।
लगभग दो वर्ष पूर्व येद्दियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा कर बसवराज बोम्मई को मुख्यमंत्री बनाया गया। वे भी लिंगायत समुदाय से आते है। इसके बावजूद पार्टी में येद्दियुरप्पा का दबदबा बना रहा। उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड का सदस्य बना दिया गया। पार्टी के केंद्रीय नेताओं का मानना है कि उनके सहयोग बिना पार्टी राज्य में फिर सत्ता में नहीं आ सकती।
जातीय समीकरणों को साधने के लिए 1995 में तत्कालीन सरकार ने कई जातीय समुदायों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर दिया था। पहली बार राज्य में मुसलानों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण का लाभ दिया गया। केवल इतना ही नहीं पिछड़ा वर्ग की कई श्रेणिया बनाकर उनका अलग अलग प्रतिशत तय कर दिया गया। इसमें लिंगायतों को 5 प्रतिशत, वोक्कालिंगा को 4 प्रतिशत तथा मुस्लिम को भी 4 प्रतिशत आरक्षण मिला। लिंगायत समुदाय में एक वर्ग अपने आपको पंचमशाली कहता है। इस समुदाय की मांग थी कि लिंगायत वर्ग के कोटे में से उनको अलग से आरक्षण दिया जाये।
चुनाव घोषण से कुछ दिन पहले पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश पर बीजेपी सरकार ने लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय का आरक्षण प्रतिशत बढ़ा 7 और 6 प्रतिशत कर दिया। चूंकि इस आरक्षण से कुल आरक्षण अधिकतम सीमा से भी अधिक हो जाता था इसलिए मुस्लिम समुदाय को आर्थिक रूप से कामजोर वर्ग की श्रेणी में डाल दिया गया। इस पर मुस्लिम समुदाय ने बड़ा ऐतराज जताया। समुदाय के नेताओं का कहना है कि यह कदम एक प्रकार से उनका आरक्षण खत्म करने जैसा है। चूँकि मुस्लिम आम तौर पर कांग्रेस के साथ रहे है इसलिए कांग्रेस नेताओं ने तुरंत घोषणा कर दी कि अगर वह राज्य में फिर सता में आती है तो बीजेपी सरकार के इस निर्णय को रद्द कर देगी।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बदलाव के जरिये बीजेपी अपना लिंगायत वोट और अधिक मज़बूत करना चाहती है। साथ ही जनता दल (स) के वोक्कालिंगा वोटों में सेंध लगाना चाहती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)