लेखक : डॉ. सत्यनारायण सिंह
लेखक रिटायर्ड आई.ए.एस. अधिकारी है
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कांग्रेस एक लोकतांत्रिक संगठन है, एक विचारधारा है, देश के हर शहर गांव में है कांग्रेस केडर बेस्ड पार्टी नहीं है। आपसी मतभेद रहते है, ग्रुप भी रहे है, पार्टी के टुकड़े भी हुए है नेतृत्व के विरूद्ध आवाज भी उठी है, मतभेद भी हुए है। गांधी परिवार उसकी धुरी है, एक जुट रखने में सक्षम है। मौजूदा दौर में देखें तो कांग्रेस की हार का मुख्य कारण उसके आंतरिक संगठन के एकजुट होने की जो आवश्यकता है, उसका परिचय कांग्रेस नहीं दे पा रही है। कांग्रेस के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि उसमें राहुल गांधी के अलावा स्टार प्रचारकों की कमी है। अन्य कोई नेता नहीं है, जिसका नेतृत्व पार्टी में बिना गुटबाजी के सबको स्वीकार हो।
प्रान्तीय दलीय पदाधिकारियों का पार्टी के प्रति अविश्वास और अनुशासनहीनता गम्भीर चिंता का विषय है। पार्टी राजनेताओं के ड्राईंग रूमों में सिमट कर रह गई है बड़े नेताओं व पदाधिकारियों में पार्टी को जिताने की भावना नहीं है। जातिवाद वर्ण व्यवस्था का विरोध करने के बजाए उसकी बुनियाद पक्की करने वाले लोग, सत्तासीन और पदाधिकारी बनने की लालशा में युवा नेतृत्व के नाम पर, वरिष्ठ व बुजुर्ग नेताओं को पर्याप्त प्रतिष्ठा व तवज्जों नहीं देते। सिद्धान्त, सेवा कार्य और जन भावनाओं को महत्व नहीं दिया जा रहा।
भ्रष्टाचार किसी एक पार्टी तक सीमित नहीं है फिर भी आरोपों के कारण कांग्रेस को अधिक नुकशान हुआ है। जिन वरिष्ठ नेताओं पर अनुशासनहीनता के आरोप लगे, उन्हें पार्टी संगठन में पदाधिकारी बनाकर पुरस्कृत किया गया। घोटालों की नई-नई खबरों व अफवाहों से आम आदमी हताशा व संशय के पहाड़ के नीचे दब गया है। गम्भीर आरोपों से पार्टी असहाय बनी हुई है। मुख्यालय कारपोरेट हाउस की शक्ल लेते जा रहे है, पदाधिकारी सुरक्षा गार्डो से घिरे रहते है।
कांग्रेस नेता केवल अपनी सुविधा, अपना पद, अपनी अहमियत, व पावर प्राप्त करने में लगे है, राहुल गांधी ने स्पष्ट व बेबाक टिप्पणी की है। कांग्रेस में आने के 4 रास्ते है पहला रास्ता पैसा/पावर हो, दूसरा रास्ता राजनेताओं से रिश्तेदारी तीसरा रास्ता राजनीति में दोस्ती या जान पहिचान, चौथा रास्ता आम आदमी की आवाज उठाकर राजनीति में आये। आज यह नहीं हो रहा चौथा रास्ता बन्द है।
कांग्रेसजन अपनी ही पार्टी के नेताओं की आलोचना करते रहते है। अनुशासन का कोई ध्यान नहीं यह समझकर चलते है कांग्रेस उनसे है, वे कांग्रेस से नहीं। जनता की तकलीफें दूर करने की बजाए अपने पद की मांगे अपनी सरकार से करते रहते है। जनता में अपनी व पार्टी में साथियों की छबी बिगाड़ते रहते है। यह नहीं सोच रहें आगे चुनाव लड़ना है, जनता को जबाव देना है, विरोधी उनकी नींव खोद रहे है। चुनावों के वक्त कई कांग्रेस सदस्यों ने उल्टे सीधे नुकसानदायक वक्तव्य दिये है।
ऐसे समय कांग्रेस को सुदृढ़ करने के लिए एक बड़ा छटनी अभियान चलाकर, पूरी जांच व सिद्धांत के साथ महत्वाकांक्षी, अनुशासनहीन व डाउटफुल चरित्रों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिए।
पार्टी को ऐसे सभी नेताओं की छंटनी करनी चाहिए जिन नेताओं का पार्टी से लगाव नहीं है, सक्रिय नहीं हैं उन्हें पदों से हटाकर पृथक करना चाहिए तदुपरान्त पार्टी के पास इस समय कई मुद्दे है उनके संबंध में संघर्ष करना चाहिए। अनुषासनहीनता और गुटबाजी के कारण पार्टी घोर संकट में है। 2014 के चुनावों में सत्ता खोने के बाद से पार्टी के लिए स्थितियॉं बदतर होती गई है। वरिष्ठ नेताओं के भाषणों में पार्टी की अन्दरूनी समस्याओं की झलक स्पष्ट दिखती है। पार्टी में कुछ अन्दर के छिपे षत्रु भी है, षीर्ष नेतृत्व के विरूद्ध छिपे खुले रूप से आवाज उठाते रहते हैं, आलोचना करते रहते है।
पार्टी में गतिषील नेता, प्रमुख रणनीतिकार, प्रबन्धक नहीं रहे। कुछ ने पलायन कर लिया। जो है वे मुख्यमंत्रियों के दावेदार है जबकि आम कार्यकर्ता व कर्ताधर्ता उन्हें आगे बढाने के इच्छुक नहीं है। पार्टी को राजस्थान में उपमुख्यमंत्री के इस्तीफे से पैदा संकट से जुझना पडा । मध्यप्रदेष व पंजाब की सत्ता को खोना पडा। दिल्ली व यूपी में यही हुआ, गुजरात व हरियाणा में हो रहा है। एक बडी समस्या कई मुद्दों पर पार्टी में सहमति नहीं होना है। पहले पार्टी में मतभेद सामने नहीं आते थे अब तो पार्टी के छोटे-मोटे नेता भी पार्टी को नुकसान पंहुचाने की कीमत पर अपना मत खुलकर व्यक्त करने में कोई संकोच नहीं करते।
आज कांग्रेस की कहीं भी किसी भी मुद्दे पर सामाजिक जिम्मेदारी और हिस्सेदारी नहीं है। दिशाहीनता की शिकार है। वंशवाद, परिवारवाद व भ्रष्टाचार के आरोपों का सुचारू जबाब नहीं दे पा रही है। धनबल और संरक्षण वाले लोगों ने इस संगठन की राज्य इकाईयों पर कब्जा कर लिया।
कांग्रेस पार्टी में अनुशासन की परम्परा अब खत्म हो रही है। पार्टी के लिए जी-जान लगाने वाले नेता व कार्यकर्ता आज कहां है ? चुनाव तंत्र बिगड़ गया है, पूर्णकालिक चुनाव प्रबंधन नहीं है, कांग्रेस जब किसी राज्य में चुनाव आता है तब काम करना शुरू करती है। कांग्रेस अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रही है। पूर्व में जिस तरह का राजनैतिक कौशल पार्टी के पास था वह भी धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। टिकट वितरण के समय असंतोष, दल बदल उभरता है। कांग्रेस की नीतियों से हिन्दु-मुस्लिम दोनों के मत बंट जाते है। आज सत्ता दल ने धर्म व आस्था का मिश्रण कर दिया है, धर्मनिरपेक्ष दल हाशिये पर चले गये है। आलाकमान के फैसलों को चुनौती दी जा रही है। कांग्रेस की केन्द्रीय सत्ता कमजोर, शक्तिहीन होती जा रही है।
कांग्रेस को धर्मनिरपेक्ष दल होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है क्योंकि भाषा, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, जाति वर्ग के नाम पर राजनीति आरम्भ हो चुकी है। धार्मिक, क्षेत्रीय व जातीय भावनाओं को भडकाया जा रहा है, धर्मनिरपेक्षता व लोककल्याण इन विघटनकारी धर्मान्ध तत्वों को पसन्द नहीं है। इन लोगों ने कांग्रेस के विरूद्ध योजनाबद्ध तरीके से घृणा व द्वैष प्रसारित किया है, वंशवाद, परिवारवाद व भ्रष्टाचार का प्रतीक करार दिया है। कहा जाता है 70 वर्ष में देश में कुछ नहीं किया।
आरोपों का कोई जबाब देने वाला वक्ता, सक्षम नेता नहीं है। राहुल नोटबंदी से लेकर जीडीपी व कोविड 19 महामारी, कश्मीर पालिसी, लद्दाख में चीनी आक्रमकता, आर्थिक नीतियों, मंदी व बेरोजगारी तक कई मुद्दों पर मोदी के खिलाफ माहोल बनाने की कोशिश करते आ रहे है, वरिष्ठ कांग्रेसजनों ने राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सामूहिक रूप से आक्रामक रवैया नहीं अपनाया। पार्टी का रूख तय नहीं है, कांग्रेस मंचों पर कोई नियमित चर्चा नहीं होती, सामूहिक नेतृत्व सफल नहीं हो रहा। कांग्रेस दिशाहीनता की शिकार है, इच्छाशक्ति नहीं है। हर नेता संगठन व सरकार में स्थान सुरक्षित करने की सांठगांठ में लगा है।
पार्टी दुष्प्रचार का पूरी ताकत से मुकाबला नहीं किया जा रहा है। मीडिया के प्रबृद्धजनों को साथ नहीं लिया। अन्य राजनैतिक दलों के मुकाबले अवैतनिक, वैतनिक कार्यकर्ताओं व प्रचारकों को नियोजित नहीं किया। ग्रामस्तर पर संगठन को सुदृढ़, सक्षम व मजबूत नहीं किया। वर्तमान सरकार के जनविरोधी फैसलों के विरूद्ध कांग्रेस नेता राष्ट्रीय सवालों को नहीं उठा पा रहे है, चुनाव लड़ने के बजाय राज्यसभा व अपर हाउसों में जाने को ही प्रयत्नशील रहते हैं। जनोपयोगी व महत्वपूर्ण सार्वजनिक उपक्रमों को जिन्हें कांग्रेस के शासन में स्थापित किया था, उनके निजीकरण के निर्णयों के विरूद्ध भी कोई सख्त विरोध अथवा सैद्धांतिक कार्यक्रम नहीं है।
दक्षिणपंथी भाजपा पूंजीपतियों, उद्योगपतियों, व्यवसायियों व दक्षिणपंथियों व उनके द्वारा संचालित मीडिया द्वारा पांव जमा बैठी है। कांग्रेस को अपनी आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना होगा। कांग्रेस को नेतृत्व का तरीका बदलना पडेगा। पार्टी को मूल संगठन, फ्रंटल संगठनों को जमीन तक आंतरिक लोकतांत्रिक तरीके से मजबूत कर, आक्रामक रूप से जनता तक पहुंचना होगा। केवल सत्ता सुख चाहने वाले कांग्रेसी नेताओं से मुक्त होकर, समर्पित भाव से काम करने वाले, विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष करने वाले लोगों के नेतृत्व में आगे बढ़ना होगा। कांग्रेस को अनुभवी नेताओं व प्रभावशाली सिद्धांत से चलने वाले युवा कार्यकर्ताओं को जोड़कर, मध्यम रास्ता बनाते हुए अनुभवी मजबूत नेताओं के नेतृत्व में आगे बढ़ना होगा।
नये नेताओं को कांग्रेस की रीति नीति व इतिहास से अवगत कराकर एक प्रतिबद्ध मजबूत कैडर बेस्ड संगठन बनाना होगा। कांग्रेस जैसी बड़ी पार्टी के पास हर स्तर पर ठोस व प्रभावी नेतृत्व की आवश्यकता है। जो नेता विवादित हो गये है, व्यक्तिवादी है, अनैतिकता आदि के आरोप है उनको सीधे चुनावों में अथवा संगठन में पदाधिकारी के रूप में महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। देश प्रेम, त्याग व पार्टी नीतियों की भावना से प्रेरित होकर चलने वाले कार्यकर्ताओं को नेतृत्व संभलाना चाहिए। मीडिया को जोड़कर अथवा खुद के माध्यम तैयार कर चुनाव प्रचार प्रभावोत्सक ढंग से करने की आवश्यकता है। पार्टी में आमलचूल बदलाव कर राज्यों में मजबूत नेतृत्व से पार्टी उठ खडी हो सकती है।
कांग्रेस संगठन यदि वर्तमान सरकार की कमियों, नोटबंदी, जीडीपी, लोकडाउन, मंदी, महंगाई, बेरोजगारी व राजकोष के दुरूपयोग, निजीकरण, किसान, मजदूर की अवहेलना व प्रत्याडना को लेकर जनता में जाये तो सफलता हाथ लगेगी परन्तु कांग्रेस संगठन को केवल भाजपा विरोधी वल रही अंतरधारा पर ही निर्भर नहीं रहकर अपने आदर्श, सिद्धांत व चिंतन को जन-जन तक पहुंचाना चाहिए, अपने पोजिटिव प्रोग्रामों से संतुष्ट करना चाहिए कि कांग्रेस ही आज भी एकमात्र ऐसा दल है जो देश समाज व जनता की सेवा कर सकती है, देश में विकास के आयाम स्थापित कर सकती है। आज की स्थितियों में अनेक राज्यों में गठबंधन अनिवार्य है, अभी से प्रभावी क्षेत्रीय राष्ट्रीय सोच के दल से गठबंधन कर चुनावों की तैयारियां करनी चाहिए।
कांग्रेस को आज सचेत रहना होगा वह कांग्रेस राजस्थान में जीती हुई बाजी ना हार जायें। इस बात को यदि गंभीरता से नहीं लिया गया तो इसके विपरीत परिणाम आ सकते है। जनता इस समय अशोक गहलोत जैसे धीर गम्भीर व्यक्तित्व के धनी 40 साल के राजनीतिक अनुभव पर भरोसा करती है। एक सेवाभावी समर्पित जन नेता के सफर में उन्हें कई अग्नि परीक्षाओं से गुजरना पड़ा है और वे हर बार कुन्दन की तरह खरा सिद्ध हुए है। भाजपा अगर आज राजस्थान में डरती है तो वह केवल एक शख्स अशोक गहलोत ही है। उन्होंने जमकर लोहा लिया है। पूरे राजस्थान व छत्तीस कोमों में पकड़ रखने वाले गहलोत केा जनता मुख्यमंत्री देखना चाहती है। उन्हें मुख्यमंत्री को देखने की मंशा से ही जनता ने राजस्थान में कांग्रेस को विजयी बनाया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)