लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
www.daylife.page
जब से दक्षिण के राज्य तमिलनाडु में एम के स्टालिन के नेतृत्व मे द्रमुक की सरकार सत्ता में आई है तब से किसी न किसी मुद्दे को लेकर कभी सीधे तथा कभी यहाँ के राज्यपाल के माध्यम से केंद्र से टकराव होता रहा है। स्टालिन तथा पार्टी के सभी बड़े नेताओ का कहना है कि केंद्र की बीजेपी नीत एनडीए सरकार राज्य में द्रमुक पार्टी की सरकार को ठीक से काम नहीं करने दे रही। अक्सर कभी संविधान या फिर कानूनों की आड़ में राज्य सरकार के संवैधानिक अधिकारों को छीनने की कोशिश करती आ रही है। यह आरोप भी लगाया जा रहा है कि केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग करके बीजेपी लोकसभा चुनावों से पूर्व राज्य में अपने पैर फ़ैलाने की कोशिश कर रही है।
इस क्रम में ताज़ा घटना राज्य के उर्जा मंत्री रहे सेंथिल बालाजी की मनी लौन्डरिंग के मामले में प्रवर्तन निदेशालय दवारा बालाजी गिरफ्तारी है। जिस दिन बालाजी की ग्रिफ्तारी हुई उससे कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह राज्य के दौरे पर आये थे। इसलिए द्रमुक के नेताओं ने आरोप लगाया कि यह ग्रिफ्तारी उनके कहने पर हुई थी। पर अगर तथ्यों को ठीक से देखा परखा जाये यह बात सामने आती है प्रवर्तन निदेशालय उनकी ग्रिफ्तारी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर ही की थी।
एक समय था जब बालाजी जयललिता के नेतृत्व वाली अन्नाद्रमुक सरकार में परिवहन थे। उस समय महानगर परिवहन निगम में नौकरियों की भरती को लेकर कथित रूओप्स पैसों का लेनदेन हुआ था। तब प्रतिपक्ष के नेता के रूप स्टालिन ने उनकी ग्रिफ्तारी की मांग की थी। जयललिता ने 2015 उन्हें अपने मंत्रिमंडल से बर्खास्त कर दिया ठाट। उनके खिलाफ जाँच का काम पुलिस की अपराध शाखा को दिया गया था। पुलिस ने उन्हें इस मामले में सीधे तौर से दोषी बताया।
उनकी ग्रिफ्तारी का मामला मद्रास हाई कोर्ट होते हुए सर्वोच्च न्याययालय तक पहुँच गया। इसी बीच 2015 में बालाजी ने अन्नाद्रमुक का साथ छोड़ द्रमुक में शामिल हो गए। जब राज्य में द्रमुक की सरकार बनी तो उन्हें मंत्री पद से नवाजा गया तथा उन्हें उर्जा विभाग सहित कई अन्य विभाग दिए गए। वे जल्दी ही स्टालिन के सबसे नज़दीक माने जाने लगे। ऐसा माना जाता है कि बालाजी धन के बल पर राजनीति करते रहे है। जिस भी पार्टी में वे रहे वहीं अनौपचारिक रूप से इसके कोषाध्यक्ष रहे। चुनावों के लिए धन जुटाने में वे माहिर माने जाते है। इस बार पहले बीजेपी ने उनकी ग्रिफ्तारी की मांग की थी। राज्य में अन्नाद्रमुक और बीजेपी सहयोगी पार्टियाँ है लेकिन यह आश्चर्यजनक बात रही सत्तारूढ़ के साथ साथ अन्नाद्रमुक ने भी बालाजी की ग्रिफ्तारी की आलोचना की।
उधर स्टालिन हर कीमत पर बालाजी को साथ रखना चाहते है। हालाँकि सर्वोच्च नयायालय ने अपनी एक टिप्पणी में ऐसे मंत्री को बर्खास्त किये जाने के बात कही। लेकिन स्टालिन ने केवल उनके विभाग लेकर उन्हें बिना विभाग का मंत्री बनाये रखा। जब उन्होंने राज्यपाल आर एन रवि को बालाजी को विभागों से मुक्त किये जाने का पत्र लिखा तब राज्यपाल ने भी उन्हें सलाह दी कि बालाजी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जाना उचित होगा।
यह कहा जा रहा है कि केंद्र सरकार कभी भी मामले की जाँच में सीबीआई को भी शामिल कर सकती है इसलिए स्टालिन सरकार ने केंद्र को एक पत्र लिख सीबीआई के सामान्य अधिकार, जिसके अंतर्गत राज्य सरकार ने स्थाई से अनुमति केंद्र को दे रखी है, वापिस ले लिया। सरकार के इस निर्णय का सीधा मतलब यह है कि अब सीबीआई बिना राज्य सरकार की अनुमति के इस मामले की जाँच नहीं कर सकती।
कुछ समय पूर्व राज्य के एक द्रमुक सांसद जगतरक्षगन की ग्रिफ्तारी को लेकर भी राज्य में बवाल हुआ था। बालाजी की तरह इस सांसद के बारे में यह कहा जाता है वे खुद तो धनवान है ही साथ ही चुनावों के लिए पार्टी के लिए धन जुटाने में दक्ष माने जाते है।
राज्य के सियासी गलियारों में यह चर्चा है कि बीजेपी के नेता लोकसभा चुनावों से पूर्व द्रमुक की धन जुटाने की क्षमता को कम करना चाहते। उन्हें पता है कि अन्य बातों के अलावा धन ही चुनावों में एक बड़ी भूमिका निभाता है। यह कहा जा रहा है कि आने वाले दिनों में इसी तरह के मामलों में भी प्रवर्तन निदेशालय सहित कई अन्य केंद्रीय एजेंसियां द्रमुक पार्टी के नेताओ तथा पार्टी के नज़दीक समझे जाने वाले लोगों के यहाँ छापेमारी कर सकती है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)