लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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लगभग साढ़े थी वर्ष पूर्व दक्षिण के इस राज्य में जनता पार्टी की सरकार थी और एच.डी. यहाँ के मुख्यमंत्री थे। फिर वे कुछ समय तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे। उस काल में इस पार्टी का राज्य की राजनीति में पूरा दबदबा था। बाद के वर्षों में पार्टी के हुए विभाजन के चलते देवेगौडा के नेतृत्व वाला जनता दल (एस) कमजोर होता चला चला गया। पर फिर भी यह कांग्रेस और बीजेपी के बाद राज्य का तीसरा बड़ा बना रहा जो यह आज भी है। यह अलग बात है कि इसकी ताकत लगातार घटती चली गई। हाल के विधानसभा चुनावों में इसे पहले से बहुत कम सीटें मिली। इसके बाद से ही इसके नेताओं ने यह सोचना शुरू किया कि पार्टी का अस्तित्व कैसे बचाया जाये। क्या इसे किसी बड़े गठबंधन का हिस्सा बन जाना चाहिए या फिर एकला चलो की नीति पर ही चलना चाहिए।
राज्य में पिछले दो दशक की राजनीति को अगर नज़दीक से देखा जाये तो तीसरे नंबर की पार्टी होने के बाद भी जनता दल (एस) दो बार न केवल किंग मेकर की भूमिका में रहा बल्कि खुद ही किंग बन गया। 2003 के विधान सभा चुनावों में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला लेकिन बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर सामने आई। उस समय एचडी देवेगौडा ने साफ कह दिया कि उनकी पार्टी किसी भी हालत में बीजेपी के साथ हाथ नहीं मिलाएगी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनके एचडी कुमारस्वामी ने बगावत कर दी।
उन्होंने अपने समर्थकों को साथ ले बीजेपी का समर्थन करने की घोषणा की। बनी सहमति के अनुसार ढाई-ढाई साल दोनों दलों के नेता मुख्यमंत्री बनेगे। पहले चरण में मुख्यमंत्री की गद्दी कुमारस्वामी को मिली। लेकिन ढाई साल बाद उन्होंने सत्ता बीजेपी के सौंपने से इंकार कर दिया जिसके चलते सरकार का पतन हो गया। अगली बार बीजेपी ने अपने बल पर सरकार बनाई। 2013 कांग्रेस फिर सत्ता में आ गई। 2018 के चुनावो में एक अल्पमत वाली बीजेपी सरकार बनी जो ढाई दिन ही चल सकी। इन चुनावों में 224 सदस्यों वाली विधान सभा में जनता दल (स) को 37 सीटें मिली थी जबकि कांग्रेस को 80। बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए जनता दल (एस) और कांग्रेस में समझौता हो गया। बड़ा दल होने के बावजूद कांग्रेस कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री का पद देने को राजी हो गई। लेकिन यह सरकार लगभग एक साल ही चल पाई। दल बदल के जरिये बीजेपी फिर सत्ता में आ गई।
इस पार्टी का सबसे बड़ा वोट बैंक वोक्कालिंगा समाज है जिसके पुरानी रियासत मैसूरू इलाके में बड़ा दबदबा है। यहाँ से विधान सभा की कुल 89 सीटें आती है। एचडी देवेगौडा इस समुदाय के लगभग एक छत्र नेता है। एक समय उनकी पार्टी को 60 तक सीटें आती थी जो धीरे-धीरे घट कर इस बार मात्र 19 रह गई। कभी पार्टी को 19 प्रतिशत तक मत मिलते थे जो इस बार घट कर लगभग 9 प्रतिशत तक रह गए। इसके बद ही पार्टी में यह चिंतन शुरू हुआ की आने वाले वाले लोकसभा चुनावों के लिए क्या रणनीति अपनाई जाये। पिछले लोकसभा चुनावों में पार्टी को केवल सीट मिली थी और देवेगौडा खुद भी चुनाव हार गए।
चुनावों के कुछ दिन बाद पार्टी की की समीक्षा करने के लिए एक बैठक बुलाई गई थी। इसमें पेश किये गए विश्लेषण के बाद यह आम राय बनी कि अब समय आ गया है पार्टी के दो राष्ट्रीय गठबंधनो, एक कांग्रेस के नेतृत्व वाला संयुक्त प्रगतिशील मोर्चा तथा दूसरा बीजेपी का नेतृत्व वाला राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक मोर्चा में से किसी एक साथ हाथ मिला लेना चाहिए। देवेगौडा ने यह भी संकेत दे दिया कि लोकसभा चुनावों में हाथ मिलाने के लिए वे बीजेपी के नेतृत्व वाले मोर्चे को तरजीह देंगे। उनका कहना था कि बीजेपी अब कोई अछूत दल नहीं है अब जो दल बीजेपी के विरोध में कांग्रेस के साथ हाथ मिला रहे है वे कभी बीजेपी के रह चुके हैं।
उन्होंने कहा की जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार थी तब तमिलनाडु के बड़ी पार्टी और कांग्रेस की पुरानी साथी द्रमुक भी बीजेपी सरकार का हिस्सा थी। इसी प्रकार बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार, जो इस समय विरोधी दलों को एक जुट करने में लगे है, लम्बे समय तक बीजेपी के साथ रहे है। वे केंद्र में बीजेपी की सरकार में मंत्री भी रहे है। उनके अपने राज्य बिहार में एक से बार बीजेपी-जनता दल (यू) की मिली-जुली सरकार भी रही है। अब यह लगभग तय माना जा रहा है कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनावों में बीजेपी के साथ हाथ मिलाएगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)