गीत
लेखिका : डॉ सुधा जगदीश गुप्त
कटनी मध्य प्रदेश
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सौहार्द्र की मिट्टी से
चलो एक दिया ढालो
दिल देहरी हर द्वार
जगमगा लो
बटवारा हुआ जमीन
दौलत के टुकड़ों का
देश की थाती है "प्रेम"
काम नहीं दुखड़ों का
दोस्ती के धागे
कलाई में बंधा लो
दिल देहरी हर द्वार
जगमगा लो
एक छोटे से शहर में
गुलाब खा़र रहें मिलकर
गंगा जमुनी है तहज़ीब
बहारें रहें मिलकर
नफ़रत की दीवारें
तोड़ गीत नया गा लो
दिल देहरी हर द्वार
जगमगा लो
बेहद खतरनाक दौर से
गुजर रहे हैं हम
जाने कब कजा़ आ जाए
गुज़र जाए हम
गुझिया हो सिवैइयां
प्यार की इत्र मिला लो
दिल देहरी हर द्वार
जगमगा लो