लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
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दक्षिण के लगभग दस वर्ष पुराने राज्य तेलंगाना में विधानसभा और लोकसभा चुनावों से पहले कई तरह के नए राजनीतिक समीकरण उभर रहे हैं। इन सब की ईच्छा और उद्देश्य किसी न किसी तरह भारत राष्ट्र समिति, जो कुछ समय पहले तक तेलंगाना राष्ट्र समिति के नाम से जानी जाती थी, को इन चुनावों में कड़ी टक्कर दे या फिर उसे हरा दे। भारत राष्ट्र समिति 2014 में तेलंगाना के गठन के समय से ही सत्ता में है। लोकसभा चुनावों में भी यह पार्टी बीजेपी और कांग्रेस जैसे राष्ट्रीय दलों से आगे थी। अब इसकी राजनीतिक पैठ पहले से कही अधिक है।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही छोटे दलों को अपने साथ जोड़ने की भरसक कोशिशें कर रहे है। इस मामले में कांग्रेस बीजेपी से कुछ आगे है। राज्य में दो वर्ष पूर्व के नई पार्टी वाईएसआर तेलंगाना पार्टी अस्तित्व में आई थी। इसने अभी किसी भी चुनाव का सामना नहीं किया है लेकिन यह माना जाता है कि राज्य के पडोसी आंध्र प्रदेश की सीमा से लगते इलाकों में इसका प्रभाव है। इस पार्टी की अध्यक्ष वाई एस शर्मीला ने पिछले महीने कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री तथा राज्य कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष डी के शिव कुमार से बंगलुरु में जा कर लम्बी मुलाकात की थी। इसके कुछ दिनों बाद शर्मीला ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी को उनके जन्म दिन पर बधाई भी दी थी। इसके बाद ही राजनीतिक हलकों में दोनों पार्टियों के विलय के कयास लगाये जाने लगे।
पिछले दिनों पहले इस पार्टी के दूसरे स्थापना दिवस पर एक बड़ा आयोजन करने का कार्यक्रम तैयार किया गया था। यह कहा जाने लगा था कि इस दिन पार्टी के कांग्रेस में विलय किये जाने की घोषण कर दी जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। लेकिन जिस प्रकार के इसके नेता स्थानीय कांग्रेस पार्टी के नेताओं से लगातार मिल रहे है उससे ये संकेत मिल रहे है कि अगले कुछ समय में दोनों पार्टियाँ एक हो सकती हैं। यह कहा जा रहा था कि पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी और राहुल गाँधी 8 जुलाई को तेलंगाना आएंगे तथा अविभाजित आंध्र प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वाई एस राजशेखर रेड्डी के बरसी समारोह में भाग लेगें, लेकिन बिना कोई कारण बताये सारा कार्यक्रम टल गया।
राजशेखर रेड्डी का मुख्यमंत्री रहते एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था। उनके बेटे जगन मोहन रेड्डी को उम्मीद थी कि पार्टी हाई कमान पिता के स्थान पर उनको मुख्यमंत्री की गद्दी देगी। जब ऐसा नहीं हुआ तो जगन मोहन रेड्डी ने अपनी अलग पार्टी, वाई एस आर कांग्रेस पार्टी, बना ली। पिछले विधान सभा चुनावों में इस पार्टी को भारी बहुमत मिला। लोकसभा चुनावों में इसके उम्मीदवार बड़ी संख्या में जीते।
वाई एस आर तेलंगाना पार्टी की नेता शर्मीली जगन मोहन रेड्डी की बहिन है। वाई एस आर कांग्रेस पार्टी एक पारिवारिक पार्टी थी। जिस पर जगन मोहन रेड्डी, उसी माँ विजयाम्मा और बहिन वाई एस शर्मीला का वर्चस्व था। लेकिन तीन वर्ष पूर्व बेटे जगन मोहन रेड्डी, माँ विजयाम्मा और बहिन शर्मीला में मतभेद हो गए। पार्टी का विभाजन तो नहीं हुआ लेकिन शर्मीला ने माँ के साथ मिलकर तेलंगाना में वाई एस आर तेलंगाना पार्टी बनाली। उनको लगता था कि अविभाजित आंध्र प्रदेश में वाई एस राजशेखर रेड्डी की राजनितिक छवि के चलते उनकी पार्टी अपनी पैठ ज़माने में सफल रहेगी। लेकिन ऐसा नहीं हो सका और पार्टी का प्रभाव सीमित रहा।
पिछले कुछ महीनो से माँ, बेटी को लगने लग लगा था कि उनकी पार्टी अकेले तेलंगाना में कुछ अधिक नहीं कर पायेगी। या तो यह किसी गठबंधन का हिस्सा बन जाये या फिर किसी बड़ी पार्टी में विलय हो जाये। कांग्रेस में शामिल होने की पहल शर्मीला ने ही की थी। जबकि कांग्रेस पार्टी के नेता अभी इस बात का आंकलन करने में लगे है कि इस पार्टी विलय से कांग्रेस को कोई लाभ होगा या नहीं। यह बात किसी से छिपी नहीं है की वाई एस राजशेखर रेड्डी और अविभाजित आंध्र प्रदेश से अधिकांश कांग्रेस नेता राज्य का विभाजन कर अलग तेलंगाना राज्य बनाये जाने विरुद्ध थे। इसके चलते तेलंगाना में कोई भी दल उन राजनीतिक तत्वों को पसंद नहीं करता जो तेलंगाना बनाये जाने के विरोधी थे। राजनीतिक हलकों में यह कहा जा रहा है कि कांग्रेस की तेलंगाना इकाई दोनों पार्टियों के विलय के विरुद्ध है। इस विलय से कांग्रेस पार्टी को लाभ से अधिक घाटा होगा। अब देखना यह है कि कांग्रेस पार्टी के केंद्रीय नेता इस मामले पर क्या रुख अपनाते है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)