लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनितिक विश्लेषक
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मई के विधान सभा चुनावों में दक्षिण के इस कर्नाटक राज्य में सत्ता में आई कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र में पांच गारंटियां दी थी जिनमें एक गारंटी बीपीएल परिवारों के प्रत्येक सदस्य को हर महीने दस किलो मुफ्त चावल उपलब्ध करवाया जाना भी शामिल था। अन्य गारंटियों में 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली देना, साक्षर बेरोजगार युवकों को 3000 रूपये भत्ता देना, महिलायों को प्रति माह दो हज़ार राशि देना तथा मह्लियों के लिए सरकारी बसों में यात्रा मुफ्त करने की बात कही गई थी। यह भी कहा गया था कि नई सरकार के मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही ये गारंटियां देने का निर्णय किया जायेगा। इन सब योजनायों को लागू करने के लिए सरकारी कोष से लगभग साठ हज़ार करोड़ खर्च होने का अनुमान लगाया था।
वायदे के अनुसार राज्य के दूसरी बार मुख्यमंत्री बने सिद्धारामिया ने इस वादे के अनुसार अपने मंत्रिमंडल के पहली बैठक में इन सभी योजनाओं को लागू करने का औपचारिका निर्णय किया। अधिकारियों को कहा गया कि इन वायदों को पूरी तरह लागू करने का विवरण तैयार करे। मंत्रिमंडल में यह निर्णय 21 मई को किया गया था। यह तय हुआ कि सभी पांचो योजनाए जून के पहले हफ्ते से लागू हो जाएँगी। आमतौर पर अफसरशाही ऐसी योजनायों को लागू करने में अपना समय लेती है। इनको लागू करने में कुछ विलम्ब हुआ लेकिन यह अधिक नहीं था। लेकिन अन्न भाग्य योजना एक ऐसी योजना है जिसे लागू करने में कठिनाई आ रही है। अब बार-बार कहा जा रहा है कि इस योजना को शुरू होने में कुछ विलम्ब होगा। अन्य चार गारंटियों को लागू करना सरकार के अपने हाथ में था लेकिन अन्न भाग्य योजना के लिए राज्य सरकार को केंद्र सरकार की सहायता पर निर्भर करना पड़ेगा।
2018 के विधानसभा चुनावों से कुछ पूर्व सिद्धारामिया के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने राज्य में इस योजना को लागू किया था, जो चुनावों के बाद राज्य में बनी कांग्रेस-जनता दल (स) की साझा सरकार ने भी जारी रखा। लेकिन जब बीजेपी ने सत्ता में संभाली तो इस योजना में कुछ बदलाव किया गया। चावल की मात्रा को घटाकर 6 किलो कर दिया गया। इसके साथ 4 किलो रागी (एक तरह का बाजरा) दिया जाने लगा। इसके कुछ समय बाद केंद्र की योजना के अनुसार मुफ्त अन्न देने की योजना शुरू की गई तो चावल की मात्र घटा कर 5 किलो कर दी गई तथा रागी दिया जाना बंद कर दिया गया। दक्षिण के अन्य राज्यों की तरह कर्नाटक में भी चावल आम लोगों का मुख्य भोजन है। लेकिन राज्य में मांग के अनुसार चावल का उत्पादन नहीं है इसलिए राज्य को इसके लिए पडोसी राज्यों से चावल खरीदना पड़ता है या फिर भारतीय खाद्य निगम जैसी केंद्रीय एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है।
जब अन्न भाग्य योजना को लागू करने का पूरा विवरण तैयार किया गया तो अनुमान लगाया कि इसे लागू करने के लिए कम से कम 2.8 लाख टन अतिरिक्त चावल की जरूरत होगी जो राज्य के पास फ़िलहाल नहीं है। राज्य सरकार ने तुरंत भारतीय खाद्य निगम से संपर्क किया लेकिन निगम ने कहा कि अन्य राज्य की जरूरतों को सामने रखते हुए इतनी मात्र में चावल वह कर्नाटक को चावल उपलब्ध नहीं करवा सकती। राज्य कांग्रेस के नेताओं ने आरोप लगाया कि निगम ने ऐसा केंद्रीय सरकार के कहने पर किया गया ताकि राज्य की कांग्रेस सरकार को इस योजना का श्रेय नहीं मिले। इसके बाद गैर बीजेपी वाली सरकारों, जिसमे आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और , छत्तीसगढ़ और पंजाब शामिल था से बात की गई।
इनमें से लगभग सभी ने इतनी मात्रा में चावल उपलब्ध करवाए जाने में असमर्थता जताई। दूसरे इन राज्यों से चावल की ढुलाई पर भी अधिक खर्च आता था। अगर भारतीय खाद्य निगम चावल सब खर्चों सहित राज्य को 36 रूपये प्रति किलो उपलब्ध करवाता आया है वहां इन राज्यों से चावल यहाँ से लेने में 42 रूपये या इससे भी अधिक खर्चा आता है। राज्य सरकार अपने कारणों से इतना महंगा चावल खरीदना नहीं चाहती। मूल घोषणा के अनुसार अन्न भाग्य योजना को एक जुलाई से लागू किया जाना था। लेकिन वर्तमान परिस्थियों में ऐसा होना कठिन है इसलिए सरकार ने साफ़ कर दिया कि इस योजना को लागू करने में विलम्ब हो सकता है। अब सरकार राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ तथा ऐसे ही कई संगठनों के संपर्क में है। इनके जरिये अन्न खरीदने की प्रक्रिया कुछ लम्बी है इसमें लगभग दो महीने लग सकते है। इसी के चलते सरकार के यह योजना फ़िलहाल अधर में लटक गई है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)