पीएम टुड्रो का मुगालता पालना ठीक नहीं
लेखक : नवीन जैन 

स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (मप्र)

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खालिस्तान आंदोलन को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टीन टुड्रो ने एक खुराफाती बयान देकर बाद में अपने तेवर जो ढीले कर लिए हैं, उससे यह मुगालता पालना भूल भी हो सकती है, कि भविष्य में टुड्रो इसी राजनीतिक विवेकशीलता का परिचय देंगे।

ये बात मानना, तो सरासर मूर्खता होगी, कि कनाडा में बसे सभी सिक्ख, और पंजाब के साथ पूरे देश में फैले सिक्ख अलग खालिस्तान की मांग के समर्थक हैं। ठीक है, कि भारत की कुल आबादी का कुल दो या तीन फीसद हिस्सा ही सिक्ख हैं ,लेकिन यह भी उतना ही सच है, कि भारत के सैन्य, और अर्ध सैन्य बलों में सिक्ख समुदाय का हिस्सा आज भी 18 प्रतिशत के आसपास है। इस लेखक ने अपने पंजाब दौरे वक्त अपनी आंखों, और कानो से जाना है कि इस बेहद उपजाऊ सूबे के स्कूली, तथा कॉलेजी बच्चे अपने नाम के आगे सेकेंड लेफिटनेंट, लेफिटिनेंट, कैप्टन, मेजर आदि लिखने के आदतन हैं। कहने का आशय यह है कि 1984 के रक्तरंजित हिंदू-सिक्ख दंगों के बावजूद लगभग पूरा सिक्ख समाज भारत की मूल सभ्यता, और संस्कृति में दूध में शक्कर की तरह घुल मिल गया है। हमारे नीति निर्माताओं, और गोदी मीडिया की बांछे इसलिए खिल रही हैं, कि जस्टिन टुड्रो के मुद्दे पर जग मुख्यतार अमेरिका और यूरोपियन संघ, खासकर ब्रिटेन भारत के साथ है। ये दोनों देश कोई रूस जैसे नहीं हैं, जो हर अच्छे बुरे वक्त में भारत के साथ बिना शर्त खड़े रहें। जो. बाइडेन जब बराक ओबामा के राष्ट्रपति रहते उप राष्ट्रपति थे, तब उन्होंने ओसामा बिन लादेन को मारे जाने का सरे आम विरोध किया था। ये वही ओसामा बिन लादेन थे, जो भारत में हिंदुओं का कत्ल ए आम मचाना चाहता था। ब्रिटेन के प्रधान मंत्री ऋषि सुनक जब वित्त मंत्री थे, तब उनसे बड़ा भारत का कोई आलोचक नहीं था।

सुनते है कि भारत ने एक नई रणनीति बनाई है कि यदि जस्टिन टुड्रो ने खालिस्तान को लेकर अपने तेवर सामान्य नहीं किए, तो भारत कैनेडा के उस एक खास हिस्से में अलग फ्रांस प्रेरित प्रदेश की मांग को हवा दे सकता है। जान लें  कि उस एक खास हिस्से के अधिकांश रहवासी फ्रेंच लोग है और सालों से अपने लिए एक अलग देश की मांग करते आ रहे हैं।भारत की यह चमकाने वाली नीति पहले भी पाकिस्तान के संदर्भ में फेल हो चुकी है।बड़े जोश में पाकिस्तान को कभी धमकी दी गईं थीं कि यदि अब कश्मीर घाटी में और तीन पांच की गई तो हमें  (भारत)बलूचिस्तान छीनने में मिनटों नहीं लगेंगे,जबकि जमीनी  हालात यह है कि अभी कुछ दिनों पहले ही घाटी में भारत के तीन सैन्य अफसरों सहित एक जवान आतंकवादियों के हमले में शहीद हो गए।कहा जा रहा है कि ऐसा इसलिए हुआ कि भारतीय सुरक्षा बलों का इनफॉर्मर डबल एजेंट बन गया, जिसकी गद्दारी की वजह से उक्त हादसा हुआ। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)