स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)
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जब महान कहे जाने वाले पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री स्व.विंस्टन चर्चिल 1945 में दूसरा विश्वयुद्ध जीत गए थे, तो उसके तत्काल बाद ग्रेट ब्रिटेन में आम चुनाव हुए थे। तमाम राजनीतिक पंडित इस सोच में गाफिल थे, कि विंस्टन चर्चिल की जीत की तो मात्र औपचारिक घोषणा होना बाकी है, क्योंकि उन्होंने आखिरकार दूसरे महायुद्ध में हारते हुए अपने देश को जितवाने का करिश्माई करतब करके दिखाया है ,लेकिन यह क्या!!!जब बैलेट बॉक्स खुले, तो क्रीमेंट रिचर्ड एटले ब्रिटेन के अगले सरताज थे।
आगे की कथा ही खास है _ग्रेट विंस्टन चर्चिल की उक्त पराजय के कारणों पता करने के लिए एक रिफ्रेंडम उर्फ जनमत संग्रह हुआ। कुल मिला कर जवाब एक ही आया_युद्ध काल में विंस्टन चर्चिल स्वीकार्य थे ,लेकिन अब शन्ति काल में रिचर्ड एटेले ही देश का नव निर्माण कर सकते हैं।
माना कि ब्रिटेन के लोगों की हड्डियों तक में स्वतंत्रता बसी हुई है। ऊपर से वहां का मीडिया बेखौफ है। इसके उलट आम भारतीय आज भी दास बोध, और तात्कालिक फायदे का शिकार है। कुछ सालों में वोटों की राजनीति ने एक देश में कई उपदेश खड़े करने की भरपूर कोशिश की है, जबकि दुनिया में कुल जो बारह जीवित धर्म हैं, वे आपको भारत के अलावा कहीं नहीं मिलेंगे। हिमाचल प्रदेश में तो दो गांव सिर्फ यहूदियों के हैं, जहां इजरायल के लोग भारी संख्या में तफरीहन आते हैं। यहूदी नाम से तो सोहराब मोदी के प्रमुख अभिनय में हिंदी फिल्म भी बन चुकी है। आप को यह जानकर कदाचित हैरानगी होगी, कि पूर्व राष्ट्रपति, मिसाइल मैन, भारत रत्न स्व.एपीजे अब्दुल कलाम की पहली बरसी पर साउथ इंडिया के करीब तीन हज़ार स्कूली बच्चों ने अपने नाम के साथ कलाम जोड़ लिया था। इनमें सभी जातियों के बच्चे ही होगे न? ये है असली भारत, या असली। हिंदुस्तान।
हम जब अस्पताल में जाते हैं, तो क्या पूछते हैं, कि डॉक्टर ,नर्स वगैरह की जाति या धर्म क्या है?इसी तरह किसी ऑटो वाले, टैक्सी वाले, फल वाले, चूड़ी वाले, रंग रोगन करने वाले, फूल वाले, बस ड्राइवर, पास में बैठे मुसाफिर, पतंग बनाने वाले, खिलौने बनाने वाले, बिस्कुट बनाने वाले, सब्जी वाले से उसकी जाति या धर्म पूछते हैं कभी या कानूनन भी ऐसे सवाल करना अब जायज है क्या? देश में किसी को खून चढ़ाते वक्त पूछा जाता हैं क्या कि ये खून किस जाति के आदमी का है? सिर्फ महाराष्ट्र के पुणे महानगर में एक बार एक नवजात शिशु के खून का रंग अज्ञात वैज्ञानिक कारणों से सफेद पाया गया था।
बाकी तो पूरी मानव जाति के खून का रंग लाल और सिर्फ लाल हैं। हम जिस जाति, धर्म, और गोत्र में जन्म लेते हैं वो हमारी धार्मिक पहचान है, संवैधानिक पहचान नहीं, और न ही कुछ नेताओं के सत्ता लोभी फायदों का उपकरण। नेता परम अभिनेता होते हैं।उनकी इस तरह की सोच को ध्वस्त करना इसलिए ज़रूरी है कि मध्य प्रदेश सहित अगले महीने कुल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन चुनावों के परिणाम ही 2024के लोकसभा आम चुनाव की प्रस्तावना भी लिखेंगे। कृपया याद रखें, हमारी वर्तमान राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू आदिवासी समुदाय से, और पीएम नरेंद्र मोदी दलित समुदाय से आते हैं। हमने इनका चुनाव कर्मो के आधार पर किया है, धर्म के आधार पर नहीं। बाकी तो आप सब मुल्क के असली मालिक हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)