कविता : पत्थर

लेखक : तिलकराज सक्सेना

जयपुर।

www.daylife.page 

पत्थर के गीतों में भी झलकती है, निष्ठुरता उसकी,

पत्थर के गीत गुन गुनाने से पत्थर बदल नहीं जाता,

पत्थर गुन गुनाता है, सिर्फ दिल अपना बहलाने को,

संग फूलों के रहने पर भी, पत्थर कोमल हो नहीं पाता,

मत कर दोस्ती तू पत्थर से, बहुत भावहीन ये होता है,

जता लो प्यार फिर भी, पत्थर कभी पिघल नहीं पाता,

उलटा घायल कर देता है पत्थर, प्यार जताने वाले को,

फ़ितरत ही ऐसी है पत्थर की, किसी का हो नहीं पाता।।