विशेष चुनावी विश्लेषण
वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार, इंदौर (एमपी)
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बचपन में लगभग हम सभी अन्य बच्चों द्वारा खेल में शामिल नहीं किए जाने पर उन्हें डराने के लिए कहते थे, खेलेंगे नहीं, तो खेल बिगाड़ेंगे। तब अक्सर ऐसा होता था कि नाराज बच्चों को भी खेल में शामिल कर लिया जाता था।
राजनीति भी आखिर खेल ही है ,लेकिन मजा यह है कि इसमें बचपन की वो मासूमियत नहीं चलती, क्योंकि सत्ता सुख अव्वल होता है, और उसी के अनुसार हरेक पार्टी अपनी बिछात जमाती है। अभी तक खबरें आ रही थी कि विभिन्न सर्वेक्षणों की रिपोर्ट बताती है कि मध्य प्रदेश में लगातार बीस साल (बीच के कमलनाथ की कांग्रेस सरकार के सोलह महीने छोड़कर) से चल रही भाजपा सरकार के रास्ते में इस नवंबर(सत्रह) को होने वाले चुनाव के रास्ते में रोड़े ही रोड़े हैं। इस सारे खेल को और बिगाड़ने में देश भर में राजनीतिक खेल बिगाड़ने में महारथ हासिल कर चुके और बिहार के सात या आठ बार से लगातार मुख्यमंत्री रहे नीतीश कुमार ने भी अब मोर्चा सम्हाल लिया है। बता दे कि नीतीश कुमार तमाम विपक्षी दलों के समर्थन से आगामी प्रधान मंत्री बनने की मंशा लिए लगभग पूरे देश का हाल में ही फेरा लगा चुके हैं।
भाजपा के भीतर खानों की खबरों पर यकीन करें, तो मानना पड़ेगा कि नीतीश कुमार द्वारा फेंकी गई इस गुगली से चुनावों की पिच पर कांग्रेस गोता खाने के स्थिति में आ गई है, लेकिन भाजपा को बिन मांगी मुराद मिल गई है। संभावना जताई जा रही थी कि इन चुनावों में विपक्षी इंडिया अलायन्स आपसी तालमेल से अपने-अपने प्रत्याशी उतारेगा, लेकिन समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी के बाद अब इंडिया अलायन्स के एक अनिवार्य गुट जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने भी अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है।
इस घोषणा के अनुसार फिलहाल तो पांच सीटों पर ही जेडीयू के प्रत्याशी मैदान में उतरे है, लेकिन बताया जा रहा है कि एक दो दिन में करीब एक दर्जन सीटों पर जेडीयू अपने प्रत्याशी खड़े कर सकती है। इंडिया महागठबंधन में सीटों को लेकर मची इस ले_ दे के कारण सुस्त पड़ी भाजपा में एक नया करंट सा आ गया है।
मध्य प्रदेश में नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख तीस अक्टूबर है। उसके पहले ही जनता दल (यू)ने तोलसिंह भूरिया को थांदला, शिवनारायण सोनी को विजय राघौगढ़, चंद्रपाल यादव को पिछोर, और रामकुवर उर्फ रानी रैकवार को राजनगर से टिकट दे दिया है। टिकटों की इस खींचतान के मामले में समाजवादी पार्टी तो जेडीयू से भी आगे निकल गई लगती है। समाजवादी पार्टी भी अभी तक अपने कुल 42 प्रत्याशी मैदान में उतार चुकी है, जबकि सूबे की कुल सीटों की संख्या 230 है।
जेडी(यू) ने केवल कांग्रेस ही नहीं, बल्कि समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के सामने भी अपना प्रत्याशी खड़ा कर दिया है। यदि समय रहते कांग्रेस और सपा में कोई अंडर स्टेंडिंग बन जाती तो कहानी कुछ और होती ,लेकिन अब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने राजनगर सीट से अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है ,जबकि वहां भाजपा के साथ काग्रेस भी मैदान में हैं। कांग्रेस के विक्रमसिंह के साथ सपा के बृजमोहन गोपाल उर्फ बबलू पटेल को जेडीयू के राम कुंवर रैकवार से बड़ी चुनौती मिल सकती है।
आदिवासी बहुल सीट थांदला से मुकाबला रोचक हो सकता है, क्योंकि यह सीट आदिवासी बहुल जिले झाबुआ में आती है, और परंपरागत रूप से कांग्रेस की जागीर मानी जाती है। गौर करें कि 1990 के बाद हुए चुनाव में थांदला से पांच बार कांग्रेस और एक बार ही भाजपा जीत पाई। इस सीट से भाजपा के कलसिंह भाभर चुनाव लडेंगे,जबकि कांग्रेस में सिटिंग मेंबर वीरसिंह भूरिया को फिर मैदान में उतारा गया है।जनता दल यू ने भी यहां से अपना उम्मीदवार खड़ा कर इंडिया गठबंधन तथा भाजपा के लिए बड़ी उलझनपूर्ण स्थिति खड़ी कर दी है। मालवा क्षेत्र में ही झाबुआ जिला आता है जिसकी एक और सीट पेटलावद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है। 2018 के चुनाव में यहां से कांग्रेस के प्रत्याशी बालसिंह मेड़ा को फतेह मिली थी। इस बार भी कांग्रेस ने मेड़ा में ही अपना विश्वास जताया है। भाजपा के लिए इस सीट पर स्थिति इसलिए कश्मकश भरी हो गई है ,क्योंकि 2018 के चुनाव में यहीं से हारी निर्मला दिलीपसिंह भूरिया को फिर से टिकिट दिया है।
उधर, जनता दल यू द्वारा भी अपना प्रत्याशी यहां से खड़ा करने के कारण मुकाबला बहुत दिलचस्प बन गया है।पिछोर विधानसभा सीट भी छह बार से कांग्रेस की झोली में गई, और उसके प्रत्याशी के. पी .सिंह को ही इस बार टिकट दिया गया है। यह सीट भी इसलिए टसल वाली बन गई है क्योंकि यहां से भी जनता दल (यू) ने अपना प्रत्याशी उतार दिया। फिलहाल कटनी जिले के विजयराज गढ़ से भाजपा के संजय पाठक विधायक हैं, जिनका यहां से पंद्रह साल से जीतने का रिकॉर्ड रहा है। संजय पाठक पहले कांग्रेस में हुआ करते थे, लेकिन 2013 में वे भाजपा में शामिल होकर शिवराज सिंह चौहान के केबिनेट में मंत्री भी बने।
कांग्रेस ने यहां से नीरज बघेल पर दांव चला है, लेकिन मुकाबले को जनता दल यू ने त्रिकोणीय बना दिया। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की राजनगर सीट पर कांग्रेस का तीन बार कब्जा रहा है,मगर भाजपा इस बार कांग्रेस के उक्त गढ़ को भेदना चाहती है। 2018में कांग्रेस के विक्रमसिंह नातीराजा ने भाजपा के अरविंद पटैरिया को हराया था। इस बार यह मुकाबला और ज्यादा इसलिए रोचक हो गया है क्योंकि चार पार्टियों के प्रत्याशी यहां से लड़ रहे हैं जिनमें समाजवादी पार्टी और जनता दल यू के उम्मीदवार भी शामिल है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)