लेखिका : दीपमाला पाण्डेय
लेखिका बरेली के एक सरकारी विद्यालय में प्रधानाचार्या हैं और दिव्यांग बच्चों को शिक्षा और समाज की मुख्यधारा में लाने के अपने प्रयासों के चलते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात कार्यक्रम में भी शामिल हो चुकी हैं।
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दो दिन पहले की बात है। कुछ बच्चों से पता चला कि आठ साल का अंकित स्कूल आते समय रास्ते में गिर गया। अंकित को वैसे भी चलने में समस्या है। पूछ ताछ करने पर पता चला कि ठंड की वजह से उसके पैर अचानक से मुड़ जाते हैं और इसी वजह से उसने अपने शरीर पर नियंत्रण खो दिया और वो गिर पड़ा।
जब अंकित से उसके हाल पूछे तो बोला, “सर्दियों में पता नहीं क्यों मैं स्कूल आते समय गिर जाता हूँ। सुबह ठंडक होती है न, शायद इसलिए। “
जब उससे कहा कि चोट लग जाए कभी तो घर पर आराम कर लेना और स्कूल मत आना, तो बोला, “मैम, मुझे स्कूल आना बहुत अच्छा लगता है। गिरने और चोट लगने की तो अब आदत है। इसलिए स्कूल तो मैं ज़रूर आऊँगा।”
वाकई, अंकित को स्कूल आना पसंद है और वो चलने में समस्या होने के बाद भी नियमित रूप से स्कूल आता है। लेकिन क्या अंकित को ऐसे गिरते पड़ते चोट खाते स्कूल आने की आदत होनी चाहिए?
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जैसे जैसे सर्दी बढ़ेगी, अंकित की समस्या भी बढ़ेगी। वैसे भी अब उसे हाथों से चीज़ें पकड़ने में भी ज्यादा परेशानी होने लगी है, और बदलते मौसम से, सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित, अंकित की परेशानियाँ भी बढ़ने वाली हैं। ध्यान रहे, यह समस्या सिर्फ़ अंकित की नहीं है उसके जैसे हजारों बच्चो की है जो सेरेब्रल पाल्सी या मांसपेशियों से संबंधित दिव्यांगता से ग्रसित हैं।
सर्दियां दस्तक दे चुकी हैं और हम सब अपनी ऊनी कपड़ों की अलमारियों को व्यवस्थित करने की कवायद में लगे हैं। लेकिन कभी सर्दियों के इस मौसम को अंकित जैसे किसी दिव्यांग बच्चे या उसके परिवार की नज़र से देखिये तो आप समझ पाएंगे कि मौसम की तीव्रता और अनिश्चितता कैसे इन बच्चों और परिवारों के लिए मौसम की परिभाषा ही बदल देती है।
जहां आपके और हमारे लिए सर्दी अपना मज़ा भी साथ लाती है, वहीं अंकित जैसे बच्चों के लिए ये सज़ा भी बन जाती है। लगातार बदलती जलवायु और इसके परिणामस्वरूप होने वाली अचानक तापमान में गिरावट इन बच्चों के जीवन को अधिक कष्टप्रद बना रही है। वैसे भी मौसम की मार से सामान्य जनजीवन बाधित होने लगता है। ऐसे में यह मौसम दिव्यांग बच्चों और उनके परिवारजनों के लिए अनोखी चुनौतियां पेश कर सकता है।
विज्ञान की नज़र से
मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार, भारत में चल रहा सर्दी का मौसम जलवायु परिवर्तन से काफी प्रभावित होने वाला है। ग्लोबल वार्मिंग ला नीना नामक घटना के कारण होने वाले प्रभाव को बढ़ाएगी जिससे इस वर्ष भारतीय सर्दियाँ शुष्क और ठंडी होने की उम्मीद है।
अब सोचिए अगर मौसम की तीव्रता बढ़ी तो ग्रामीण परिवेश और सीमित संसाधन में रहने वाले अंकित और उस जैसे तमाम बच्चों का क्या हाल होगा।
भारत में, विशेष रूप से उत्तरी राज्यों में, हाल ही के वर्षों में गंभीर शीतलहर की स्थिति ने जलवायु परिवर्तन की भूमिका को केंद्र में ला कर खड़ा कर दिया है। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन ने इसके प्रभाव को बढ़ा दिया है। ग्लोबल वार्मिंग से जुड़ी वातावरण में नमी की सघनता में वृद्धि, अधिक चरम जलवायु घटनाओं में योगदान करती है। भीषण शीत लहरों सहित इन घटनाओं की आवृत्ति तेजी से जलवायु परिवर्तन की ओर इशारा करती है। चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि चिंता का विषय है, क्योंकि अचानक तापमान परिवर्तन से जलवायु परिवर्तन आपदा हो सकती हैं।
इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार ला नीना और जलवायु परिवर्तन का संयोजन शीत लहर में योगदान देता है। इस सब से न केवल तापमान प्रभावित हो रहा है बल्कि क्षेत्र में बदलते जलवायु पैटर्न के बारे में व्यापक चिंताएं भी बढ़ रही हैं।
बात दिव्यांग बच्चों की
ठंड के मौसम में दिव्यांग बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों की करें तो उन्हें सिर्फ पढ़ के समझना आसान नहीं। इन चुनौतियों पर सही मायनों में वो बच्चे या उनके परिवार जन ही बता सकते हैं। लेकिन फिर भी चर्चा ज़रूरी है।
जहां एक तरफ बर्फीली जगहों पर व्हीलचेयर उपयोगकर्ताओं के लिए आवागमन की बाधाएं पैदा हो जाती है, वहीं कुछ दिव्यांग बच्चे तापमान के प्रति अधिक संवेदनशील हो सकते है।
ठंड का मौसम अक्सर बाहरी गतिविधियों को सीमित कर देता है, जो दिव्यांग बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास और स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं हैं।
इन सभी विषम परिस्थितियों के अलावा सर्दी के मौसम में, सेरेब्रल पाल्सी और मांसपेशियों से संबंधित अन्य दिव्यांगताओं वाले व्यक्तियों के लिए गिरता हुआ तापमान अधिक समस्यात्मक हो सकता है।
ठंड के कारण मांसपेशियों में कठोरता बढ़ जाने के कारण, दर्द और असुविधा का अनुभव हो सकता है। सीमित गतिशीलता के कारण तापमान नियमन के लिए गर्मी उत्पन्न करने में मुश्किलें बढ़ जाती है। इससे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने में भी कठिनाई हो सकती है, जिससे वे बाहरी तापमान के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं।
एक अध्ययन में यह भी पाया गया कि मौसम संबंधी ऐसी चुनौतियां इन बच्चों की दैनिक गतिविधियों में एक महत्वपूर्ण बाधा बन सकती हैं और शारीरिक और मनोवैज्ञानिक रुग्णता में वृद्धि करती हैं।
इसके अतिरिक्त, ठंडे मौसम से हाइपोथर्मिया और शीतदंश हो सकता है, जो दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष रूप से खतरनाक हो सकता है।
सेरेब्रल पाल्सी और सर्दी
एक अध्ययन में पाया गया कि सेरेब्रल पाल्सी वाले लगभग 80% बच्चों को गर्म और ठंडे दोनों मौसमों के संपर्क में आने पर अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने या थर्मोरेगुलेशन में कुछ कठिनाई होती है।
थर्मोरेगुलेशन स्वायत्त तंत्रिका तंत्र का एक महत्वपूर्ण कार्य है, जो शरीर के मुख्य तापमान को 37 डिग्री सेल्सियस के एक या दो डिग्री के भीतर बनाए रखकर स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
इस तंत्र की विफलता या अत्यधिक तापमान(ठंडा या गर्म)के संपर्क में आने से हाइपोथर्मिया या हाइपरथर्मिया की संभावना बढ़ जाती है जो कि जीवन-घातक हो सकता है।
इसके अतिरिक्त, अध्ययन में यह भी पाया गया है कि सेरेब्रल पाल्सी वाले बच्चों को ठंडे मौसम के दौरान ठंडे हाथ-पैर, कब्ज, दर्द, नींद संबंधी विकार और बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य जैसे लक्षणों का अनुभव हो सकता है।
सर्दियों का मौसम में ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के लिए भी कष्टप्रद हो सकता है। यह बच्चे अक्सर स्पर्श संवेदना से पीड़ित होते हैं और चेहरे पर ठंडी हवा तक इनके लिए कष्टकारी हो सकती है। और यह बच्चे तो अक्सर अपनी पीड़ा बता भी नहीं पाते।
विशेषज्ञ की राय
सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित बच्चों की स्थिति समझाते हुए फिजियोथेरेपिस्ट जितेंद्र मौर्य बताते हैं, “तापमान के नीचे गिरने से सेरेब्रल पाल्सी के मरीजों में मांसपेशियों में अनियंत्रित खिंचाव सा बनने लगता है जिससे न सिर्फ स्टिफनेस बढ़ती है बल्कि इंवॉलंटरी या अनैच्छिक मूवमेंट्स भी होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही, मरीज को मूवमेंट संबंधी बहुत सारी समस्याएं होने लगती हैं।”
आगे, स्थिति से निपटने के लिए वो सुझाव देते हैं कि, “ऐसे मरीजों को कान, हाथ-पैर और पूरे शरीर को अच्छी तरह से ढक कर रखना चाहिए और नियमित व्यायाम करते रहना चाहिए। साथ ही, सेरेब्रल पाल्सी से ग्रसित बच्चों के लिए तापमान के अनुकूल कपड़े पहनना और दर्द और असुविधा के प्रबंधन के लिए हीट थेरेपी और मैग्नीशियम उत्पादों का उपयोग करना फायदेमंद और ज़रूरी हो सकता है।”
ध्यान रहे, हर बच्चे की समस्या अलग हो सकती है और दर्द से निजात के लिए उसे कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर से सलाह अवश्य लें।
चलते चलते
किसी की दिव्यांगता को देखना सिर्फ़ संवेदना प्रकट करने या अपने मन को द्रवित होता देखने का अनुभव भर नहीं। न ही यह असहाय महसूस करने की बात है। किसी की दिव्यांगता को देख हमें सोचना चाहिए कि हम कैसे एक ऐसा समाज और पर्यावरण बनायें जहां इन बच्चों और व्यक्तियों के लिए चुनौतियां कम हों और इनका आम जनजीवन की मुख्यधारा में समावेशन कैसे हो।
फिलहाल इस बदलती जलवायु और उससे जुड़ी मौसम कि बढ़ती तीव्रता एक बार फिर हमें सोचने पर मजबूर करती है कि हम अपने स्तर पर उचित कार्यवाही करें जिससे स्थिति बेहतर हो, न सिर्फ़ हमारे लिए बल्कि अंकित जैसे तमाम बच्चों के लिए जो गिरते पड़ते चोट के आदी बन स्कूल जाते हैं। )लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)