कर्नाटक, तेलंगाना के बाद कांग्रेस का निशाना आंध्रप्रदेश पर
लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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मई में कर्नाटक और दिसम्बर में तेलंगाना के विधान सभा चुनावों में जीत का परचम लहराने के बाद कांग्रेस का अगला निशाना अब आंध्र प्रदेश है, जहां कुछ महीनो के बाद लोकसभा के चुनावों के साथ साथ विधान सभा के चुनाव भी होने वाले है। वर्तमान में दक्षिण के इस राज्य में कांग्रेस से टूट कर बनी वाईएसआर पार्टी की सरकार है। मुख्यमंत्री जगन रेड्डी के नेतृत्व वाली इस पार्टी ने पिछले लोकसभा तथा विधान सभा चुनावों में कांग्रेस के साथ-साथ क्षेत्रीय दल तेलगु देशम पार्टी का भी सूपड़ा साफ कर दिया था। वाईएसआर पार्टी उस समय तेलगु देशम पार्टी की सरकार को हरा कर ही सत्ता में आई थी। 

जगन रेड्डी राज्य के पूर्व मुख्यमत्री और कांग्रेस नेता वाईएसआर राजशेखर रेड्डी के बेटे है। राजशेखर रेड्डी की जब एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी  तो  जगन मोहन रेडी को उम्मीद थी कि पार्टी उनके पिता के निधन के बाद पार्टी में  कोई बड़ा पद देगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके चलते उन्होंने आंध्र प्रदेश कांग्रेस को तोड़ कर अपना-अलग दल बना लिया। हालांकि उनकी यह नई पार्टी का 2014 के चुनावों में कोई विशेष ताकत नहीं दिखा पाई, लेकिन 2019 के चुनावों में इस पार्टी की आंधी के सामने कोई पार्टी नहीं टिक पाई। 

जगन रेड्डी सत्ता में आने के बाद न तो बीजेपी नीत एनडीए के हिस्सा बने और न ही कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए गठबंधन में शामिल हुए। यह अलग बात है   जब बीजेपी को संसद में समर्थन की पडी तो इस पार्टी के सांसदों ने सत्तारूढ़ दल का साथ दिया। बीजेपी के नेताओं ने हर संभव कोशिश की कि जगन मोहन रेड्डी का पार्टी उनके खेमे में शामिल हो जाये लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। 

पिछले महीने के विधान सभा के चुनावों में तेलंगाना में कांग्रेस पार्टी की बड़ी जीत के बाद, पार्टी के केंद्रीय नेताओं को यह विश्वास सा गया कि अगर वह एक रणनीति से चुनाव लड़े तो इस राज्य में भी उनकी सरकार बन सकती है। इसलिए यहाँ चुनाव जीतने की जिम्मेदारी राज्य के नए मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी और कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री  डी. के शिवकुमार  को दी है. यह  किसी से छिपा नहीं हुआ कि कर्नाटक के विधान सभा चुनावों को जीतने का श्रेय शिवकुमार को ही जाता है। वे अब उप मुख्यमंत्री के साथ-साथ राज्य पार्टी के अध्यक्ष भी है। उन्हें ही पार्टी ने तेलंगना में चुनाव की कमान दी थी। 

पिछले चुनावों में कांग्रेस पार्टी के आन्ध्र प्रदेश में 2 प्रतिशत से भी कम मत मिले थे। पार्टी को न तो विधान सभा और न ही लोकसभा के लिए एक भी सीट नहीं जीत पाई। राज्य में लोकसभा की कुल 25 तथा विधान सभा की 175 सीटें है इस हार का कारण यह था कि लोगों के मन में यह बात घर कर गई थी कि कांग्रेस के चलते ही  आन्ध्र प्रदेश का विभाजन कर नया राज्य तेलंगाना बना है। लेकिन अब पार्टी के नेताओं को लग रहा है कि राज्य में जगन मोहन रेड्डी के सरकार के विरुद्ध  हवा बह रही है तथा अगर चुनाव पूरी ताकत से लड़ा जाये तो दक्षिण के इस तीसरे राज्य में भी वह सत्ता में आ सकती है। 

आन्ध्र प्रदेश में सत्ता में आने के बाद, जगन मोहन के परिवार में भी फूट पड़ गई। उनकी माँ और बहिन ने अपने बेटे की पार्टी से बाहर आकर तेलंगाना में जा   वाई एस आर तेलंगाना नाम की पार्टी बना ली। लेकिन यह नहीं पार्टी  वहां 2018 में विधान सभा तथा 2019 में लोकसभा के चुनावों कोई बड़ी उपस्थिति नहीं दिखा पाई। इसके बाद से वाईएस शर्मीला, जो जगन मोहन रेड्डी की बहन तथा नईं पार्टी की अध्यक्ष है, ने कांग्रेस से नजदीकियां बढानी शुरू कर दी। हाल के तेलंगाना विधानसभा चुनावों में इस पार्टी ने कोई उम्मीदवार नहीं खड़ा किया तथा कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवारों का समर्थन किया। अब यह बात चल रही है कि  शर्मीला की पार्टी कांग्रेस में शामिल हो जाये ताकि कांग्रेस का इसका लाभ आंध्र प्रदेश के चुनावों में मिल सके। पहले राज्य कांग्रेस के कुछ नेता इसके खिलाफ थे लेकिन अब उनका रुख बदल गया है। इसका कारण यह है कि शर्मीला ने कुछ दिनों पहले दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गाँधी से बात की थी। बताया है कि राहुल गाँधी दोनों पार्टियों के विलय के पक्ष में है। उनका अनुमान है कि शर्मीला और उसकी पार्टी के कांग्रेस में शामिल होने से कांग्रेस को ही कुछ लाभ मिलेगा। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)