वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
www.daylife.page
दक्षिण के इस कर्नाटक राज्य में, जहाँ पिछले साल मई में कांग्रेस पार्टी भारी बहुमत से सत्ता में आई थी, बीजेपी राज्यों की तरह एक से अधिक उप मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग एक बार फिर तेज हो गई है। कांग्रेस पार्टी के नेताओं का एक वर्ग चाहता है कि राज्य में कम से कम तीन उप मुख्यमंत्री होने चाहिए। उनका तर्क है कि अलग-अलग समुदायों के विधायकों को उप मुख्यमंत्री बनाये जाने से पार्टी को आगामी लोकसभा चुनावों में लाभ मिलेगा। राज्य में इस समय एक उप मुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ही है। शिवकुमार पिछले विधान सभा चुनावों के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे। लेकिन पार्टी आला कमान ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरामिया को सरकार की कमान देने का निर्णय किया। उस समय शिवकुमार, जो गाँधी परिवार के निकट माने जाते है, प्रदेश कांग्रेस के मुखिया थे। विधान सभा चुनावों में जीत के बाद कांग्रेस हलकों में यह कहा गया था कि राज्य में कांग्रेस को फिर सत्ता में लाने का अधिक श्रेय शिवकुमार को ही जाता हैं।
माना जाता है कि कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल के कहने पर मुख्यमंत्री पद से अपना दावा वापिस ले लिया और उप मुख्यमंत्री बनना स्वीकार कर लिया। पर शर्त यह थी कि उन्हें उनकी मर्जी का विभाग दिया जायेगा तथा वे लोकसभा चुनावों तक राज्य पार्टी के मुखिया भी बने रहेंगे। उनकी यह शर्त मान ली गई कि मुख्यमंत्री कोई भी बड़ा निर्णय उनकी सलाह के बिना नहीं करेंगे। राज्य में वोक्कालिंगा और लिंगायत दो बड़े जातीय समुदाय है जिनका राजनीतिक सामाजिक तौर पर बड़ा दबदबा है। शिवकुमार वोक्कालिंगा समुदाय के है। पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कुल 28 में से मात्र एक ही सीट मिली थी। विजयी उम्मीदवार डी.के. सुरेश, शिवकुमार के भाई है। उप मुख्यमंत्री होने के बावजूद इ समय शिवकुमार का दबदबा मुख्यमंत्री से कम नहीं।
सरकार बनने के बाद शिवकुमार ने कई घोषणाएं कर दी। उन्होंने ऐसा बिना मुख्यमंत्री से विचार-विमर्श के ही किया। इसमें से एक घोषणा राज्य के राजधानी बंगलुरु का विभाजन करदो जिले बनाया जाना भी शामिल था। सिद्धारमिया ने तुरंत इसका खंडन करते हुए कहा कि सरकार ने अभी ऐसा कोई निर्णय नहीं किया है। ऐसा कहा जाता है कि इन घटनाओं के बाद मुख्यमंत्री ने अपने समर्थक विधायकों को एक से अधिक उप मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग करने को कहा। मांग बड़े जोर से हुई लेकिन पार्टी आला कमान के निर्देश से मामला दब सा गया। लेकिन पिछले साल अक्टूबर से मांग फिर से उठती आ रही है। उन्हीं दिनों वरिष्ठ मंत्री जी रामेश्वर के घर पर एक रात्रिभोज हुआ जिसमें सिद्धारामिया समर्थक विधायकों को बुलाया गया था। इसमें सिद्धारामिया खुद भी उपस्थित थे। उल्लेखनीय है कि रामेश्वर सिद्धारामिया के नेतृत्व वाली पिछली सरकर में उप मुख्यमंत्री थे। वे पिछड़े वर्ग के समुदाय से आते है इसके बाद एक से अधिक उप मुख्यमंत्री बनाये जाने की मांग फिर सामने आई। जनवरी के आखरी सप्ताह में ऐसा ही एक रात्रि एक अन्य मंत्री महादेवप्पा के निवास स्थान पर हुआ।
हालाँकि सिद्धारामिया ने अपने आपको इस भोजन से अलग रखा लेकिन उनके समर्थक अधिकाश विधायक इसमें उपस्थित थे। सिद्धारामिया की हरचंद कोशिश है कि शिवकुमार का प्रशासन पर दबदबा कम हो। पार्टी आला कमान का सिद्धारामिया पर यह दवाब है कि वे इस बात को पुख्ता करें कि लोकसभा चुनावों में पार्टी को राज्य में कम से कम 20 सीटों पर जीत मिले। उनके समर्थक इस बात को बार-बार दोहरा रहे है कि अगर शिवकुमार के साथ साथ अल्प संख्यक, पिछड़े वर्ग अथवा लिंगायत समाज के दो प्रतिनिधियों को उप मुख्यमंत्री बना दिया जाये तो पार्टी 20 से भी अधिक सीटें लोकसभा चुनावों में जीत सकती है।
उधर शिवकुमार के समर्थक विधायक भी खुल के लाबी कर रहे है वे चाहत्ते है कि राज्य में केवल एक और केवल एक ही मुख्यमंत्री रहना चाहिए। राज्य की राजनीति को गहराई से जानने वालों को कहना है कि अगर सिद्धारामिया की सरकार के चलते कर्नाटक में कांग्रेस पार्टी को पार्टी आला कमान के अपेक्षा के अनुरूप सीटें नहीं मिली तो सिद्धारामिया पर मुख्यमंत्री पर पद से त्यागपत्र देने का दवाब बढ़ सकता है। ऐसे में शिवकुमार को मुख्यमंत्री का पद मिल सकता है, क्योंकि इस समय वे अकेले ही उप मुख्यमत्री हैं। अगर एक अधिक उप मुख्यमत्री होगें तो उनमें से कोई भी मुख्यमंत्री पद पर दावा कर सकता है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)