हमारे स्वतंत्रता सेनानी और पूर्वी और मध्य राजस्थान में आदिवासी समुदाय के बीच सामाजिक क्रांतिकारी के प्रतीक स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झरवाल साहब 20 वीं शताब्दी में हमारे सबसे पसंदीदा, लोकप्रिय, प्रेरणादायक और प्रकाश स्तंभ थे और परम श्रद्धेय लक्ष्मीनारायण ने अपनी सक्रिय उपस्थिति के माध्यम से हमें शिक्षा का मार्ग दिखाया और उन्होंने हमारे समाज में बालिका शिक्षा को बढ़ावा दिया।
29 अप्रैल 2024 को स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झारवाल साहब की 7वीं पुण्य तिथि के अवसर पर हमारे स्वतंत्रता सेनानी और आदिवासी सामाजिक नेता स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झारवाल को उनकी जन्मस्थली काली माता मंदिर, मोती डूंगरी, जयपुर झारवाल सदन में हमने उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
लेखक : डॉ कमलेश मीनासहायक क्षेत्रीय निदेशक, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय, इग्नू क्षेत्रीय केंद्र भागलपुर, बिहार। इग्नू क्षेत्रीय केंद्र पटना भवन, संस्थागत क्षेत्र मीठापुर पटना। शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार।
एक शिक्षाविद्, स्वतंत्र सोशल मीडिया पत्रकार, स्वतंत्र और निष्पक्ष लेखक, मीडिया विशेषज्ञ, सामाजिक राजनीतिक विश्लेषक, वैज्ञानिक और तर्कसंगत वक्ता, संवैधानिक विचारक और कश्मीर घाटी मामलों के विशेषज्ञ और जानकार।
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राजस्थान के जयपुर जिले के स्वतंत्रता सेनानी श्री लक्ष्मी नारायण झरवाल भूरामल मणि के पुत्र थे। उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए श्री हीरालाल शास्त्री, श्री बाबा हरिश्चंद्र और श्री विजयशंकर वैद सहित अन्य लोगों से प्रेरणा मिली। 1938 में उन्होंने प्रजा मंडल के तत्वावधान में विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया। 1945 में उन्हें राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के प्रावधानों के तहत सेंट्रल जेल, अजमेर में कैद कर दिया गया। उन्होंने आपराधिक जनजाति अधिनियम और धारा 28 का विरोध किया, पुतले बनाए, उनके अंदर पटाखे रखे और उनमें आग लगा दी। उन्होंने कई हड़तालों, विरोध प्रदर्शनों और जुलूसों में भी सक्रिय रूप से भाग लिया, जो 'लाग-बैग' और 'बेगार' या अवैतनिक श्रम की व्यवस्था के खिलाफ आयोजित किए गए थे।
वे मीना समुदाय से जुड़े 'दादरसी' कानून के सख्त खिलाफ थे। वह 'अहिंसा' या गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के कट्टर समर्थक थे। इसलिए, हरिजनों के उत्थान और सामाजिक कार्यों से संबंधित गतिविधियों में उनकी गहरी रुचि थी। स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झारवाल साहब ने आदिवासियों, किसानों, सबसे अधिक दबे-कुचले, वंचित और हाशिए पर रहने वाले समुदायों को उन्होंने सामंतवाद, राजाओं के शासन और रियासती युग के समय में उन्हें आवाज और समर्थन दिया। ब्रिटिश भारत में रियासतें ब्रिटिश राज के दौरान अविभाजित भारत में स्वायत्त राज्य थे। इन्हें आम बोलचाल की भाषा में "रियासत", "रजवाड़े" या व्यापक अर्थ में देशी रियासत कहते थे। ये ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा सीधे शासित नहीं थे बल्कि भारतीय शासकों द्वारा शासित थे।
सामंतवाद एक ऐसी व्यवस्था थी जिसमें लोगों को उच्च पद के लोगों द्वारा भूमि और सुरक्षा दी जाती थी और बदले में वे उनके लिए काम करते थे और लड़ते थे। सामंतवाद का मूल विचार यह था कि यह सेवाओं के बदले में भूमि के कब्जे से प्राप्त संबंधों के आधार पर समाज की संरचना करने की एक प्रणाली थी। झारवाल साहब सामंतवाद युग के साक्षी थे जो राजस्थान में गरीब और भूमिहीन समुदाय के लिए सबसे अधिक शोषित समय था। उन्होंने उस युग को देखा और इस प्रकार की भेदभावपूर्ण व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए अपने प्रयास किये।
श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल का जन्म 2 नवम्बर 1914 को जयपुर में हुआ। इन्होंने 24 वर्ष की आयु से राष्ट्रीय आन्दोलन में भाग लेना आरम्भ कर दिया था। 20 अक्टूबर 1938 में किशनपोल बाजार स्थित, आर्य समाज मंदिर मे प्रजामण्डल अधिवेशन शुरू हुआ जिसमें श्री झरवाल ने भी श्रीचंद्र अग्रवाल के साथ भाग लिया जहाँ इनकी जयपुर राज्य प्रजामण्डल के संस्थापक सदस्य श्री हीरालाल शास्त्री, वैद्य श्री विजय शंकर शास्त्री जैस स्वतंत्रता सेनानी आदि नेताओं से भेंट हुई। सन 1941-42 में श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल ने प्रजामण्डल आंदोलनों में खासा उत्साह लेते हुए भाग लिया जिसके कारण इन्हें बन्दी बना लिया गया और छोटी चौपड़ कोतवाली मे हाथों मे हथकड़ी डालकर कमरे की छत के कुंदो मे जंजीरों से ऊँचा लटका दिया और कठोर शारीरिक यातनाओं के साथ मानसिक यातनाऐं भी दी गई। साथ ही हाथ व पाँव की अंगुलियों के काली स्याही से प्रिंट लिए गये और इसके अलावा उन्हें एक रुक्का लिखकर दिया गया जिसमें आदेश यह था कि ‘आपको माणक चौक थाना, बड़ी चौपड़ मे प्रतिदिन उपस्थित होकर हाजरी देनी होगी।
मेरे जैसे हजारों युवाओं को आदरणीय श्री स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झरवाल साहब के योगदान, सामाजिक गतिविधियों और अन्याय के युग में उनकी भूमिका से प्रेरणा, आशीर्वाद, शुभकामनाएं और मार्गदर्शन मिला। झारवाल साहब अपने अंतिम समय तक सक्रिय रहे और पूरे राजस्थान में शिक्षा, राजनीतिक सशक्तिकरण और आर्थिक समृद्धि का मार्ग दिखाने, प्रेरित करने और मार्गदर्शन करने के लिए सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए हमेशा उत्सुक रहे।
सन् 1938 में श्री जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में प्रजामण्डल का द्वितीय अधिवेशन आगरा रोड स्थित नथमल जी का कटला, जयपुर (वर्तमान में यह अग्रवाल कॉलेज के नाम से जाना जाता है) में संपन्न हुआ इसमें चरखा संघ की ओर से एक खादी प्रदर्शनी भी लगी यहीं पर आपकी मुलाकात क्रान्तिकारी नेता श्री ओमदत्त शास्त्री व बलवंत राय देशपांडे मंत्री चरखा संघ से हुई 12 फ़रवरी 1939 के दौरान जयपुर राज्य में भयंकर अकाल पड़ा था श्री जमनालाल बजाज अकाल की स्थिति का आकलन करने के लिय वर्धा से जयपुर के लिए रवाना हुए परन्तु राज्य सरकार ने इनके जयपुर प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया लेकिन राज्य सरकार की प्रतिबंध की आज्ञा तोड़कर श्री बजाज ने जयपुर में प्रवेश किया जिस पर सरकार ने उन्हें बन्दी बना कर सिसोदिया बाग में कैद कर दिया इसी दौरान प्रजामण्डल के सत्याग्रह आंदोलन ने ओर जोर पकड़ लिया जिस पर प्रजामण्डल के प्रमुख नेता श्री हीरालाल शास्त्री, बाबा हरिश चन्द्र शास्त्री रामकरण जोशी (दौसा) लक्ष्मी नारायण झरवाल एवं सुलतान सिंह झरवाल जयपुर आदि नेताओं को बन्दी बना लिया
उदयपुरवाटी, गुढ़ापोंख, चला, चौकड़ी आदि स्थानों पर मीणा जाति पर किये जा रहे अत्याचार व अन्याय के विरुद्ध गुढ़ा में प्रस्तावित प्रजामण्डल के तपस्वी नेता श्री बद्री नारायण खोरा की अध्यक्षता में किसान सम्मेलन के प्रचार-प्रसार के लिए जब श्री झरवाल पर्चे बांट रहे थे उसी समय आपको नीम का थाना रेलवे स्टेशन के बाहर भारत सुरक्षा कानून की धारा 129 के अंतर्गत हेड कांस्टेबल आत्माराम द्वारा बन्दी बना लिया गया और छावनी पुलिस मुख्यालय ले जाकर आपको काठ में दे दिया गया और अनेक कठोर यातनाऐं देना शुरू कर दिया जैसे खुले आसमान में पेड़ के नीचे काठ पड़ा था उसी में श्री झरवाल के दोनों पैरों को फँसा दिया गया जोरो से आंधी व हवा की वजह से खुले पड़े चौड़े से मैदान में बालू मिट्टी उड़कर आँखों व मुँह में आने लगी इन परिस्थितियों के बावजूद भी आपने स्पष्ट कह दिया की ”यदि तुम मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े भी कर डालो,तो भी महात्मा गाँधी का सत्य व अहिंसा का मार्ग नहीं छोडूंगा” लम्बे समय तक वहाँ काठ में रखकर आपको 3 अप्रैल, 1945 को केंद्रीय कारागार, जयपुर में भेज दिया गया वहाँ पर भी दो माह तक अनेक यातनाऐं दी गई अंततः 29 मई 1945 को जयपुर जेल से रिहा कर दिया गया श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल ने मीणा जाति और स्वतन्त्रता का इतिहास नामक पुस्तक भी लिखी। इनकी मृत्यु 29 अप्रेल 2017 को जयपुर में हुई।
सौभाग्य से मेरी पढ़ाई और कॉलेज के दिनों की सामाजिक गतिविधियों के दौरान मुझे 2000 से 2008 तक आदरणीय स्वर्गीय लक्ष्मीनारायण झरवाल साहब का सानिध्य प्राप्त करने का अवसर मिला। 2002 में मैं उनसे पहली बार उनके निवास पर मिला और उन्होंने मुझे आदिवासी समुदाय गोत्रों पर लिखी एक पुस्तक उपहार में दी।
बाद में राष्ट्रीय मीना महासभा के बैनर तले आयोजित विभिन्न सामाजिक सभाओं में उनसे लगातार मुलाकात हुई और उनके विचारों को सुनने का अवसर मिला और उन्होंने हमेशा सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, प्रशासनिक और वित्तीय स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा पर जोर दिया। दिवंगत स्वतंत्रता सेनानी झरवाल साहब ने अपना पूरा ध्यान शिक्षा में नामांकन पर दिया और शिक्षा के माध्यम से हम अपने वर्तमान जीवन को बेहतर बना सकते हैं। मैंने अपने कॉलेज की पढ़ाई के दौरान उनके व्यक्तित्व और उनके अनुभव को जाना और सामाजिक रूप से उन दिनों कई आदिवासी सामुदायिक संगठनों के माध्यम से काफी सक्रिय थे।
अपने कॉलेज के दिनों से ही मेरी सामाजिक, राजनीतिक और छात्र गतिविधियों में काफी रुचि थी और इसी रुचि के कारण मैं 21वीं सदी की शुरुआत में कई प्रसिद्ध शिक्षाविदों, राजनेताओं और वरिष्ठ समाजवादी नेताओं और व्यक्तित्वों से जुड़ा रहा हूं। सामाजिक सेवा गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल होने के कारण, मुझे अपने कॉलेज के दिनों में किसान समुदायों की कई दिग्गज हस्तियों से मिलने का अवसर मिला और मुझे उनकी विशेषज्ञता, अनुभव, ज्ञान और दृष्टिकोण प्राप्त हुए। कुछ लोकप्रिय सामाजिक राजनीतिक और समाजवादी नेता हैं जिनका मुझे अपने जीवन में ध्यान, आशीर्वाद, मार्गदर्शन और शुभकामनाएं मिलीं।
ये प्रमुख नाम निम्नलिखित हैं; स्वर्गीय हेराम बेनीवाल जी कामरेड पूर्व सांसद श्रीगंगानर, स्वर्गीय डॉ. हरि सिंह जी पूर्व कैबिनेट मंत्री और पूर्व सांसद सीकर और राजस्थान में जाट आरक्षण और बालिका शिक्षा के नायक, स्वर्गीय श्रीरामगोटेवाला जी पूर्व कैबिनेट मंत्री, स्वर्गीय रावराजा राजेंद्र सिंह जी पूर्व विधायक उनियारा, टोंक, आदरणीय हरसहाय जी पूर्व मंत्री राजस्थान सरकार, स्वर्गीय दिलशुखराय चौधरी जी पूर्व विधायक, पूर्व कैबिनेट मंत्री नत्थी सिंह जी, पूर्व विधायक महेंद्र शास्त्री जी, पूर्व विधायक नवरंग लाल चौधरी जी, तिजारा के पूर्व विधायक मास्टर अयूब खान साहब और स्वर्गीय प्रथम जनजातीय समुदाय केंद्र सरकार में कैबिनेट मंत्री और मेघालय के पूर्व मुख्यमंत्री पीए संगमा जी आदि। परम श्रद्धेय लक्ष्मीनारायण झरवाल साहब की 7वीं पुण्य तिथि पर हम उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)