सांभर उप जिला अस्पताल अनेक सुविधाओं से महरूम

50 लाख का ओपीडी भवन तैयार, शुरू होने का इंतजार 

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को उप जिला अस्पताल का दर्जा मिलने के बाद भी सुविधाओं का इंतजार बना हुआ है। लोगों की समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए भाजपा मंडल अध्यक्ष जितेंद्र डांगरा व नेता प्रतिपक्ष अनिल कुमार गट्टानी ने इसके लिए सरकार का ध्यान आकृष्ट करवाया है। डांगरा बताते हैं 50 लाख रुपए की लागत से नया ओपीडी भवन बनकर तैयार हुए लंबा वक्त हो चुका है। अस्पताल परिसर में भीड़ के दबाव को हटाने के लिए पृथक से ओपीडी भवन बनाया गया है। अस्पताल प्रशासन को अवगत कराने के बाद भी इसे काम में नहीं लिया जा रहा है। मरीजों का दबाव अत्यधिक है। अस्पताल की गैलरी में मरीजों की लंबी कतार लगी रहती है। 

इस स्थिति से निपटने के लिए पृथक से ओपीडी भवन पर सरकार ने 50 लाख रुपए खर्च किए हैं। अस्पताल प्रशासन की  हठधर्मिता के कारण इस ओपीडी भवन को काम में नहीं लिया जा रहा है। बताया जा रहा है कि यहां पर 800 के करीब ओपीडी आंकड़ा है, उसके मुताबिक चिकित्सकों का भारी टोटा है। पूर्व विधायक निर्मल कुमावत ने चुनाव आचार संहिता से पहले इसका लोकार्पण किया था। बता दें कि वर्तमान में उप जिला अस्पताल में वरिष्ठ विशेषज्ञ के 2 पद, कनिष्ठ विशेषज्ञ के 10, वरिष्ठ चिकित्साधिकारी के 2, चिकित्साधिकारी के 7, चिकित्साधिकारी डेंटल का 1 पद, नर्स श्रेणी प्रथम के 6 पद, नर्स श्रेणी द्वितीय के 38, फार्मासिस्ट के 2 पद, रेडियोग्राफर के 5 पद, लैब टैक्निशयन के 5 पद, डेंटल टैक्निशयन का 1 पद, नेत्र सहायक 1 पद, कनिष्ट लेखाकार का 1 पद, कनिष्ट सहायक के 2, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता का 1, वार्ड बॉय के 10, सफाई कर्मचारी के 6 पद स्वीकृत है। वर्तमान में केवल 7 चिकित्सकों के भरोसे ही उप जिला अस्पताल संचालित है। काबिले गौर की यहां वरिष्ठ विशेषज्ञ ईएनटी, चेस्ट, सर्जन, मेडिसिन, नेत्र रोग विशेषज्ञों सहित कनिष्ट विशेषज्ञ चिकित्सकों सहित कुल 15 पद चिकित्सकों के रिक्त चल रहे हैं. वही नर्स श्रेणी प्रथम का 5, नर्स श्रेणी द्वितीय के 32, फार्मासिस्ट के 1, रेडियोग्राफर के 3, लैब टैक्निशयन के 2, डेंटल टैक्निशयन 1, नेत्र सहायक 1, कनिष्ट सहायक 1, महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता 1, वार्ड बॉय के 8 पद सहित सफाई कर्मियों के पद रिक्त चल रहे हैं। 

इसके अलावा सर्जन, ऑर्थोपेडिक्स एवं एनेस्थीसिया का अभाव तो विगत कई दशकों से चला रहा है, हालाकि अस्पताल प्रशासन की ओर से समय-समय पर विभागीय सूचना भेजकर सीएमएचओ ग्रामीण को भी रिपोर्ट भेजी जाती है, लेकिन मामला सरकार के स्तर का होने के कारण स्वास्थ्य विभाग भी चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा हैं।