व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)
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कल रात जबसे हमने एडवोकेट रवींद्र कुमार का उनके चेनल हिन्द वॉइस पर अनंत अंबानी की शादी के बारे में एक वीडियो देखा है तभी से हम परेशान हैं।
वैसे हमारा इस शादी से कोई संबंध नहीं सिवाय इसके कि हम भारत के नागरिक है या फिर हम ईशा की ससुराल की तरफ से होने के कारण मुकेश अंबानी के लिए उच्च मान्य समधी हैं। स्पष्ट कर दें कि हम पीरामल परिवार के मूल स्थान बगड़ (राजस्थान) के पास से हैं। सुना है, इस शादी में दुनिया भर से तरह तरह के विशिष्ट और विचित्र तीन-चार हजार लोग शामिल हुए। उत्सुकताववश दो अनामंत्रित मनुष्य उस शादी में समस्त सिक्योरिटी को धता बताकर घुस गए । हम इतना साहस नहीं कर सकते।
हमें न तो इस शादी में बुलाया गया और न ही हम गए। फिर भी पता नहीं क्यों हम सामान्य नहीं हो पा रहे थे और बरामदे में चुप बैठे थे कि तोताराम ने हमारा ध्यान भंग किया, बोला- क्यों मुहर्रमी सूरत बनाए बैठा है?
हमने कहा– आज वास्तव में मोहर्रम ही तो है लेकिन हम कोई मातम नहीं मना रहे हैं । ये सब बातें अब प्रतीकात्मक रह गई हैं। किसी भी समाज के इतिहास को समझने के अवसर। अब किसी हुसैन को कोई खतरा नहीं है तो हथियारों और आत्मप्रताड़ना का भी कोई अर्थ नहीं रह गया है। और मोहर्रम के जुलूस में फिलस्तीन का झण्डा फहराना तो शुद्ध रूप से धर्म में राजनीति का विष घोलना है।
इसी तरह अब जब गरीब के पास रोटी पर लगाने तक को तेल नहीं है तो सरयू तट पर लाखों दीये जलाना एक तमाशा, आतंक और जनता के धन का अपव्यय है। मोहर्रम पर रोक और काँवड़ियों पर हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा दोनों इकतरफा फैसले हैं। रामनवमी के दिन तलवार लेकर किसी मस्जिद पर चढ़कर भगवा झण्डा फहराना न तो राम की मर्यादा है और न कोई भक्ति।
न हम दुखी है, न सुखी। हाँ, एक दुविधा और आशंका जरूर है।
बोला- मैं इसमें क्या सहायता कर सकता हूँ?
हमने कहा- तुम हमारे कुछ प्रश्नों का सही-सही संक्षिप्त उत्तर देना और उसके बाद यदि आवश्यक हुआ तो उनका सत्यापन भी कर देना।
हमने पूछा- हमने तुम्हारे साथ अनंत अंबानी की शादी का वीडियो कितनी देर तक देखा था?
बोला- देखा क्या, दो मिनट में ही सिर दर्द का बहाना बनाकर भाग लिया।
हमारा दूसरा प्रश्न था- क्या हम अंबानी की शादी के इस छमाही कार्यक्रम फरवरी से जुलाई 2024 तक कभी जामनगर, इटली, मुंबई गए?
बोला- इटली, मुंबई ? चार साल से रीको मोड़ वाले एसबीआई तक महिने में एक बार पेंशन लेने के अतिरिक्त बस मई 2024 में सीकर के साहित्यकार गोरधन सिंह शेखावत की शोक सभा में बस डिपो तक जरूर गया था।
हमने कहा- तो फिर यही बात एक कागज पर लिखकर दे दे।
बोला- कहीं कोई ईडी, इनकम टेक्स या यूएपीए का चक्कर तो नहीं पड़ गया। आजकल सरकार सतर्क हो गई है और लिखने पढ़ने वालों पर कुछ ज्यादा ही। वैसे तो तेरी बुद्धिजीवियों में कोई गिनती होती नहीं कि तुझे स्टेंस स्वामी की तरह बिना जमानत के हिरासत में ही मार दिया जाए या पुरकायस्थ की तरह यूँ ही गिरफ्तार कर लिया जाए। फिर भी जो सरकार कोई अध्यादेश पास करवाने के लिए सौ से अधिक सांसदों को बाहर निकाल दे, जिसके दिमाग में ‘विभाजन विभीषिका दिवस’ और ‘लोकतंत्र हत्या दिवस’ जैसे उत्सव आते हों वह कुछ भी कर सकती है। कहीं स्टेटमेंट देकर फंस तो नहीं जाऊंगा क्योंकि अगर सरकार नीचता पर उतर आए तो कुछ भी कर सकती है।
हमने कहा- हालांकि संसद में जैसे ‘सेंगोल’ के सामने साष्टांग हुए थे वैसे तो नहीं पर 2014 में मोदी जी ने संसद की सीढ़ियों पर मत्था तो टेका था और अबकी बार संविधान को माथे से लगाया था। मोदी जी लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में विश्वास करते हैं। कुछ भी ऐसा वैसा नहीं होगा।
बोला- फिर भी बात अच्छी तरह स्पष्ट कर। बिना सब कुछ जाने कुछ भी लिखकर नहीं दूंगा।
हमने कहा- हमने कल अंबानी की शादी के बारे में हिन्द वॉइस पर एडवोकेट रवींद्र कुमार की किसी के साथ बातचीत सुनी थी। वे बता रहे थे कि शादी का कार्ड एक डेढ़ लाख का था, कुछ को रिटर्न गिफ्ट में 2-2 करोड़ की घड़ियाँ भी दी गईं । अब उन सबको लाखों का टेक्स देना पड़ेगा।
बोला- तो तू क्यों परेशान हो रहा है? तुझे न तो शादी का कार्ड मिला, न कोई गिफ्ट। और न अब कुछ आना। शादी के बटेरे के चार लड्डू भी नहीं। तेरी तो अंबानी के हाथी की खिचड़ी खाने तक की हैसियत नहीं है। हमने कहा- तोताराम, अभी तो तूने भी सरकार की शक्ति का वर्णन किया था। हम भी सरकार की ताकत को मानते हैं। राज का रास्ता जनता के सिर के ऊपर से होता है। जो सरकार सालों पुराने केस में किसी मोदी का नाम लेने पर राहुल की सदस्यता छीन सकती है वह कुछ भी कर सकती है। यह ठीक है कि हम कहीं नहीं गए लेकिन थोड़े देर के लिए तेरे यहाँ शादी के फ़ोटो तो देखे ही थे।
बोला- तो उससे क्या होता है।
हमने कहा- कुछ भी हो सकता है। तूने वह भैंस वाला का किस्सा तो सुन ही होगा।
एक भैंस भागी जा रही थी। उसे देखकर चूहे ने पूछा- बहिन, क्यों भाग रही हो?
भैंस ने कहा- सुना है कुछ सरकारी कर्मचारी हाथियों को पकड़ने के लिए जंगल में आए हुए हैं।
लेकिन तुम तो भैंस हो- चूहे ने कहा।
भैंस बोली- हूँ तो मैं भैंस लेकिन यह सिद्ध करने में कि ‘मैं भैंस हूँ’ दिल्ली के उपमुख्यमंत्री सिसोदिया की तरह पता नहीं कितना समय लग जाए।
उसकी बात सुनकर चूहा भी उसके साथ भागने लगा । (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)