संदेहास्पद हिन्दू : रमेश जोशी

 

लेखक : रमेश जोशी 

व्यंग्यकार, साहित्यकार एवं लेखक, प्रधान सम्पादक, 'विश्वा', अंतर्राष्ट्रीय हिंदी समिति, यू.एस.ए., स्थाई पता : सीकर, (राजस्थान)

ईमेल : joshikavirai@gmail.com, ब्लॉग : jhoothasach.blogspot.com

सम्पर्क : 94601 55700 

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यह कोई माननीयों का मिलन-स्थल नहीं है और न ही कोई मलाईदार रोटी बीच में रखी है कि जिसे कब्ज़ाने के लिए लड़ें फिर भी पता नहीं क्यों, लगभग  हमारे उठने के समय से थोड़ा पहले ही गली के कुत्ते अपने-अपने पक्ष और प्रतिपक्ष समूहों में विभाजित होकर बहुत जोर से एक दूसरे पर भौंक रहे थे। हमने सोचा कहीं हिन्दू राष्ट्र पर तो संकट नहीं आ गया? बाहर निकलकर देखा तो पाया कि हिन्दू और राष्ट्र दोनों सुरक्षित हैं। हम एक दो बार अपनी मरियल सी आवाज में हँकाले भी लेकिन चूंकि उनका बहुमत था, भले जोड़तोड़ कर ही सही। उनका संख्या बल और शोर बल (ध्वनि मत) हम पर हावी रहा। उन्होंने हमारी एक न सुनी। ज्यादा हँकालते तो शायद हमें खांसी शुरू हो जाती और उस चक्कर में हमें ‘धन्यवाद-प्रस्ताव’ पर बोलने के लिए दिया गया समय समाप्त हो जाता। सो हम इसे इनकी दैनिक यौगिक क्रिया मानकर अंदर आ गए। योग और श्वानों का घनिष्ठ संबंध सभी योगी जानते हैं- अधोमुख श्वानासन । हम अंदर आ गए। 

हो सकता है इस चक्कर में दरवाजे की कुंडी लगाना भूल गए हों। सो पता ही नहीं चला कि कब तोताराम ने अपने ‘सेंगोल’ के साथ घर में प्रवेश कर लिया? और किसी ‘राजा’ की तरह कड़कती आवाज में बोला- हे संदेहास्पद हिन्दू,उठ, अभी तक सो रहा है। 

इस देश की यह एक बड़ी विशेषता है कि उसे ऊंच-नीच और यहाँ तक कि छुआछूत तक से कोई परेशानी नहीं है लेकिन अपनी जाति को नकली या घटिया बताया जाना कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता। तभी तो कभी कोई नेता बिहार के डीएनए पर चुनाव जीत जाता है तो कभी राजपूत जाति का अपमान होने से वोट कम हो जाते हैं तो कभी सेंगोल के नाम से तमिल वोटों को गोलबंद किया जाता है। तो कभी ‘हिंसक हिन्दू’ के अर्द्ध सत्य के बात का रुख बदलने की कोशिश की जाती है।

जातियों में बंटे भारत का यह एक कटु सत्य है कि हम सब अपने से नीची कोई न कोई जाति ढूँढ़ कर उस पर अपनी कुंठा उतार देते हैं। अपने को दलित मानकर अन्याय के विरुद्ध झण्डा बुलंद करने वाले भी किसी न किसी जाति को अपने से नीचा मानकर अपने में छुपे ‘ब्राह्मणत्व’ की संतुष्टि कर लेते हैं। ब्राह्मणों में भी तरह तरह से अनेक वर्ग बने हुए हैं- गौड़, सारस्वत, खण्डेलवाल, सरयूपारीण, इतने-उतने बिस्वा आदि न जाने क्या क्या?  और अब हमारे देखते देखते अन्य ऊंचे-नीचे ब्राह्मणों में ही नहीं, अपने से नीचे के वर्णों में ही नहीं बल्कि अन्य धर्मों तक में शादियाँ होने लगी हैं। पता नहीं, उनके क्या जाति-धर्म होंगे? 

हमारा यज्ञोपवीत 140 करोड़ के नेता और हिन्दू हृदय सम्राट के जन्म से भी पहले हो चुका था 1949 में सात वर्ष की आयु में। शुरू शुरू की बात और थी  लेकिन बाद में न तो हमसे गायत्री मंत्र का नियमित पाठ हुआ, और न ही लघु-दीर्घ शंका करने से पहने कान को जनेऊ से कसना संभव हुआ।

बच्चों को भी हमने इस चक्कर में नहीं डाला, यह सोचकर कि जब मनु महाराज कह गए हैं -

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् द्विज उच्यते

तो चिंता करने की क्या बात है? जैसा कर्म करेंगे वैसे बन जाएंगे। लेकिन आज तक किसी ने हमें ‘संदेहास्पद ब्राह्मण’ नहीं कहा। और आज 82 साल की आयु में हमारा बचपन का साथी हमें हमारे ही घर के चौक में खड़ा होकर संदेहास्पद ब्राह्मण कह रहा है? 

हमने भी चौक में आकर ताल ठोंकी- कौन है हमारे ब्राह्मणत्व को चुनौती देने वाला?

बोला- जमदग्नि कुलावतंस तोताराम के अतिरिक्त और कौन होगा ? न सही परशुराम की तरह फरसा लेकिन प्रतीकात्मक ‘सेंगोल’  की तरह यह एक छड़ी तो है। (हम बताना भूल गए कि मिली जुली सरकार की तरह संतुलन बनाने के लिए चिकित्सकों ने चाल में बेलेन्स बनाने तोताराम को छड़ी रखने को कह दिया है) और कौन होगा धर्म की रक्षा के लिए अपनी माँ तक का सिर काट देने वाला। 

हमें लगा तोताराम का दिमाग खराब हो गया है क्योंकि ऐसी बातें तो कोई पागल ही कर सकता है। अरे, आदमी के जीवन में इतनी समस्याएं हैं कि उन्हीं से निजात नहीं मिलती। कहाँ धर्म के लिए सिर फोड़े-फुड़वाएगा। 

फिर भी हमने उसी टोन में पूछा- तो क्या अब तू धर्म के लिए हमारा सिर काटेगा? 

बोला- मेरी तो इतनी हिम्मत नहीं है और न ही मैं जगद्गुरु परमहंसाचार्य हूँ जो केजरीवाल जैसों का सिर काटने के लिए लाखों रुपए की विषबुझी तलवार लिए घूमता रहूँ। मेरा तो यह कहना है कि जब हम हिन्दू हैं, ब्राह्मण हैं तो वैसा कुछ नजर भी आना चाहिए, वैसा कुछ करना भी चाहिए। अन्य धर्म वालों को देखो कैसे गर्वपूर्वक अपने धार्मिक चिह्नों को धारण करते हैं, अपनी धार्मिकता का प्रदर्शन करते हैं, उनकी रक्षा और सम्मान के लिए बलिदान देने को भी तैयार रहते हैं।

हमने कहा- तुलसी कहते हैं- ‘दया धरम का मूल है, पाप मूल अभिमान’ सो हम न तो किसीके साथ क्रूरता करते हैं और न ही गर्व करते हैं। हो सकता है तो अपनी औकात के अनुसार बिना प्रदर्शन किए किसी की थोड़ी बहुत मदद भी कर देते हैं। यह क्या धार्मिक होना नहीं है? 

बोला- धर्म को यहीं तक सीमित रखने के कारण ही तो लोग लव जिहाद कर रहे हैं, धर्मांतरण करवा रहे हैं, सुबह होते ही जोर जोर से लाउड स्पीकर पर ज्यादा बच्चे पैदा करने वाले अपने धर्म की पुस्तक से हिन्दू धर्म के लिए खतरनाक शब्दावली जोर जोर से बजाते हैं। तूने उससे अपने धर्म को बचाने के लिए क्या किया?

हमने कहा- इसमें करना क्या है। सभी अपने अपने धर्म के आयोजन करते हैं। जुलूस निकालते हैं। डी जे बजाते हैं। सड़कें भी घेर लेते हैं। कोई दस मिनट की नमाज के लिए तो कोई रात भर के जागरण के लिए। विविधता वाले देश में यह सब चलता है। हजारों साल से चलता आया है। 

बोला- हमारा तो सांस्कृतिक कार्यक्रम होता लेकिन उनका कट्टर धार्मिक और आतंकवादी कार्यक्रम होता है। 

हमने पूछा- तो क्या करें? 

बोला- कुछ भी किया जा सकता है। किसी भी अधिक बच्चे पैदा करने वाले धर्म के स्थानों के आगे जाकर जोर जोर से हनुमान चालीसा का पाठ कर सकता है, साइसे धर्म के किसी भी व्यक्ति के फ्रिज में गाय का मांस ढूंढ कर उसकी लिंचिंग कर सकता है, मौका देखकर उनके धार्मिक स्थान पर अपने धर्म के रंग का झण्डा फहरा सकता है, उसके धार्मिक स्थान को एक खास रंग में रंग सकता है, किसी हिन्दू लड़की से शादी करने वाले को उसके कपड़ों से पहचानकर ट्रोल कर सकता है, ‘गोली मारो सालों को’ जैसे नारे लगा सकता है। और कुछ नहीं तो कम से कम यह सब करने वाले सच्चे हिंदुओं को वोट तो दे सकता है। लेकिन तुझ जैसे संदेहास्पद हिंदुओं से ने इतना तक भी नहीं किया। 

हमने कहा- लोकतंत्र में यह तो मतदाता कि स्वतंत्रता है कि वह जिसे चाहे वोट दे। देखा नहीं, अयोध्या में राम को लाने का दावा करने वाली पार्टी को ही वहाँ के मतदाता ने हरा दिया। 

बोला- तभी तो वहाँ दर्शन के लिए जाने वाले सच्चे हिन्दू तीर्थयात्रियों ने अयोध्या के दुकानदारों का बहिष्कार कर दिया, सच्चे हिन्दू संतों ने उनको गालियां देना शुरू कर दिया। एक ने तो जीते हुए दलित सांसद को शीघ्र मर जाने का श्राप ही दे दिया। 

हमने कहा- ये सब खटकर्म तो हम नहीं कर सकते। हमारा मानना है कि हिन्दू सब के साथ मिलकर रहने वाला उदार और दयालु व्यक्ति होता है। जब तक इस दुनिया में इस हिन्दुत्व को मनाने वाले लोग रहेंगे यह दुनिया दुष्टों और घृणा फैलाने वालों से बची रहेगी । हम तो यह कर सकते हैं कि तेरे तेरे जैसे सच्चे हिन्दू का धर्म बचाने के लिए एक संदेहास्पद हिन्दू के घर की चाय पिलाना बंद कर सकते हैं। 

बोला- जैसे मोदी जी 140 करोड़ के प्रधान सेवक हैं और सभी 140 करोड़ भारतीयों के साथ समान और न्यायपूर्ण व्यवहार करते हैं, कभी किसी को कटु वचन नहीं कहते, वैसे ही मैं भी ओम बिरला जी की तरह इस ‘बरामद विष्ठा’ का अनुपम और योग्यतम अध्यक्ष हूँ। मैं ऐसा धार्मिक भेदभाव नहीं कर सकता। कुछ भी हो जाए मैं तेरे यहाँ चाय पीना छोड़कर तेरी भावना को आहत नहीं करना चाहता। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)