लेखक : लोकपाल सेठी
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक
www.daylife.page
कर्नाटक में लोकसभा के चुनावों में आशा से बहुत कम सीटें आने के बाद सत्तारूढ़ कांग्रेस में आन्तरिक कलह बढ़ गई है। राज्य में मोटे तौर पर दो गुट हैं। एक गुट मुख्यमंत्री सिद्धारामिया का तथा दूसरा गुट उप मुख्यमंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डी के शिवकुमार का है। गत वर्ष मई में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी को कुल 224 सीटों में से 135 सीटें मिली थी। पार्टी बीजेपी को पराजित कर सत्ता में आई थी। लोकसभा चुनावों के दौरान सिद्धरामिया ने दावा किया था कि नई सरकार ने एक साल में इतना अच्छा कम किया है कि पार्टी सभी 28 लोकसभा सीटें जीतने के स्थिति में है। लेकिन माना जा रहा था कि पार्टी कम से कम 20 सीटें तो जरूर जीत सकेगी। पिछले लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने 28 में से 26 सीटों पर अपनी जीत दर्ज थी। कांग्रेस पार्टी को केवल 1 सीट पर ही सब्र करना पड़ा था। उन चुनावों में कभी कांग्रेस के साथ रही पार्टी जनता दल (स) को एक सीट मिली थी। इस बार बीजेपी और जनता (स) ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को कुल 19 सीटें मिली जबकि कांग्रेस को 9 सीटें लेकर संतोष करना पड़ा।
इस हार के बाद कांग्रेस पार्टी में आन्तरिक कलह खुल कर सामने आ गई। दोनों गुट हार का ठीकरा एक दूसरे फोड़ने लगे। विरोधी गुट ने इस हार के लिए सिद्धारमिया को जिम्मेदार ठहराया। जबकि सिद्धारामिया गुट कहना था हार की जिम्मेदारी संगठन की भी है जिसके मुखिया शिवकुमार है। सच्चाई यह है चुनावो के दौरान दोनों गुटों में सामंजस्य नहीं था। गुटबंदी के चलते जीत सकने वाले कई पार्टी नेताओं को टिकट नही मिला। चुनाव परिणाम सामने आने के बाद शिवकुमार गुट ने मुख्यमंत्री पर सीधा हमला कर दिया। शिवकुमार राज्य के प्रभावशाली वोक्कालिंगा समुदाय से आते है, इस समय वे इस समुदाय के लगभग एकमात्र और निर्विवादित नेता है। राज्य में की जातिवादी राजनीति में समुदायों के संत और महंत बड़ी भूमिका निभाते है। शिवकुमार को आगे बढाने के उद्देश्य से कुछ दिन पहले वोक्कालिंग समुदाय के संतो का एक बड़ा सम्मलेन आयोजित किया गया। इसमें यह मांग की गई कि पार्टी नेतृत्व को बदलकर शिवकुमार को मुख्यमंत्री का पद दिया जाना चाहिए।
इसका तुरंत उत्तर देते हुए सिद्धारामिया ने कहा कि वे राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री है। उन्हें किसी ने नामजद नहीं किया है। वे अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेंगे। सिद्धरामिया पिछले वर्ग से आते जिन्हें स्थानीय भाषा में अहिन्दा कहा जाता है। अब बारी अहिन्दा नेताओं की थी। उन्होंने एक बयान जारी कर कहा कि सिद्धारामिया को किसी भी सूरत में उनके पद से नहीं हटाया जाना चाहिए। सिद्धारामिया और शिवकुमार की अदावत पुरानी है। विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले जब शिवकुमार को राज्य में पार्टी का मुखिया बनाया गया था तो सिद्धारामिया ने इसका विरोध किया था। उस समय शिवकुमार गाँधी परिवार के बहुत निकट थे। इसलिए वे राज्य पार्टी के मुखिया बनने में सफल रहे। वे न केवल राज्य कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता है बल्कि एक कुशल संगठक भी है।
पार्टी के नेताओं का एक बड़ा वर्ग मानता है कि विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी की जीत का ज्यादा श्रेय उन्ही को जाता है। जीत के बाद मुख्यमंत्री पद के वे एक बड़े दावेदार थे। लेकिन कुछ अन्य कारणों से कांग्रेस हाई कमान ने सिद्धारामिया को मुख्यमंत्री बनाया गया। शिवकुमार को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया। उन्हें उनकी पसंद का और महत्त्वपूर्ण विभाग भी उन्हें दिया गया। इसके साथ यह भी तय हुआ लोकसभा चुनावों तक शिवकुमार राज्य कांगेस पार्टी के मुखिया बने रहेंगे। यह भी तय हुआ कि मुख्यमंत्री सभी बड़े फैसले शिवकुमार की सहमति से ही करेंगे। यह भी साफ़ कर दिया गया कि शिवकुमार लोकसभा का चुनाव होने तक कांग्रेस के मुखिया भी बने रहेंगे। यानि लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा जायेगा। उन दिनों यह भी चर्चा थी कि ढाई साल बाद शिवकुमार को मुख्यमंत्री का पद दे दिया जायेगा ऐसा माना जाता है कि शिवकुमार के समर्थक कांग्रेस आला कमान पर यह दवाब बना रहे है कि राज्य सरकार के नेतृत्व में परिवर्तन को जल्दी से जल्दी अंजाम दे दिया जाये।
जिस ढंग से दोनों गुट एक दूसरे के आमने सामने खड़े है उसको देखते यह साफ़ लग रहा है कि आने वाले दिनों दोनों गुटों के बीच की जंग और तेज होगी। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)