मुख्यवक्ता वी. श्रीनिवास आई.ए.एस. सचिव, प्रशासनिक सुधार एवं जनअभियोग निराकरण एवं पेंशनर्स विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली रहे
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जयपुर। रिटायर्ड आईएएस स्वर्गीय डाॅ.सत्यनारायण सिंह की स्मृति में राजस्थान इंटर नेशनल सेंटर, झालाना इंडस्ट्रीयल एरिया, जयपुर में प्रथम व्याख्यान’’ का आयोजन किया गया। व्याख्यान का विषय था ‘‘सुशासनः सिद्धांत और व्यवहार’’ इसमें मुख्यवक्ता वी. श्रीनिवास आई.ए.एस. सचिव, प्रशासनिक सुधार एवं जनअभियोग निराकरण एवं पेंशनर्स विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली ने अपने व्याख्यान में कहा कि अच्छे शासन का अर्थ है वह प्रणाली जिसके तहत सरकार अपने नागरिकों को प्रभावी, पारदर्शी, न्यायसंगत ओर जबावदेह सेवा प्रदान करती है। यह एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है और सभी नीतियों और कार्यक्रमों का कार्यान्वयन सटीकता और पारदर्शिता के साथ किया जाता है।
उन्होंने बताया कि सुशासन के लिए सरकार के कार्यों में पारदर्शिता होनी चाहिए। सरकार के कार्योें और निर्णयों में खुलापन और स्पष्टता होनी चाहिए। सरकार के अधिकारी अपने कार्योें के लिए जवाबदेह एवं जिम्मेदार हों। नागरिकों को यह अधिकार होना चाहिए कि वे अधिकारियों से उनके कार्यों के बारे में पूछताछ कर सके। न्याय संगतता के लिए नागरिकों को समान अवसर और न्यास मिले। कमजोर और हाशिये पर रहने वाले लोगों के अधिकारों का संरक्षण हो। प्रतिक्रियाशीलता के तहत नागरिकों की आवश्यकताओं और समस्याओं का त्वरित समाधान हो इसके लिए सेवाओं और नीतियों में सुधार किया जाए।
सरकारी निर्णयों में सभी पक्षों की सहमति और सहयोग हो। विवादों का समाधान बातचीत और समझोैते से हो। कानूनी नियम कानून का शासन स्थापित हो और सभी कानूनों का पालन हो, न्याय पालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष हो। सरकारी संसाधनों का समुचित उपयोग हो और सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त हों। नीतियों और कार्यक्रमों का प्रभावी कार्यान्वयन हो। नागरिकों की सुशासन में भागीदारी सुनिश्चित हो। निर्णय प्रक्रिया में सभी लोगों की राय और सुझाव शामिल हों।
सरकार के व्यवहार में नागरिकों को समय पर ओर सटीक जानकारी प्रदान करना होनी चाहिए। सरकारी वेबसाइट्स और सूचना के अधिकार (आरटीआई) का उपयोग किया जाए। नागरिकों के साथ नियमित संवाद किया जाए। पंचायत स्तर पर बैठकों और चर्चा का आयोजन हो।
वी. श्रीनिवास ने आगे कहा कि सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों की नियमित निगरानी ओर मूल्यांकन किया जाए। स्वतंत्र एजेंसियों द्वारा प्रदर्शन की समीक्षा हो। नागरिकों की शिकायतों को सुनने और निपटाने के लिए प्रभावी प्रणाली हो। शिकायतोें का त्वरित और संतोषजनक समाधान हो। नीति निर्माण में सहभागीदारी हो। नीतियों के निर्माण में नागरिकों, विशेषज्ञों और संगठनों की भागीदारी हो। सार्वजनिक पारामर्श और बहस के माध्यम से नीतियों का निर्माण हो। सर्वश्रेष्ठ प्रथाओं का आदान प्रदान विभिन्न क्षेत्रों और राज्यों में सफल प्रथाओं का आदान प्रदान और अनुकरण किया जाऐ। सरकारी अधिकारियों और संगठनों को प्रशिक्षण और कार्यशालाओं के माध्यम से जागरूक किया जाए। इन सिद्धांतों और व्यवहारों को अपनाने से सरकारें अधिक प्रभावी, विश्वसीनय और नागरिकों के प्रति जवाबदेह बन सकती है।
इस अवसर पर मुख्यवक्ता सहित अनेक शख्सियतों का सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम में अनेक अधिकारियों, राजनेताओं, परिवारजन सहित अन्य लोगों ने शिरकत की। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रो.बी.एम. शर्मा , पूर्व अध्यक्ष, राजस्थान लोक सेवा आयोग ने की।
इस दौरान डाॅ.सत्यनारायण सिंह के जीवन पर प्रकाशित ग्रंथ "सत्य निर्मल" का विमोचन निर्मला सिंह, डाॅ. रिपुंजय सिंह, पुनीता सिंह, औकार सिंह लखावत अध्यक्ष राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण मिशन, वी. श्रीनिवास, प्रो. बी.एम. शर्मा तथा सिंह साहब के परिवारजनों ने किया। कार्यक्रम का संचालन डाॅ. पुनीता सिंह ने किया।