कर्नाटक में निजी क्षेत्र में आरक्षण को लेकर टकराहट

लेखक : लोकपाल सेठी

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक 

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कर्नाटक विधानसभा के मानसून स्तर में राज्य की कांग्रेस सरकार दो महत्वपूर्ण कानून पेश करके उन्हें पारित करवाने का लक्ष्य लेकर चली थी। लेकिन विरोध के चलते सरकार ने दोनों विधेयक पेश करने को टाल दिया। सरकार ने यह नहीं बताया कि अब ये विधेयक कब पेश किये जायेंगे और पारित करवाए जायेंगे। सबसे खास बात यह है इन दोनों विधेयकों के लेकर प्रमुख विपक्षी दल बीजेपी सहित किसी अन्य दल ने इन दोनों विधेयकों का विरोध नहीं किया।  यह विरोध उद्योग और व्यवसायिक संगठनों की ओर से था। यह विरोध इतना तीव्र था कि सरकार ने इन दोनों विधेयकों को पेश कर उन्हें कानून बनाए के इरादे को रोक दिया। 

पहला विधेयक उद्योंगो और व्यवसायों में राज्य के कन्नड़ भाषी लोगों को, यानि स्थानीय लोगों को 70 प्रतिशत तक आरक्षण दिलाना था। दूसरा विधयेक   राज्य में कार्यरत आईटी कम्पनिया में कार्य घंटे 12 से 14 किया जाना था। 

विधानसभा का स्तर आरंभ होने के बाद राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में आरक्षण कानून के बारे में विचार विमर्श हुआ। इस आशय के विधेयक का प्रारूप भी    बैठक में पेश किया गया। मंत्रिमंडल ने कोई अधिक विचार विमर्श के विधेयक के प्रारूप पर अपनी मोहर लगा दी। मुख्यमंत्री सिद्द्धारामिया ने औपचारिक  रूप से इसकी घोषणा भी करदी। यह भी कहा कि विधेयक विधानसभा के मानसून स्तर में ही पारित करवाया जायेगा। अगले ही दिन आईटी क्षेत्र की  कंपनियों के संगठनों ने इसका खुलकर विरोध किया। राज्य सरकार के प्रस्ताव के अनुसार इन कंपनियों में प्रशासनिक स्तर पर यह आरक्षण 50 तक होना था तथा नीचे के कर्मचारियों  में यह आरक्षण 70 प्रतिशत तक था। विधेयक का उद्देश्य  राज्य के शिक्षित युवकों का अधिक से अधिक रोजगार के अवसर  उपलब्ध करवाना था। 

कर्नाटक की राजधानी बंगलूरु को सिलिकॉन वैली के रूप में जाना जाता है। विश्व की लगभग सभी बड़ी आईटी कंपनियां यहाँ काम कर रही हैं।  राजधानी के  वाइट फिल्ड  इलाके को आईटी का हब  कहा जाता है। एक समय था जब राज्य में हिंदी भाषी लोगों की संख्या सीमित थी। लेकिन आईटी के आने के बाद यह  सब कुछ बदल गया। इस समय आईटी कंपनियों में उत्तर भारत के युवा अधिक क संख्या में काम कर रहे है। कंपनियों का कहना कि उनके यहाँ काम करने वाले हिंदी भाषी लोग आईटी के हुनर में स्थानीय युवको से कहीं आगे है, उनका कहना था उत्तर भारत के उच्च शिक्षा प्राप्त युवकों के वजह से आईटी उद्योग यहाँ पनप रहा है तथा तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इस उद्योग की लगभग सभी बड़ी कंपनियों के प्रमुखों ने सरकार को खुले शब्दों में बता दिया कि अगर उनपर आरक्षण लाददा जायेगा तो वे अपना उद्योग किसी अन्य राज्य में ले जाएँगे। 

इस प्रतिक्रिया के अगले दिन ही मुख्यमंत्री सिद्धारामिया नर्म पड़ गए। उन्होंने कहना था कि मंत्रिमंडल के बैठक में सारे विधेयक पर फिर से विचार किया जायेगा। जब मंत्रिमंडल की अगली बैठक में इस विधेयक पर विचार विमर्श हुआ था इसमें यह किया गया कि फ़िलहाल इस विधयेक को रोक दिया जाये। बताया जाता है कि कांग्रेस के कई बड़े केंद्रीय नेता भी इस विधयेक के खिलाफ थे। केरल से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य शशि थरूर ने तो इस विधयेक को गैर संवैधानिक तक करार दिया। लगता है के अब यह विधेयक ठन्डे बसते में चला गया हैं।  

दूसरा कानून जो सरकार बनाना चाहती थी वह भी आईटी क्षेत्र से जुड़ा हुआ है। वर्तमान कानून के अनुसार आईटी कंपनियां अपने कर्मचारियों से प्रतिदिन अधिक से अधिक 12 घंटे काम ले सकती है, जिसमे ओवर टाइम भी शामिल है। कुछ समय पूर्व देश की एक बड़ी आईटी कंपनी इनफ़ोसिस के चेयरमैन नारायणमूर्ति ने यह कहा था कि देश में आईटी कंपनियों को कम से कम 14 घंटे काम लेने की अनुमति होनी चाहिए तभी ये कम्पनियों विदेशी कम्पनियों को प्रतिस्पर्धा दे सकती है संभवत इसी के बाद राज्य सरकार ने आईटी कम्पनियों को अपने कर्मचारियों से प्रतिदिन 14 घंटे काम लेने की  अनुमति देने का निर्णय किया। 

इसके लिए शॉप एंड एस्टाब्लिश्मेंट कानून में बदलाव जरूरी था। सरकार का यह इरादा सामने आते ही लगभग सभी कर्मचारी संगठन सरकार पर टूट पड़े। इन संगठनों के नेताओं का कहना था कि आईटी के कर्मचारी इस समय भी काम के बोझ से लद्दे हुए है। इन पर और काम लाद देना अन्याय होगा. वर्तमान में आईटी  से जुड़े लोग  ऑफिस से आने के बाद भी घर से रात दस बजे तक कंप्यूटर को लोग इन  कर काम में लगे रहते है। इसका सीधा असर उनकी सेहत और पारिवारिक जीवन पर पड़ रहा है। इस विरोध के चलते सरकार ने कानून में बदलाव करने का इरादा छोड़ा दिया। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)