लघु कथा : रक्षाबंधन : लता अग्रवाल

लेखिका : लता अग्रवाल 

चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)

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आज अचानक सुबह-सुबह ही मेरी सहेली आई और फूट-फूट कर रोने लगी। मैंने उसे चुप कराया और पूछा क्या बात है, राखी पर मायके नहीं जा रही हो क्या तो कहने लगी मैंने तो वर्षों से मैंने राखी भेजना ही बंद कर दिया उसका यह जवाब  सुनकर कारण पूछने पर _उसने बताया की सालों पहले भाभी से छोटी सी बात को लेकर अनबन हो गई थी तो मैंने राखी नहीं भेजी लेकिन इतने बरस हो गए भाई भाभी कभी नहीं कहते की राखी क्यों नहीं भेजी और कुछ कहने पर जवाब मिलता है कि हमें कारण ही नहीं पता कि आप राखी क्यों नहीं भेज रही हैं तो हम आपसे क्यों पूछे कि आपने राखी क्यों नहीं भेजी, उसकी बात सुनकर मै आश्चर्यचकित रह गई, और भाई भाभी कहने लगे इतनी पुरानी बातों का क्या मतलब है लेकिन यह नहीं कहा कि तुम राखी भेजो। उसकी व्यथा देखकर उसके चेहरे से अंदाजा लगाया जा सकता था कि वह अपने भाई से कितना प्यार करती है लेकिन मैंने उसको समझाया कि वर्तमान में समय बदलगया है  और रिश्ते खत्म हो गए हैं और सिर्फ अपने परिवार तक सीमित रह गए हैं तो तुम भी अपने बेटे बहु पति वह पोते पोती केसाथ साथ खुश रहो और यह सब छोड़ो। उसने वादा किया कि इस विषय पर अब मैं आपसे कभी कोई चर्चा नहीं करूंगा और मस्त रहूंगी और ना कभी भाभी से माफी की उम्मीद करूंगी मैंने कहामेरी बेटियों के भाई नहीं है तो क्या वह रोती रहेगी। (लेखिका का अपना अध्ययन एवं अपने विचार है)