हमारा सामाजिक ढांचा मजबूत हो : लता अग्रवाल

वृद्ध आश्रम व अनाथ आश्रम को संयुक्त कर दिया जाए

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हमारा सामाजिक ढांचा बड़ी तेजी से बिखर रहा है हमारे समाज में परिवार को एक इकाई के रूप में जाना जाता है परंतु वर्तमान समय में भौतिकवाद की अंधी दौड़ में परिवार के मायने बदल गए हैं। युवा पीढ़ी घर के बुजुर्गों को बोझ समझने लगी है। इधर-उधर झाड़ियां में आए दिन लावारिस बच्चे पाए जाते हैं। वृद्ध आश्रम व अनाथ आश्रम की संख्या दिनों दिन बढ़ने लगी है। जो बचपन मां के आंचल के साए में पलना चाहिए वही बचपन लावारिस की तरह अनाथ आश्रम में पलता है। घर के बड़े बुजुर्गों को भी लावारिस की तरह आश्रम में भेज दिया जाता है। यह बेहद तकलीफ मानसिक प्रताड़ना जैसा एहसास होता है। 

तो क्यों ना वृद्ध आश्रम व अनाथ आश्रम को संयुक्त कर दिया जाए और उसे एक इकाई का रूप दे दिया जाए इससे मासूम बच्चों को बुजुर्गों का स्नेह और संस्कार मिलेंगे और बुजुर्गों का बुढ़ापा उन मासूम बच्चों के साथ रहने से आराम से गुजर जाएगा। स्वयंसेवी संस्थाएं अपने स्तर पर तो यह विकल्प चुन ही सकती है और प्रयोग के तौर पर इसे आजमाया भी जा सकता है। क्या पता यही विकल्प हमारे समाज के लिए वरदान बन जाए और बच्चों का भविष्य भी सुधर जाए। 

लेखिका : लता अग्रवाल, चित्तौड़गढ़ (राजस्थान)