दिल्ली में दो पुल बनवाने वाली

जन्मदिवस पर विशेष 


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नई दिल्ली। प्रोफेसर (डा.) सत्या जांगिड 10 अगस्त 1938 को गाज़ीपुर (पूर्वी उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित जमींदार परिवार में पैदा हुईं। गोरखपुर विश्वविद्यालय से 1959 में बी ए ,1961 में अर्थशास्त्र में काशी से एम. ए.और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ही 1967 में पी. एच. डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्ष 1964-65 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में पढ़ाने के बाद दस मार्च 1966 को नई दिल्ली में जाने माने लेखक, प्रसारक और पत्रकार डा. रामजीलाल जांगिड से विवाह हुआ। वर्ष 1966-67 में दिल्ली विश्वविद्यालय के माडर्न कॉलेज फोर वीमैन (आजकल कमला नेहरू कालेज कहलाता है) में पढ़ाया। 25 जुलाई 1968 से 30 अगस्त 2000 तक यानी 32 वर्षों से कुछ अधिक समय तक कालिन्दी कालेज फोर वीमैन, पूर्वी पटेलनगर, नई दिल्ली में पढ़ाया। वह दुबली पतली थीं, मगर एक बार जो ठान लेती थी, उसे पूरा करके ही मानती थीं।

वह अक्टूबर 1969 की एक सुबह अपनी कार चलाते हुए  शालीमार बाग, नई दिल्ली 88 से कालिन्दी कालेज, पूर्वी पटेल मगर, नई दिल्ली-8 जा रही थीं। गुलाबी बाग के बाद का चौराहा पार करने के बाद उन्हें भीड़ नजर आई। कार से उतर कर देखा तो पता चला कि सराय रुहेला रेलवे स्टेशन पर कोई मालगाड़ी आ रही है इसलिए दोनों रेलवे फाटक बंद कर दिए गए हैं। किसी को मालूम नहीं कब खुलेंगे। उन्हें यह चिंता सताने लगी

कि वह आज कक्षा में देर से पहुंचेंगी । उन्होंने सोचा कि एक तो लड़कियों को घर वालों से पढ़ाई के लिए भी लड़‌ना झगड़‌ना पड़ता है। फिर कोई शाहदरा से आएगी, कोई तिलक नगर से और कोई मूंडका से।उन्हें कितना बुरा लगेगा कि आज अर्थशास्त्र की पढ़ाई नहीं हुई। डॉ. सत्या ने तय किया कि वह इस स्थिति को बदल कर रहेगी। दूसरे दिन सुबह साढ़े सात बजे वह दो सौ लड़‌कियों को लेकर सराय रुहेला रेलवे स्टेशन के पास पहुंच गई। उन्होंने एक सौ लड़‌कियों को आनंद पर्वत वाली साइड में और एक सौ को गुलाबी बाग वालीसाइड में खड़ा कर दिया। उन्हें प्रातः 8 से सायं 8 बजे तक फाटक बंद होने से रुकी हुई बसों की सवारियों की संख्या, कारों में बैठे हुए लोगों की संख्या, मोटर साईकिलों स्कूटरों और साइ‌किलों पर इंतजार करने वालों की संख्या तथा इससे नष्ट हुछ समय का हिसाब रखना था। डा. सत्या ने पाया कि यहां बारह घंटों में जितना समय नष्ट हुआ, उतने समय में वे काम करते तो एक करोड़ रुपयों की हर रोज बचत होती।

उन्होंने अपनी शोध के निष्कर्ष हिन्दुस्तान टाइम्स (अंग्रेजी दैनिक) में अक्टूबर 1969 में सम्पादकीय पृष्ठ पर छपवा दिए। थोड़े समय के बाद उन्होंने शालीमार बाग से वजीरपुर बस अड्डे, पंजाबी बाग चौराहे, और मोतीनगर होते हुए शादीपुर बस डिपो की ओर कार मोड़ दी। वहाँ भी दो रेल फाटक थे। दूसरे दिन वह फिर दो सौ लड़‌कियों को ले आईं और दोनों तरफ नष्ट हुए समय का हिसाब निकाला। यहां भी रोज एक करोड़ रूपये नष्ट हो रहे थे। देश को बड़ी आर्थिक क्षति थी। दोनों जगहों की रिपोर्ट डॉ. सत्या ने 20 सितम्बर 1970 को योजना आयोग की अंग्रेजी पत्रिका Yojana में Expensive Crossings शीर्षक से छपवा दी और सम्बन्धित अधिकारियों को रिपोर्ट और प्रकाशित लेख की प्रति भेज दी। इससे कोई प्रतिक्रिया न पाकर डा. सत्या ने सांसदों को रिपोर्ट और लेख की प्रतियाँ देना शुरू कर दिया। संसद में कुछ सांसदों ने प्रश्न पूछे कि योजना' पत्रिका में छपे इस लेख पर क्या‌ कार्रवाई हुई। इ‌सके बाद भारत सरकार ने घोषणा की कि दोनों जगह पुल बनेंगे। दोनों जगह पुल बनवाने के बाद ही डा. सत्या ने अपना अभियान बंद किया। दोनों पुल वन जाने से रोज हजारों लोगों के लिए यातायात आराम दायक और समय बचाने वाला हो गया है। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)

लेखिका : प्रोफेसर (डा.) माला मिश्र 

दिल्ली विश्वविद्यालय (हिन्दी विभाग)