"साम्प्रदायिक तनाव, हिंसा और समाधान" विषय पर मुक्त मंच की गोष्ठी

राजधर्म का पालन लोकतन्त्र मे उतना ही जरुरी जितना कि राजतन्त्र में : डॉ. नरेन्द्र कुसुम 

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जयपुर। मुक्त-मंच की 86वीं मासिक संगोष्ठी "साम्प्रदायिक तनाव, हिंसा और समाधान" विषय पर परमहंस योगिनी डॉ. पुष्पलता गर्ग के सान्निध्य और भाषाविज्ञ डॉ. नरेन्द्र शर्मा 'कुसुम' की अध्यक्षता में योग साधना आश्रम में सम्पन्न हुई।आईएएस (से.नि.) अरुण ओझा मुख्य अतिथि थे और  'शब्द संसार' के अध्यक्ष श्री श्रीकृष्ण शर्मा ने संयोजन किया।

अध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र शर्मा कुसम' ने कहा कि राजनीति का जन्म हिंसा के साथ ही हुआ था क्योंकि  मनुष्य सभ्यता और संस्कृति  में प्रविष्ट हुआ तो  हिंसा की प्रवृति के बीज लेकर आई। जब राजतन्त्र का उदय हुआ तो विभिन्न कारणों से हिंसा होने लगी। आज के लोकतन्त्र की हिंसाएँ कुछ अलग कारणों से हो रही हैं। उन्होंने कहा कि राजनीति का उद्देश्य लोक मंगल होता है। राजधर्म का पालन लोकतन्त्र मे उतना ही जरुरी है जितना कि राजतन्त्र में। अहिंसा से हिंसा का प्रतिकार,अध्यात्म से हिंसा का प्रतिकार एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है।    

पूर्व बैंकर इन्द्र भंसाली ने कहा कि साम्प्रदायिक हिंसा का कारण एक दूसरे से डर है और जब इसका तनाव प्रखर होता है तब साम्प्रदायिक हिंसा का कारण बनता है।परस्पर अविश्वास, घृणा, नफरत तथा असुरक्षा को जन्म देता है । अंग्रेजो ने फूट डालो राज करो नीति और अत्याधुनिक हथियारों का लाभ  जंग जीती ।अंग्रेजों ने भारतीय संस्कृति को नष्ट करने की पटकथा अंग्रेजों ने लिखी। ऐसे में इस पर अंकुश लगाने के लिए जरूरी है कि आज जो लोग उतेजना और नफरत फैलाते हैं,  उसका तुरन्त संज्ञान लेकर उन पर कठोरतम कार्यवाही की जाए।  

लब्ध प्रतिष्ठ स्तम्भकार ललित अकिंचन ने कविता के माध्यम से कहा कि: तू भी है इनसान, मै भी हूँ इनसान खुदा तू भी नहीं, खुदा मैं भी नहीं तू मुझे और मै तुझे दोष देते हैं पर अन्दर झाँकता तू भी नहीं, मै भी नहीं।  गलत फहमियों ने पैदा कर दी दोनों मे दूरियां,  वरना आदमी बुरा तू भी नहीं, मै भी नहीं।

वरिष्ठ अधिवक्ता  सावित्री रायजादा ने कहा कि वैश्विक स्तर पर नफरत, प्रतिशोध के कारण हिंसक युद्ध हो रहे हैं।शालिनी शर्मा ने कहा कि विश्व के सभी धर्मगुरुओं नेअपने उपदेश मे प्रेम को सर्वोपरि माना है  पर वे नैतिक ऊँचाइयों को बनाए रखने मे सफल नहीं हुए। इसीलिये विश्व में बडे पैमाने पर सांप्रदायिक तनाव और सार्वभौमिक अनिश्चयता एवं भय का वातावरण निर्मित होता जा रहा है। मनुष्य को  मन की नकारात्मकता से खुद को आजाद करना होगा।

 पूर्व मुख्य अभियन्ता एवं प्रखर वक्ता दामोदर चिरानिया ने कहा कि हमारा समाज ही नहीं, विश्व का सम्पूर्ण समाज करीब-करीब विभिन्न समुदायों मे बंटा हुआ है, चाहे क्षेत्र, रंग, जाति, धर्म, लिंग या सोच हो। दुनिया में पिछले 110 दस सालों में शक्ति प्रदर्शन के कारण दो विश्व-युद्ध हुए।   

मुख्य अतिथि अरुण ओझा ने कहा कि भारत एक बहुधार्मिक बहुलवादी देश है जहाँ संविधान हर नागरिक को अपनी प्सन्द के धर्म का पालन करने का अधिकार देता है। इसीलिए यहाँ विभिन्न धर्मो के लोग बडे सद्भाव के साथ रहते हैं। इतिहास विद कहते हैं कि विश्व के सभी धर्म या सम्प्रदायों  के संस्थापक और धर्मगुरुओं ने  प्रेम और सद्भावना को ही सर्वोच्च माना है। 

अपने संयोजकीय वक्तव्य में 'शब्द संसार' के अध्यक्ष श्रीकृष्ण शर्मा ने कहा कि 2047 में हम भारत की स्वतन्त्रता की शताब्दी मना रहे होंगे तब भारत को विकसित भारत के रुप में देखना चाहेंगे जिसमे समानता, समता, बन्धुता हो, पर जैसी परिस्थितियाँ  दिखाई दे रही हैं। इसके बावजूद हमें कभी कभी कुछ निराशा, हताशा का भान पैदा होता है। हमने इस दौर में घृणा और ईर्षा को वैश्विक स्तर पर कुलांचे  भरते देखा है। आज युद्ध नहीं है तथापि जम्मू क्षेत्र में आए दिन रोज फौजी शहीदऔर नागरिक हताहत हो रहे हैं ।  कांवङ यात्रा को लेकर तनाव बना हुआ है।मणिपुर मे 5 मई 2023 से जातिय हिंसा जारी है। अब तक 221 लोग मारे गये, 6000 लोग विस्थापित हुए, गांव वीरान पङे हैं, महिलाओं के आजीविका के संसाधन समाप्त हो गए। ऐसे में साम्प्रदायिक सद्भाव परस्पर समता, समानता समय की आवश्यकता है। 

संगोष्ठी में सर्वश्री आरसी जैन, फारूक आफरीदी, सुभाष गुप्ता,यशवंत कोठारी, डॉ. रमेश खण्डेलवाल, लोकेश शर्मा, अरुण ठाकर, तथा सुमनेश शर्मा ने भी विचार व्यक्त किए। (Pressnote)