वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं विभिन्न मामलों के ज्ञाता
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मेरी पत्नी डा. सत्या का परिवार गोरा बाज़ार, गाज़ीपुर (पूर्वी उत्तर प्रदेश) में रहता था। उस जगह भारत का वायसराय लार्ड कार्नवालिस मरा था। इसलिए उसका स्मारक बना हुआ है। वह गंगा नदी के तट पर बसा हुआ है। वहाँ कुछ दिन स्वर्गीय रवीन्द्र नाथ ठाकुर भी रहे थे। वहां अंग्रेजों ने फौज़ी छावनी बना रखी थी। जहां अंग्रेज़ी सैनिकों का मोहल्ला था, उसे गोरा बाज़ार कहा जाता था। अंग्रेज़ो ने वहां अफ़ीम का कारखाना खोला था। कोई उद्योग धंधा न होने से यह इलाका आर्थिक दृष्टि से अविकसित रह गया है। यहाँ कई माफिया गिरोहों का आतंक रहा है। यहां ज़मीनों पर जबरन कब्जे के मामले लगातार बढ़ते रहे हैं। इसलिए जिला अदालत में वकीलों की संख्या काफी बड़ी है। ज्यादा तर लोग खाली बैठे मिलते हैं। टी. वी. सीरियल 'महाभारत' के संवाद लेखक यहीं के थे।
मेरे ससुर जी के पिता स्वर्गीय सीता राम जी के ईंटों के भट्टे थे। उन्हें ज़मीन और बंगले खरीदने का जुनून था। बीसवीं शताब्दी के पहले दशक में कई अंग्रेज परिवार अपने बंगले बेचकर इंग्लैंड या भारत के महानगरों में चले गए। बाबू सीताराम जी उनके बंगले और उनके खेत खरीदते चले गए।उन्होंने 11 जुलाई 1903, 21 अगस्त 1905, 10 अप्रैल 1906,- 11 जुलाई 1906, दो अगस्त 1906, बारह अगस्त 1907, दो मई 1908, सत्रह अगस्त 1912, बारह नवम्बर 1914 और दस फरवरी 1920 को दस बंगले खरीद लिये खेती की जमीन सहित। दो बड़े बेटे खेतों की जमीन के बंदोबस्त में लग गए। दो छोटे बेटे गाज़ीपुर के बाहर पढ़ने चले गए।एक बंगले में आम के पेड़ थे। चालीस साल पहले उसकी कीमत बत्तीस करोड़ रु. थी। नौ बीघे का एक बंगला मिस ब्राउन का था। चालीस साल पहले प्रति वर्गमीटर भाव था 3.20 लाख रु.। मैंने सबसे छोटे बंगले को माफिया से बचाने के लिए मजबूरी में 38 लाख रु में बेच दिया। क्षेत्रफल था 38 बिस्वा।
मैंने वहां एक कालोनी बनाई थी। उसमें माफिया डॉन मुख्तार अंसारी भी गंगा बिहार नाम से कालोनी बनाना चाहते थे। उन्होंने मेरे पास अलीगढ़ में पढ़े एक सिविल इंजीनियर को भेजा था। मगर मैंने उन्हें नहीं बेचा। कहने का मतलब यह है कि परिवार सम्पन्न था। बाबू सीता राम जी के चार पुत्र थे । मेरे ससुर स्वर्गीय रघुनाथ प्रसाद जी सबसे बड़े पुत्र थे। वह वकील थे। उनकी ईमानदारी की धाक थी। इसलिए वह दस वर्ष से ज्यादा समय तक गाजीपुर नगर पालिका के लगातार निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए। उनकी गली को अब भी चेयरमैन साहब की गली कहा जाता है। उनके चार पुत्र और एक पुत्री हुई। (लेखक का अपना अध्ययन एवं अपने विचार हैं)