5.49 करोड़ रुपए की पेयजल योजना पर संकट के बादल

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

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सांभरझील। चारभुजा नाथ मंदिर परिक्षेत्र व इसके नीचे की तमाम बस्तियों के सैकड़ों लोगों को इस साल के अंत तक भी प्रदेश सरकार की ओर से मंजूर की गई करीब 5 करोड़ 49 लाख रुपए की पेयजल योजना का लाभ मिलता आसानी से नजर नहीं आ रहा है। तत्कालीन मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के शासन के समय पेयजल योजना को मंजूरी मिली और वर्तमान प्रदेश सरकार की मुखिया भजनलाल शर्मा ने इसकी प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृतियां जारी की। इस योजना में एक उच्च जलाशय का निर्माण सहित उन तमाम पुरानी पेयजल लाइनों को बदला जाना है जो विगत कई दशकों से जर्जर हो चुकी है। पेज़लाइन 80% तक चौक हो चुकी है, जिसकी वजह से लोगों के घरों में तुर तुर पानी आता है। चारभुजा नाथ मंदिर के ऊंचे इलाके मे बसे लोगों तक पानी की सप्लाई विगत 30 सालों से प्रेशर से नहीं पहुंच पा रही है। 

यहां के लोगों ने सेकंडों दफा विधायक, चेयरमैन और तमाम जनप्रतिनिधियों के अलावा विभाग को हाथ जोड़कर भी निवेदन किया कि उनकी पेयजल समस्या का समाधान करें लेकिन विभाग कुछ भी करने में असमर्थ ही रहा। अब जैसे तैसे प्रोजेक्ट को मंजूरी तो मिल गई लेकिन उच्च जलाशय के लिए नगर पालिका भूमि उपलब्ध नहीं करवा पा रही है और न ही भूमि की कोई सुनिश्चितता बन सकी है। यद्यपि लोगों के दुखों को देखते हुए यहां की पार्षद ज्योति कुमावत के पति टीकमचंद कुमावत ने तो अपनी स्वयं की भूमि भी उच्च जलाशय निर्माण के लिए सरकार को देने तक की घोषणा कर डाली। सभी तमाम औपचारिकताएं पूरी हो चुकी है। पहले इसका निर्माण नगर पालिका की जिम्मे सोंपा था, लेकिन सरकार ने जब देखा कि यह इतना बड़ा काम पालिका के बस की बात नहीं है तो फिर बाद में इस काम की जिम्मेदारी जलदाय विभाग को सुपुर्द कर दी। 

5 करोड़ 49 लाख रुपए सार्वजनिक निर्माण विभाग के खाते में आना बताया जा रहा है जो करीब 1 साल से पड़ा है। जलदाय विभाग नगर पालिका से भूमि मांगने के साथ-साथ अनापत्ति प्रमाण पत्र भी मांग रहा है। अब समस्या यह है कि जिस इलाके में टंकी निर्माण होनी है वह भूमि ही पालिका के खाते में नहीं है। यानी वह भूमि पुरानी कोर्ट स्थित राजस्व विभाग की नजूल संपत्ति में दर्ज है जो पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने राजा महाराजाओं के जमाने की ऐतिहासिक बिल्डिंगों को हेरिटेज में लिए जाने के लिए योजना को मूर्त रूप दिया था। राजस्व विभाग की जमीन होने के कारण इसकी परमिशन न तो एसडीएम दे सकते हैं और न ही नगर पालिका। ऐसे में टांकी निर्माण करना हो तो यहां के जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि वे इसका प्रपोजल तैयार करवा कर एसडीएम के माध्यम से जिला कलेक्टर जयपुर को राज्य सरकार के पास स्वीकृति के लिए भिजवाए, तभी इसका कुछ समाधान हो सकता है अन्यथा टांकी निर्माण होना तो दूर यह 5 करोड़ 49 लाख रुपए का बजट भी एक दिन लैप्स हो जाएगा और लोग हाथ मलते रह जाएंगे।