अब दूदू पर टिकी सांभर जिला की आस, नए फैसले का इंतजार

शैलेश माथुर की रिपोर्ट 

www.daylife.page 

सांभरझील। सांभर के राजनेताओं में यदि दम होता तो सांभर कभी का ही जिला बन चुका होता, आमजन में चर्चाओं का दौर अब इसलिए तेज हो चला है कि इसका जीता जागता उदाहरण महज 25 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत दूदू  को माना जा रहा है जहां के विधायक ने अपने दम पर बिना किसी आंदोलन के ही जिला घोषित करवा दिया। 

राजस्थान का सबसे पुराना उपखंड सांभर और यहां भी तमाम न्यायिक व प्रशासनिक कार्यालयों, विस्तृत भूभाग, नवीन भावनों के निर्माण के लिए पर्याप्त अवसर, अनेक सरकारी पड़े खाली भावनों की मौजूदगी तथा सभी दृष्टिकोण से इसके पक्ष में प्रशासनिक रिपोर्ट होने के बावजूद सांभर को जिला से वंचित होना पड़ा तो यह यहां के तमाम विधायकों, राजनेताओं सोचने पर तो मजबूर कर ही दिया तथा धर्म संकट उत्पन्न यह भी हो गया कि दूदू के जिला बनने के बाद सांभर को जिला बनाने की मांग अब कैसे उठाएं, क्योंकि इतनी कम दूरी पर दूसरा जिला बनना नितांत ही असंभव है। 

गहलोत सरकार के जाने के बाद प्रदेश में आई भाजपा की सरकार के मुखिया ने निवर्तमान सरकार की ओर से जिन नवीन जिलों का गठन किया गया उसकी कमेटी की ओर से मांगी गई रिपोर्ट सरकार को मिल जाने के बाद अब एक मात्र उम्मीद जनता की इस बात पर टिकी है कि दूदू जिले के मापदंड में नहीं आता है तो या तो प्रदेश सरकार दूदू जिला को कैंसिल कर सांभर को जिला घोषित कर सकती है अथवा सांभर-दूदू को जोड़कर संयुक्त जिला घोषित कर सकती है, ऐसे अनेक अनुमान विगत कुछ समय से आम जनता ही नहीं बल्कि लोकल लीडरशिप संभाल रहे दोनों दलों के नेताओं की तरफ से भी लगाए जा रहे हैं। 

हकीकत यह है कि सांभर को इतना बडा घाटा होने के बाद भी कोई सरकार पर दबाव बनाने के लिए राजनेता आगे नहीं आ रहे हैं कि सांभर और दूदू को ही जोड दो ताकि किसी न किसी रूप में क्षेत्र की जनता का भला हो जाए अथवा सांभर को ही उसकी पुरानी मांग के आधार पर दूदू को कैंसिल कर नया जिला घोषित कर दिया जाए। फिलहाल क्षेत्र की जनता अब सरकार के नए फैसले के इंतजार में प्यासी नजरों से आस लगाए बैठी है।